सही मायने में जीने का अर्थ है कि मनुष्य अपने मन पर किसी प्रकार का बोझ न रहने दे। यह बोझ न हट सकने वाले एक भारी पत्थर के समान होता है जिसके कारण मनुष्य खुलकर साँस भी नहीं ले सकता। यह बोझ किसी भी कारण से हो सकते हैं। मनुष्य किसी-न-किसी कारण से परेशान रहता है, यह उसकी प्रकृति है। कभी बच्चों की समस्याओं के लेकर, कभी पत्नी की आकांक्षाओं के कारण, कभी भाई-बन्धुओं की आवश्यकताओं को लेकर, कभी व्यापार-व्यवसाय या नौकरी के तनाव को लेकर, कभी पड़ोसी से हुई झड़प के कारण यानी कोई भी कारण हो सकता है मनुष्य की परेशानियों का।
इन सबके बारे में सोचता हुआ वह इन सबके बोझ के तले दबता जाता है। वह हाथ-पैर पटकता रहता है इनसे मुक्त होने के लिए। पर आजीवन अपने मन पर पड़े बोझ से वह छुटकारा नहीं पा सकता। एक समस्या से जूझता हुआ वह सोचता है कि अब शीघ्र ही किनारा मिल जाएगा और वह सुख की साँस ले सकेगा। उस समस्या से अभी वह सुर्खरू भी नहीं हो पाता कि अगला बोझ उसे पीसने के लिए तैयार बैठा होता है। इस तरह यह क्रम अनवरत चलता रहता है।
एक बार किसी महात्मा जी ने अपने शिष्यों ने पूछा- "सबसे ज्यादा बोझ कौन-सा जीव उठाकर घूमता है।"
किसी ने कहा गधा तो किसी ने बैल, किसी ने ऊँट। शिष्यों ने अलग-अलग प्राणियों के नाम बताए। लेकिन महात्मा जी किसी के उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हुए। महात्मा जी ने हँसकर कहा- "गधे, बैल और ऊँट के ऊपर हम कुछ समय तक बोझ रखते हैं और फिर उसे उतार देते हैं, परन्तु इन्सान अपने मन के ऊपर मरते दम तक विचारों का बोझ लेकर घूमता है। किसी ने उसके साथ बुरा किया है उसे न भूलने का बोझ, आने वाले कल में क्या होगा इसका बोझ, अपने किए गए पापों का बोझ। इस तरह कई प्रकार के बोझ लेकर इन्सान अपना जीवन जीता है।"
महात्मा जी द्वारा कही गई ये बातें अक्षरशः सत्य हैं। मनुष्य किसी भी अरुचिकर बात को लेकर उसका पिष्टपेषण करता रहता है। इस कारण उसके मन में विद्वेष के बीज और गहरे होते जाते हैं। इसलिए वह चाहकर भी अपने मन से इन अनर्गल बातों के बोझ से निजात नहीं पा सकता। यदि वह अपने मन को थोड़ा उदार बना सके तो बहुत से दुखों से मुक्त हो सकता है। परन्तु बड़े दुख की बात है कि वह ऐसा कर नहीं पाता अथवा करना ही नहीं चाहता। मजे की बात तो यह है कि मनुष्य जानता है कि उसकी सोच गलत है, उसे अपने आचार-व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहिर। फिर भी वह अपनी संकुचित सोच से उभर नहीं पाता।
जिस दिन मनुष्य इस बोझ को अपने मन से उतारकर फैंक देगा, तभी सही मायने में वह जीवन जीने की कला सीख जाएगा। मनुष्य अनावश्यक ही आने वाले कल में होने वाली घटनाओं के विषय में सोचकर व्यर्थ ही दुखी होता रहता है। भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है कोई नहीं जानता। इसे केवल ईश्वर ही जानता है। ऊपर बैठे उस मालिक के मन की थाह पा सकना हम मनुष्यों के बस की बात नहीं है। इसलिए बिना मतलब जबर्दस्ती दुखों को अपने पास बुलाने या गले लगाने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता। जब तक वह इस बोझ से स्वयं को मुक्त नहीं करेगा, तब तक उसका मन अशान्त रहेगा। अपने मन को सुखी और शान्त रखने के लिए उसे स्वयं को अपने मन के बोझ से स्वतन्त्र करना ही होगा।
इसके लिए सज्जनों का सहकार आवश्यक है। उनके संसर्ग से कोई-न-कोई हल निकल आता है। अपने ग्रन्थों का अध्ययन करने से समस्याओं के निदान का मार्ग प्राप्त हो जाता है। सबसे बढ़कर ईश्वर से गुहार लगाओ तो मनुष्य को मन की शान्ति सहज उपलब्ध हो सकती है। कोई भी उपाय करके मन पर पड़े बोझ से छुटकारा पाने का रहस्य जान लेना चाहिए जिससे जीवन सरल और तनावरहित हो जाए।
चन्द्र प्रभा सूद
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