नशा कोई भी हो, कैसा भी हो, विनाश का कारण ही होता है। उसे अपनाने वाला कोई भी व्यक्ति इस संसार में सुखी नहीं रह सकता। नशाखोर न अपना हित साधता है और न ही दूसरों का। वह सबकी आँख की कितकिरी बना रहता है।
नशा तो नशा होता है। हर नशा मनुष्य को अकेला कर देता है। नशा कोई भी हो अच्छा नहीं होता चाहे वह धन-संपत्ति का हो, रूप-सौंदर्य का हो, पद का हो, विद्वत्ता का हो या मान-सम्मान का। यह तो उस नशे की बात हुई जिसे अथक परिश्रम करके हम कमाते हैं।
अब हम चर्चा करते हैं उस नशे की या व्यसन की जो मनुष्य को कहीं का नहीं छोड़ता। यह नशा जुए, सट्टे, घोड़ों की रेस आदि किसी का भी हो सकता है। इनके नशे से भी किसी को फलते-फूलते नहीं देखा। कुछ समय के लिए तो अवश्य ऐसा प्रतीत होगा कि अमुक व्यक्ति के पास बड़ा धन आ गया है। पर जहाँ दाँव उल्टा पड़ा वहीं सब बरबाद हो जाता है। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि इंसान सब हार जाता है व कर्जे में डूबकर दाने-दाने को मोहताज हो जाता है।
शराब का नशा हो या स्मैक, चरस, गांजे का हो, होता बहुत भयंकर है। इसको करने से पैसे की बरबादी तो होती ही है और शरीर या स्वास्थ्य की हानि भी होती है। यह तो वही बात हुई न कि अपनी गाँठ का पैसा गया और जग हसाई भी हुई। मुँह के समक्ष भले ही कोई कुछ न कहे पर पीठ पीछे सभी बुराई करते हैं।
लोग उन्हें सम्मान से संबोधित न करके शराबी, नशेड़ी, गंजेड़ी या स्मैकिया कहकर तिरस्कृत करते हैं। ये नशे इंसान को कहीं का नहीं छोड़ते। घर-बाहर इनसे कोई मित्रता नहीं करता। इनका मित्र बनना या कहलवाना भी कोई नहीं चाहता। अपने घर में भी इन लोगों को कोई बुलाना पसंद नहीं करता। इसका कारण है कि वे नहीं चाहते कि समाज में कोई उनको हेय दृष्टि से देखे।
इन नशों को करने के लिए प्रतिदिन धन की आवश्यकता होती है। अब यह समस्या आड़े आती कि पैसा आए कहाँ से। काम-धन्धा तो ये टिककर नहीं कर पाते। अपनी लत के कारण ये लोग शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं। अपनी नशे की पिनक में रहने के कारण कार्य करने में दिन-प्रतिदिन असमर्थ होते जाते हैं।
घर में मारपीट करके जबरदस्ती पैसा छीनकर अपनी लत पूरी करते हैं। कभी सड़कों पर तो कभी नालियों में गिरे पड़े मिलते हैं। घर की ओर ध्यान न देने के कारण घरेलू आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाते। इसलिए पत्नी व बच्चों की अवहेलना का भी शिकार बनते हैं।
घर से, नौकरी से या दोस्तों से जब पैसा नहीं मिलता तो ये लोग चोरी-चकारी से भी परहेज़ नहीं करते। आखिर इनको पैसा दे कौन? एक बार कोई दे देगा या दो बार देगा उसके बाद क्या? जो अपनी लत में पैसा बरबाद करता है वो उधार लिया धन नहीं चुका सकता।
ये सारी दुखदायी स्थितियाँ मनुष्य को सामाजिक नहीं रहने देतीं। यह बड़ी भयावह स्थिति होती है। ऐसा मनुष्य अपना व अपनों पर भार होता है।
नशे के कारण लिवर खराब हो जाता है, हाथ काँपने लगते हैं और कैंसर जैसी बिमारियाँ घेर लेती हैं।
आजकल नशे से मुक्ति पाने के लिए बहुत से रिहेबिलिटेशन सेंटर सरकार एवं सामाजिक संस्थाओं ने खोले हुए हैं। वहाँ जाने वालों को नशे से मुक्त कराया जाता है। इसे छोड़ने के लिए इच्छा शक्ति का होना बहुत जरूरी है।
अपने बच्चों व परिवार से यदि सचमुच प्यार करते हैं तो यथासंभव इन कुव्यसनों से बचें और सम्मानजनक जीवन जीने का प्रयास करें। ईश्वर इन नशा करने वालों को सद् बुद्धि प्रदान करे।
चन्द्र प्रभा सूद
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