परिवारों का विघटन या टूटकर बिखरना बहुत ही दुखदाई है। भारतीय संस्कृति में परिवार एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण इकाई है। कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि इसमें कभी ऐसी स्थिति बन सकती है। इसका कारण चाहे कोई भी हो सकता है, पर इसका परिणाम वास्तव में चिन्तनीय है। परिवार के हर सदस्य को चाहे-अनचाहे इस दंश को सहने के लिए विवश होना पड़ता है।
कुछ लोगों का मानना है कि जब लोग अनपढ़ हुआ करते थे तब परिवार एक होते थे। टूटते परिवारों के मूल में अक्सर पढ़े-लिखे लोग दिखाई देते हैं। इस वक्तव्य में कितनी सच्चाई है, इस पर विचार करते हैं। इन लोगों का कथन है कि पढ़-लिखकर मनुष्य का दिमाग खराब हो जाता है। वह अपनी बराबरी में किसी को देखना नहीं चाहता। उसे अपने समक्ष सभी बौने प्रतीत होते हैं। उसे इस बात का अहं होता है कि उसने उच्च शिक्षा प्राप्त करके कोई किला फतह कर लिया है।
अपने उस नशे में आज युवा अपने माता-पिता को मूर्ख समझने की भूल करने लगा हैं। उसे सदा स्मरण रखना चाहिए क़ि यदि वे न होते तो उसकी यह जीवन यात्रा इतनी सरल न होती। दुनिया में मनुष्य के माता-पिता ही सिर्फ ऐसे होते हैं जो बिना किसी स्वार्थ के अपनी सन्तान से प्यार करते हैं। इसलिए अपनी सफलता का रौब उन्हें कभी नहीं दिखाना चाहिए। वे अपनी जिन्दगी को प्रसन्नता से स्वयं हार करके अपने बच्चों को जीवन में विजयी बनाते हैं, सफल बनाते हैं।
मेरे विचार में अकेले पढाई-लिखाई को परिवारों के टूटने का कारण मानना पूर्णत: समीचीन नहीं होगा। इसका सबसे बड़ा कारण जो मुझे प्रतीत होता है, वह है आधुनिक जीवन शैली। जब तक घर का हर सदस्य कार्य न करें तो इस मँहगाई के समय में गुजर बसर करना वाकई कठिन हो जाता है। यह आवश्यक नहीं कि जहाँ वे रहते हैं, वहीँ पर ही उन्हें कार्य मिल जाए। इसलिए जहाँ पर भी नौकरी की मिलती है, उन्हें वहाँ जाना पड़ता हैं। इस तरह वे घर परिवार से दूर हो जाते हैं।
इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे युवा भी हैं जिन्हें उच्च पद और मोटा वेतन मिलने लगता है तो वे घर के लोगों को किसी भी शर्त पर सहन नहीं कर पाते। मौका मिलते ही अपने घर-परिवार से अलग होकर रहने लगते हैं। कुछ युवा ऐसे भी हैं जो सोचते हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त करके विदेश जाकर ही उनका भविष्य संवर सकेगा। अतः वे सबसे दूर चले जाते हैं।
घर के सभी बच्चों की शिक्षा, ज्ञान, आर्थिक स्थिति एक जैसी नहीं होती। जो अधिक कमाता है, वह सोचता है कि मेरे ऊपर अधिक भार पड़ेगा। मुझे हमेशा ही अधिक हिस्सा देना पड़ेगा। मुझे ऐसी क्या जरूरत पड़ी है कि मै अपनी आर्थिक हानि करूँ। इसलिए भी कुछ युवा स्वार्थवश, अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण घर से अलग हो जाते हैं।
गाँवों, कस्बों, छोटे शहरों में कमाई के सीमित साधन होते हैं। इसलिए भी युवा बड़े शहरों में कमाने के लिए अपने घर को छोड़कर अपनों से दूर चले जाते हैं। यहाँ पढ़े-लिखे, काम पढ़े अथवा उच्च शिक्षा प्राप्त कोई भी युवा हो सकते हैं।
भाइयों में जमीन-जायदाद को लेकर या किसी अन्य कारण से परस्पर सौहार्द की जब कमी हो जाती है तब लड़ाई-झगडे होते रहते हैं। इस कारण भी कुछ युवा अपने घर से दूर चले जाते हैं। इसके अतिरिक्त व्यापार को देश के दूसरे शहरों या विदेश में बढ़ाने के लिए भी घर से दूरी बन जाती है।
इन सब कारणों से बढ़कर जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण कारण है, वह है संस्कारों की कमी। माता-पिता सारी आयु सम्बन्धों से अधिक धन को महत्त्व देते हैं। वही संस्कार बच्चों में भी आते हैं। यदि बच्चों को तोड़ने के स्थान पर जोड़ने के संस्कार दे, मिलजुलकर रहने, सहिष्णुता बनाए रखने या पारिवारिकता की शिक्षा दे तो निश्चित ही पारवारिक विघटन से हम अपने घरों को बचा सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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