बहुत दुर्भाग्य का विषय है कि आधुनिक समय में अन्य जीवन मूल्यों की भाँति ही लोगों के हृदय में मित्रता के प्रति भी सन्देह का भाव कुछ अधिक बढ़ने लगा है। उनके विचार में हर मित्रता के पीछे कोई-न-कोई स्वार्थ छिपा होता हैं। उनका मानना यही है कि ऐसी कोई भी मित्रता इस संसार में नहीं हो सकती जिसके पीछे स्वार्थ की प्रधानता न हो अथवा उसमें छिपा हुआ न हो।
इस तथ्य का यही अर्थ कर सकते हैं की दोस्ती या मित्रता आज लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं रह गई। उसके स्थान पर मानव के मन और मस्तिष्क पर दिनोदिन स्वार्थ हावी होते जा रहे हैं। जिस दोस्ती की लोग कसमें खाया करते थे, वह आज बेमानी होती जा रही है। मनीषी कहते हैं कि वही मित्रता वास्तव में होती है जो श्मशान तक साथ निभाए। दूसरे शब्दों में कहें तो दोस्तों को मृत्यु ही अलग कर सकती है। जो मित्रता मित्र को मझधार में छोड़ दे, वह मित्रता नहीं हो सकती।
भगवान श्रीकृष्ण और गरीब ब्राह्मण सुदामा की मित्रता का उदाहरण आज भी दिया जाता है। उसका भी उनकी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं रह गया। यहाँ यही कहना है कि सच्ची मित्रता न धन-वैभव देखती है और न ही जात-कुजात या रंग-रूप। ऐसी मित्रता पा जाना तो किसी भी मनुष्य के लिए वरदान होता है, सौभाग्य का विषय होता है। ऐसी मित्रता पर मनुष्य को सदा गर्व करना चाहिए न कि सन्देह।
एक सच्चा मित्र अपने मित्र के विषय में उससे भी अधिक जनता है। यदि उसका मित्र कभी अकारण मुस्कराने लगे तो वह उसकी मुस्कुराहट के पीछे छिपे दर्द को पहचानकर झट से पूछ ही लेता है कि आज तुम उदास क्यों हो? कितना सुकून मिलता है इन शब्दों से। मन यह सोचकर प्रसन्न हो जाता है कि चलो इस भरी दुनिया में अपना कहने के लिए कोई तो है जो इतनी गहराई से उसे जानता-समझता है। उसके कन्धे पर सिर रखकर अपने सुख-दुख साझा किए जा सकते हैं।
इससे विपरीत आज लोग यही समझने लगे हैं कि जन्म-जन्मान्तरों से टूटे रिश्ते भी जुड़ सकते हैं बस सामने वाले को आपसे काम पड़ना चाहिए। कितनी छोटी सोच का परिचायक है यह वाक्य! इस प्रकार सोच रखने से संसार से दूसरों पर भरोसा ही उठ जाएगा। सभी लोग जब एक-दूसरे को संदेहास्पद नजरों से देखेंगे तो चारों और अफरा-तफरी का माहौल बन जाएगा। तब स्थिति बहुत विकट हो जाएगी। कोई भी व्यक्ति सामने वाले को किसी भी शर्त पर सहन नहीं कर पाएगा।
मनुष्य का संकुचित दृष्टिकोण उसके विनाश का कारण बन जाएगा। उसे हर कोई अपना शत्रु दिखाई देने लगेगा। वह किसी पर भी विश्वास नहीं कर सकेगा। तब उसे यही प्रतीत होगा कि हर व्यक्ति उसकी जान का दुश्मन है, उसे आगे बढ़ने से रोकने वाला है या उसकी टाँग खींच रहा है, जब अवसर मिलेगा वह उसकी हत्या करवाने से नहीं बाज आएगा। यानी अपने चारों ओर उसे असुरक्षा का वातावरण दिखाई देने लगेगा।
धन-वैभव से सम्पन्न उच्च पदासीन व्यक्ति अपने घमण्ड में चूर रहता है। वह हर सम्बन्ध और वस्तु को धन की कसौटी पर तौलने लगता है। उसे अपने समक्ष खड़ा हर इन्सान बौना प्रतीत होता है। इसलिए वह स्वयं को महान समझता हुआ सब पर अविश्वास करता है। इन स्थितियों की अति हो जाने पर मनुष्य को मानसिक रोगी बन जाने से कोई नहीं बचा सकता।
आखिर किसी-न-किसी साथी पर अपने मन की गहराई से विश्वास तो करना ही होगा, उसे अपना बनाना पड़ेगा। हर किसी को दूध में पड़ी हुई मक्खी की तरह निकालकर नहीं फैंका जा सकता। बहुत समय तक सामाजिक प्राणी मनुष्य अकेला नहीं रह सकता। उसे हर कदम पर सहारे की आवश्यकता होती है। यह सहारा उसे अपने मित्रों से मिल सकता है। इसलिए अपने झूठे अहं का परित्याग करके अपने विवेक से अच्छे और सच्चे मित्रों की खोज करनी चाहिए। अपने परिवारी जनों की तरह एक-दूसरे को उनकी कमियों के साथ ही स्वीकार करना चाहिए। सच कहूँ तो यही मित्रता हमारी सबसे बड़ी पूँजी हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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