मनीषी कहते हैं कि हर व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन अवश्य रहना चाहिए। इससे आत्मिक शक्ति बढ़ती है। ऋषि-मुनि मौन धारण करके अपनी आध्यात्मिक शक्ति का संवर्धन किया करते थे। यही मौन मूर्खों के लिए उस समय वरदान बन जाता है जब वे विद्वत सभा में बैठे होते हैं। किसी भी विषय पर विद्वत चर्चा में वे कुछ भी बोल पाने या अपने सुझाव सबके समक्ष रख पाने में असमर्थ होते हैं। इसलिए विद्वानों के मध्य उनका न बोलना यानी चुप लगा जाना ही उनके लिए उपयुक्त होता है। किसी कवि ने इस विषय पर अपने विचार बड़े ही सुन्दर शब्दों में हमारे समक्ष निम्न श्लोक के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं-
स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा
विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः।
विशेषतः सर्वविदां समाजे
विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥
अर्थात अपनी मूर्खता को छिपाने के लिए भगवान ने मूर्खों को मौन धारण करने का एक अद्भुत सुरक्षा कवच दिया है, जो उनके अधीन भी है। विद्वानों से भरी सभा मे मौन रहना मूर्खों के लिये आभूषण से कम नहीं है।
कवि के कथनानुसार मूर्ख व्यक्ति को विद्वानों की सभा में अपना मुँह नहीं खोलना चाहिए। इसका कारण उसका अल्प ज्ञान होता है। वे स्वयं को महान विद्वान सिद्ध करने के लिए कितना भी प्रपञ्च क्यों न कर लें, उनकी वास्तविक योग्यता विद्वत सभा में ही परखी जा सकती है। वहाँ वे जानबूझकर चुप लगा लेते हैं ताकि उनकी पोल न खुल जाए। यदि किसी कारणवश ऐसा हो जाए तो उनकी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। सब लोगों को ज्ञात हो जाएगा कि उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं, वे बस दूसरों को बेवकूफ बनाकर, आज तक अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं।
ऐसे तथाकथित विद्वान तभी तक ही ज्ञान के अखाड़े के पहलवान बने रह सकते हैं, जब तक उनका समय बलवान होता है। जब उनके अहंकार के कारण समय उनका साथ नहीं देता तब कोई भी व्यक्ति उनको घास नहीं डालता। उस समय जब उनकी टाँय-टाँय फिस हो जाती है तब उनके लिए मुँह छिपाना कठिन हो जाता है। विद्वत सभा से वे तब अलग-थलग हो जाते हैं अथवा कर दिए जाते हैं। विद्वान उनसे किनारा कर लेते हैं और अपने से हेय कहते हुए जिनसे उन्होंने किनारा किया होता है, उनके पास वे तिरस्कार के भय से जा नहीं पाते। इसलिए सबसे अपने पूर्वकृत व्यवहार के कारण वे हर स्थान से उपेक्षित होकर अकेले पड़ जाते हैं।
ऐसे महानुभावों का विद्वत्सभा में मौन रहना उनके स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। इससे उनका सम्मान बचे रहने की सम्भावना बनी रहती है। जितना अपने पास ज्ञान हो, उसके अनुसार ही यदि अपना प्रचार-प्रसार किया जाए तो सदा ही सुख का कारण होता है। ऐसा करने से कलई खुल जाने का भय से मन से सदा के लिए निकल जाता है। फिर किसी प्रकार का तनाव भी नहीं रहता। मनुष्य बिना किसी दुविधा के सरलतापूर्वक जीवन व्यतीत कर सकता है।
कवि ने मौन को मूर्खों का सुरक्षा कवच कहा है। इसकी आड़ में इनका अल्पज्ञान दूसरों के सामने नहीं आ पाता, यदि ये सावधान रह सकें तो। वास्तव में यह मौन इन लोगों को ईश्वर ने उपहार स्वरूप प्रदान किया है। इसके लिए उन्हें परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिए। इस मौन का आश्रय लेकर ये लोग चाहें तो अपनी सहायता स्वयं कर सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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