स्कूल में बच्चों के साथ किसी-न-किसी तरह की दुर्व्यवहार की घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा बदलता हुआ पारिवारिक ढाँचा। आजकल एकल परिवारों के चलते बच्चे अनावश्यक लाड-प्यार पाकर असहिष्णु बनते जा रहे हैं। प्रायः घरों में एक या दो बच्चे होते हैं। संयुक्त परिवारों के बच्चे अपेक्षाकृत अधिक सहनशील और मिलजुलकर रहने वाले होते हैं।
आजकल नानी, मासी, बुआ आदि के घर जाकर बच्चों का छुट्टियों में रहने का रिवाज समाप्त होता जा रहा है। माता-पिता को विश्वास ही नहीं आता कि वहाँ उनके बच्चों की देखभाल अच्छी तरह से हो सकेगी। इसलिए उन बच्चों को दूसरों के साथ मिलकर रहना नहीं आता। ऐसे स्वयं को बचपन से ही खुदा मानने लगते हैं। ये बच्चे अपनी ही दुनिया मे खोए रहते हैं, जरा-सी भी दखलअंदाजी सहन नहीं कर सकते। ऊना मनचाहा न होने पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं।
यह समस्या उन बच्चों की अधिक है जो धनाढ्य परिवारों से आते हैं। वे अपने समक्ष किसी को कुछ नहीं नहीं समझते। पैसे के बल पर ऐसे बच्चों के अपने गुट बन जाते हैं। वे उन बच्चों का उपहास करने या दूसरे बच्चों को धकियाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उनके तथाकथित चेले उनकी शह पर किसी भी बच्चे से बदसलूकी करने में नहीं हिचकिचाते। बस उनकी दादागिरी बरकरार रहनी चाहिए।
बच्चे आपस में मिलजुलकर रहना ही नहीं चाहते। अपनी कक्षा से बाहर किसी ओर कक्षा के लिए जाते समय भी धक्कामुक्की वाले कार्यक्रम चलते रहते हैं। खेल के मैदान में तो मानो पूरी आजादी मिल जाती है मनमानी करने की। इसी तरह बस में भी कुछ बच्चों की दादागिरी चलती रहती है। कमजोर बच्चे उनकी इस दादागिरी का शिकार होते रहते हैं। डर के कारण वे न तो माता-पिता को शिकायत करते हैं और न ही अपनी अध्यापिका को ही कुछ बता सकते हैं।
जो बच्चे कमजोर वर्ग से आते हैं, वे अधिक शिकार बनते हैं। उच्च वर्ग के बच्चे उन बच्चों को अपने साथ देखना ही नहीं चाहते। उन पर फब्तियाँ कसना, उन्हें क्लास में, केंटीन में, खेल के मैदान में अपमानित करना वे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। इन बच्चों को धक्का देना, इनके साथ मारपीट करना मानो नित्य का काम है। इन बच्चों को उनकी गरीबी का अहसास करवाने से भी ये बच्चे नहीं चूकते। इन बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता पर भी अपमानजनक टिप्पणियों भी करते रहते हैं।
बड़ी कक्षाओं के बच्चे अक्सर हम छोटे बच्चों को परेशान करते हैं। उनका खाना लेकर खा जाते हैं और उनके पैसे छीन लेते हैं। फिर उन्हें किसी को न बताने के लिए धमकाते भी हैं। ये छोटे बच्चे भयवश किसी को नहीं बताते और झूठ बोलने के लिए बहाने गढ़ते हैं।
स्कूलों र्मे बने गुटों में अक्सर मारपीट होती रहती है। इसके अलावा बोर्डर्स और डेस्कालर्स के भी झगड़े होते रहते हैं। इसके लिए चाकू-छुरे भी निकल आते हैं। कभी-कभार पिस्तौल भी निकल आती हैं। टी वी व समाचारपत्रों में ऐसी घटनाओं की चर्चा होती रहती है कि स्कूल में पिस्तौल से या चाकू मारकर किसी बच्चे ने अपने साथियों की हत्या का दी।
इस प्रकार स्कूलों में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं। माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चे को मानसिक रूप से इन समस्याओं से जूझने के लिए तैयार करें। उन्हें समझाएँ कि यदि कोई दुर्व्यवहार करे तो उसकी शिकायत अपनी क्लास टीचर से करें अथवा घर आकर अपने माता-पिता को बताएँ, जिससे इन पर रोक लगाई जा सके।
चन्द्र प्रभा सूद
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