जीवन एक वर्ग पहेली की तरह चोकोर है जिसे हम लोगों के लिए सुलझाना टेढ़ी खीर जैसा है। हम चोकोर होना नहीं चाहते पर हमारे चाहने से कुछ नहीं होता।
हम अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं पर हमारी नजरों से ओझल वह मालिक हम सबकी डोर थामे रहता है। हमें ईश्वर कठपुतलियों की तरह जैसा चाहे वह नाच नचाता रहता है। यद्यपि वह हमें हमारे कर्मों के अनुसार ही सब कुछ देता है परंतु उसके न्याय को समझना जन साधारण के लिए संभव नहीं।
पहेली सुलझाते समय हम शब्द बनाते हैं व लिखते हैं पर फिट न बैठने पर उन्हें मिटाते हैं और सही शब्दों के बनने तक फिर-फिर यही क्रिया दोहराते हैं।
उसी तरह सारा जीवन हम बार-बार गलतियाँ करते हैं और क्षमा याचना कर भूल सुधारना चाहते हैं। यह बात अलग है कि हम उसमें सफल नहीं हो पाते।
आयुपर्यन्त हम शुभ की कामना करते हैं। अपनी जिम्मेवारियों को निपटाने में जुटे रहते हैं। दिन-रात चौबीसों घंटे जी तोड़ परिश्रम करते हैं और घर-परिवार, बन्धु-बांधवों व समाज के प्रति अपने दायित्व निभाते हैं। जब हमें यह लगता है कि सारे दायित्वों से मुक्त होकर अब हम चैन की सांस लेंगे तब वह मालिक घंटी बजा देता है और अपने पास बुला लेता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि अपनी होश सम्हालने से लेकर मृत्यु तक कोई ऐसा क्षण मानव जीवन में नहीं आता जब वह यह कह सके कि ये पल मैंने बड़े सुकून से गुजारे हैं। सारा समय जो मैंने गुजारा यह मेरा अपना है।
चोकोर होने का अर्थ है एक ही ढर्रे पर जीवन जीना। दूसरे शब्दों में कहें तो नीरस जीवन व्यतीत होना। केवल एक ही प्रकार से जीवन यापन करना तो बहुत ही कठिन होता है। मानव मन हमेशा कुछ-न-कुछ नया चाहता है क्योंकि उसे नवीनता ही भाती है।
एक ही आकृति को यदि बार-बार देखते रहें तो हम अपना आपा खोने लगते हैं और उसे उठाकर बाहर फैंक देना या बदल देना चाहते हैं। जीवन में यदि एकरूपता रहे तो भी मनुष्य परेशान हो जाता है। कभी-कभी डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। फिर बस डाक्टरों के चक्कर और पैसे की बरबादी होने लगती है।
चोकोर या वर्ग के अतिरिक्त और भी कई आकृतियाँ होती हैं उसी प्रकार जीवन में भी बहुविध रंग एवं परिस्थितियाँ होती हैं। ये स्थितियाँ सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि के रूप में हमारे समक्ष आती हैं। इन अलग-अलग रंगों में रंगे हम कभी प्रसन्न होते हैं और कभी चीख-पुकार करते हैं।
कल्पना कीजिए कि यदि ईश्वर सबको एक ही जैसा रंग-रूप देता तो चारों ओर एक ही शक्ल व एक ही रंग के लोग दिखते तब कितना बोरिंग लगता। इसी तरह सभी लाल, काले, सफेद या नीले किसी एक ही रंग के कपड़े पहनते तो वातावरण कैसा दिखाई देता? और यदि एक ही स्टाइल के कपड़े सभी पहनते तो सब भी अच्छा न लगता।
ऐसे ही सभी एक ही तरह के अन्न-फल खाते तब भी मनभावन न हो पाता। अगर सभी फल-फूल, पेड़-पौधे आदि एक ही रंग व लंबाई-चौड़ाई के होते तो प्रकृति कितनी बदरंग दिखाई देती। उसकी सुन्दरता उसकी विविधता में है।
ईश्वर की बनाई हुई इस सृष्टि में हर प्रकार की जो विविधता दिखाई देती है वह हमेशा हमें मोहित करती है।
संसार में रहते हुए हम ईश्वरीय चमत्कारों से चमत्कृत होते रहते हैं। हम उसके इस विधान में कोई कमी नहीं निकाल सकते। अपने जीवन होने वाले ऊबाऊपन का त्याग करके हमें उसका अनुग्रहीत होना चाहिए जिसने जीवन में सब कुछ दिया है।
चन्द्र प्रभा सूद
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