शास्त्रों ने कुछ नैतिक दायित्व मनुष्यों के लिए निर्धारित किए हैं। उनका पालन करना सभी का कर्त्तव्य है। मनुस्मृति के निम्न श्लोक में बताया गया है कि कौन से वे लोगों हैं जो सामने आ जाएँ तो स्वयं मार्ग से हटकर पहले उन्हें जाने देना चाहिए। कुछ दिन पूर्व देश कुमार जी ने मनुस्मृति के इस श्लोक को उदधृत किया था। तभी से इस विषय पर लिखने की इच्छा हुई। प्रस्तुत है मनुस्मृति का यह श्लोक-
चक्रिणो दशमीस्थस्य रोगिणो भारिणः स्त्रियाः।
स्नातकस्य च राज्ञश्च पन्था देयो वरस्य च।।
अर्थात- रथ पर सवार व्यक्ति, वृद्ध, रोगी, बोझ उठाए हुआ व्यक्ति, स्त्री, स्नातक या ब्रह्मचारी, राजा तथा वर (दूल्हा)। इन आठों में से कोई भी आगे आ जाए तो उसे जाने का मार्ग पहले देना चाहिए।
मार्ग में जाते समय सामने कभी रथ पर सवार कोई व्यक्ति आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर उसे मार्ग दे देना चाहिए। आजकल रथ का स्थान चार पहिया वाहनों ने ले लिया है। रथ पर सवार व्यक्ति उच्च राजकीय पदाधिकारी हो सकता है अथवा वह शासक का निकटस्थ व्यक्ति भी हो सकता है। मार्ग न देने की स्थिति में वह हानि पहुँचा सकता है या अहित कर सकता है। इसके अतिरिक्त तेज गति से चलते वाहन को रास्ता न देने पर दुर्घटना हो सकती है। इसमें जान जाने तक का जोखिम उठाना पड़ सकता है। इसलिए सावधानी बरतनी बहुत आवश्यक होती है।
रास्ते में चलते हुए कोई वृद्ध व्यक्ति आ जाए तो पहले उसे मार्ग देना चाहिए। भारतीय संस्कृति के अनुसार वृद्ध जन सदैव सम्माननीय होते हैं। उन्हें हर स्थिति में जाने के लिए पहले मार्ग देना चाहिए। इसका कारण यह भी है कि आयुप्राप्त वृद्ध लोग शारीरिक रूप से अशक्त होते हैं, उन्हें अधिक समय तक खड़े होने में कष्ट होता है। अतः उन्हें मार्ग पर प्रतीक्षा नहीं करवानी चाहिए। यथासम्भव उनकी सहायता करनी चाहिए। कोई भी ऐसा अवसर चूकना नहीं चाहिए।
रोगी व्यक्ति के साथ सहानुभूति प्रकट करनी चाहिए। वह दया व स्नेह का पात्र होता है। यदि रास्ते में कोई रोगी व्यक्ति सामने आ जाए तो उसे पहले जाने देना ही शिष्टता है। ज्ञात नहीं कि रोगी को किस प्रकार के उपचार की आवश्यकता है। हो सकता है मार्ग में रुकने से उपचार में देरी हो जाने पर उसे किसी विकट परिस्थिति का सामना भी करना पड़ सकता है। उसका जीवन भी दाँव पर लग सकता है। रोगी निर्बल होता है, उसकी सेवा करना बहुत पुण्य काम माना जाता है। हम उसकी सहायता तो नहीं कर रहे, पर उपचार के लिए जाते समय उसके मार्ग में बाधा नहीं पहुँचानी चाहिए।
सामने से बोझ उठाए हुआ व्यक्ति आ रहा हो तो पहले उसे ही जाने देना चाहिए। यह मानवीयता का प्रदर्शन करना कहलाता है। सिर पर बोझ उठाकर चलने वाला सामान्य स्थिति में चलने वाले मनुष्य से अधिक कष्ट का अनुभव कर रहा होता है। ऐसी स्थिति में शिष्टाचारवश हमें उसे ही पहले जाने देना चाहिए। ऐसा विनम्र व्यवहार करने से समाज में मनुष्य का सम्मान बढ़ता है।
महान भारतीय परम्परा के अनुसार हर आयु की स्त्री सम्माननीय होती है। यदि कभी वह मार्ग में आ जाए तो पहले उसे ही जाने देना चाहिए। अंग्रेजी भाषा में भी 'लेडीज फर्स्ट' कहकर उसका आदर किया जाता है। स्त्री के कोमलता आदि गुणों के कारण अनावश्यक ही उसे प्रतीक्षा नहीं करवानी चाहिए। उसका सदा ही आदर करना चाहिए और यह भी उसे मान देने का ही एक स्वरूप है।
मार्ग में आने वाले ब्रह्मचारी यानी विद्यार्थी को पहले जाने देना चाहिए। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि ब्रह्मचारी अपने गुरु के पास अध्ययन के लिए जाता है। गुरु के पास रहकर वह वेदादि ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त करता है। विद्वत्ता के क्षेत्र में सफलता पाने वाला वह सर्वत्र ज्ञान का प्रकाश फैलता हैं। ऐसे समय में विद्वान को पहले मार्ग देना उसका सम्मान करना होता है।
राजा को देश का पिता तुल्य कहा जाता है। वह प्रजा का पालन-पोषण करता है तथा विपत्तियों से उनकी रक्षा करता है। राजा के सभी निर्णय अपनी प्रजा के हित में होते हैं। राजा का हर स्थिति में आदर करना चाहिए। जिस मार्ग पर चल रहे हों और राजा उसी रास्ते पर आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर राजा को ससम्मान से जाने देना चाहिए अन्यथा उसके कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। अपने झूठे अहं के कारण दण्ड नहीं पाना चाहते तो पहले उसे ही जाने का मार्ग देना चाहिए।
वर यानी दूल्हा वह व्यक्ति है जिसका व्यक्ति का विवाह होने जा रहा है। यदि दूल्हा या बारात मार्ग में आ जाए तो पहले उसे जाने देना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि दूल्हा बना व्यक्ति भगवान शिव का स्वरूप होता है अपनी पार्वती स्वरूपा दुल्हन के साथ विवाह करने जा रहा है। ऐसे शुभ अवसर पर उसका रास्ता नहीं रोकना चाहिए अपितु शिष्टाचारवश उसे पहले ही मार्ग देना चाहिए।
इस प्रकार मनु महाराज ने मनुष्य को उसके नैतिक दायित्वों को समझाने का प्रयास।किया है। इनकी अनुपालना हर मनुष्य को करनी चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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