आँखे हमारा आईना होती हैं। ये जो आँखे हैं, बहुत ही दुष्ट और नालायक हैं जो कभी हमारा कहना नहीं मानतीं। ये आँखें बहुत चुगलखोर होती हैं जो न चाहते हुए भी हमारे मन के भावों की सबके समक्ष चुगली कर देती हैं। चाहे ऊपर से कितना ही न न करते रहें परन्तु इनकी बदौलत सबकी चोरी पकड़ी ही जाती हैं।
सुख, खुशी, दुख, सन्तोष, ईर्ष्या, क्रोध, वात्सल्य आदि मानव मन के सभी भाव फ सारी संवेदनाएँ, उसकी इन आँखों से ही प्रकट होती हैं। जब भी मनुष्य के जीवन में खुशी हो या गम आते है तब मौका मिलते ही ये तालाब की तरह भर आती हैं। गंगा-यमुना की धारा की भाँति ये बहने लगती हैं अथवा फिर बादलों की तरह बरसने लगती हैं। जहाँ मन के विपरीत कोई घटना अथवा बात हो जाए वहीं ये छलकने लगती हैं।
नीली, कजरारी और बड़ी-बड़ी खूबसूरत आँखें कवियों के काव्य के लिए सदा ही प्रेरणा का स्त्रोत रही हैं। इनकी गहराई में डूबते-उतरते हुए कवियों ने इनके सौन्दर्य को लेकर बहुत से काव्य लिखे हैं। यत्र तत्र उन सभी काव्यों की सराहना भी की गई है। उनको पढ़कर ऐसे कवियों को दाद दिए बिना कोई नहीं रह सकता।
इनकी चितोरी चितवन से कोई बच नहीं सकता। इनके कटाक्ष बाण किसी को भी घायल कर सकते हैं। न जाने कितने ही ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों की गहन तपस्या इन्होंने भंग की है। आज भी इनके सौन्दर्य से किसी संसारी व्यक्ति का बच पाना सम्भव नहीं है।
गम्भीरता का भाव लिए आँखे व्यक्ति के मन की पवित्रता और गहराई को प्रकट करती हैं। सरलता और सहजता के भाव वाली आँखे मनुष्य के हृदय की विशालता को दर्शाती हैं। बच्चों की तरह चंचल आँखें मानव मन की चंचलता का परिचायक होती हैं। क्रूरता या निर्दयता के भाव वाली आँखों से सभी बचना चाहते हैं। क्रोध से भरी हुई आँखों से डरकर लोग सहम जाते हैं और किनारा करने में अपनी भलाई समझकर कहीं भी छुप जाते हैं।
किसी अपने के मिलन अथवा वियोग के समय ये अनायास ही बिन बुलाए हुए मेहमान की तरह टपक पड़ते हैं। प्रसन्नता आने पर हमारा साथ देते हैं। अत्यधिक कष्ट के समय आकर ये मनुष्य के मनोबल को कमजोर बनाते हैं।
ये आँसू किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को कमजोर बना सकते हैं। स्त्री या पुरुष दोनों पर ये समान रूप से अपना प्रभाव छोड़ती हैं। कठोर कहे जाने पुरुष भी असहनीय कष्ट या किसी अनहोनी के समय अपने इन आँसुओं को रोक नहीं पाते, तब उनकी तथाकथित कठोरता कहीं गायब हो जाती है।
स्त्रियों को तो वैसे भी कमजोर और करुणामयी कहा जाता है। इसलिए उन पर हर स्थिति का प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक होता है। इसीलिए उनके आँसू किसी-न-किसी बात पर छलक आते हैं। पुरुष प्राय: दोषारोपण करते हैं कि स्त्रियाँ इन आँसुओं का अपनी बात मनवाने के लिए हथियार के रूप में इस्तमाल करती हैं। हालांकि यह कहना उनकी सच्चाई पर प्रहार करना ही होता है। निस्सन्देह इसके अपवाद भी हो सकते हैं।
मक्कारों के घड़ियाली आँसुओं से सावधान रहने की बहुत आवश्यकता होती है। पता नहीं इन पर पिघल जाने वालों की पीठ में कब ये छुरा घोंप दें, कुछ नहीं कहा जा सकता। स्वार्थी लोग प्राय: ऐसे ही चकमा देते हैं।
ये आँसुओं से भरी आँखे वास्तव में दो हृदयों को जोड़ने के लिए एक पुल का कार्य करती हैं। इनकी माया अपरम्पार है। जो व्यक्ति इनके जाल में उलझ गया वह तो समझो काम से गया। जो इनसे बचकर निकल गया वह संयमी कुछ भी कर सकने में समर्थ होता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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