मनुष्य सुख और शान्ति से अपने जीवन को व्यतीत करना चाहता है। प्राय: मनुष्य किसी प्रकार के झमेले में न पड़कर उससे दूर रहना चाहते हैं। अपने घर-परिवार के दायित्वो को यदि वह पूर्णरूपेण निभा ले तो उसका जीवन सफल कहलाता है। वह एक कामयाब इंसान बन जाता है।
महाभारत के शान्ति पर्व में महर्षि वेदव्यास जी ने कहा है-
कुभार्यां च कुपुत्रं च कुराजानं कुसीहृदम्।
कुसंबंधं कुदेशं च दूरत: परित्यजेत्॥
अर्थात कुपत्नी, कुपुत्र, कुराजा, कुमित्र, कुसबंधी और कुदेश को शीघ्र त्याग देना चाहिए।
घर में पत्नी का कार्य सबके साथ ही सामंजस्य बनाकर रहना होता है। यदि वह ऐसा नहीं करती और सदा अपनी मनमानी करती है। घर में रहकर भी यदि वह अपने घर की नहीं हो सकती तब उस घर पर हर समय कलह-क्लेश रहता है। यह स्थिति अच्छी नहीं है। हमारे सयाने कहते थे कि जिस घर में ऐसी स्थिति होती है वहाँ घर के मटकों का पानी भी समाप्त हो जाता है। घर की बात जब सड़क पर आ जाती है तो उस घर को सब बड़ी ही बेचारगी वाली नजरों से देखते हैं। इसीलिए ऐसी पत्नी का परित्याग करना चाहिए।
पुत्र जब कुपुत्र बन जाए तब घर-परिवार बरबादी के कगार पर आ जाता है। समाज में वे उपहास का पात्र बनते हैं। वह माता-पिता के संताप का कारण बनता है। अपनी कुसंगति के कारण धन-संपत्ति की बर्बादी करता है। छोटे-बड़े का सम्मान करना वह भूल जाता है। उसके घर में रहते हुए सदा ही झगड़े होते रहते हैं। उस समय ऐसे कुपुत्र से किनारा कर लेना श्रेयस्कर होता है।
राजा यदि कुराजा हो तो उस देश को तत्काल छोड़ देना चाहिए। उस राज्य में न्याय व्यवस्था चरमराने लगती हैं, शीघ्र ही अराजकता अपने पैर जमाने लगती है। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी जैसी समस्याएँ सिर उठाने लगती हैं। ऐसे देश पर कोई भी अन्य राष्ट्र आसानी अपना अधिकार कर सकता है। वहाँ के निवासियों की जान-माल सुरक्षित नहीं रहता और उनका जीवन नरक के समान कष्टदायी हो जाता है। ऐसे देश को छोड़कर अन्यत्र जाने वाला सुखी हो जाता है।
कुमित्र अपने मित्र का हितचिन्तक नहीं होता और न ही उसे कभी सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। वह बुराइयों के दलदल में उसे घसीट कर ले जाता है। जहाँ से उसका लौटना बहुत ही कठिन हो जाता है। सबसे मजे की बात यह है कि वह अपने साथी को मझधार छोड़कर किनारा कर लेता है। ऐसे अहित करने वाले मित्र से मनुष्य को शीघ्रातिशीघ्र छुटकारा पाने का यत्न करना चाहिए।
कुसंबंधी भी कभी मनुष्य को अच्छी सलाह नहीं देते। वे सदा ही उसके जीवन, धन-सम्पत्ति, मान -सम्मान आदि को नष्ट करने के प्रयास में लगे रहते हैं। वे कभी नहीं चाहते कि उनका कोई संबंधी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़े या समाज में कभी उसकी वाहवाही हो। वे मीठी छुरी की तरह होते हैं जो मुँह के सामने सच्चे हितचिन्तक की तरह बर्ताव करते हैं पर पीठ पीछे उसकी जड़ों में मट्ठा डालने का कार्य बखूबी करते हैं। ऐसे कुसंबधियोंसे दूरी बनाकर रहना ही उसके हित में होता है।
कुदेश में रहना बहुत ही कष्टप्रद होता है। कुराजा के रहते देश की स्थिति बहुत ही डाँवाडोल हो जाती है। सज्जनों के लिए उस स्थान पर रहना बहुत दूभर होने लगता है। वहाँ पर रहने वाले सभी लोग मनमाना आचरण करते हैं। इसलिए ऐसी परिस्थिति में संवेदनशील व्यक्ति के लिए वह देश छोड़कर अन्यत्र चले जाना हितकर होता है।
दुराचारिणी पत्नी, कुपुत्र, कुमार्गगामी मित्र, कुराजा और अपनी जड़ें काटने वाले संबंधियों का नित्य त्याग करना चाहिए। सज्जनों को अपने देश का मोह छोड़कर कुदेश से चले जाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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