भरतीय संस्कृति में गाय को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। माता की भाँति इसकी पूजा की जाती है। प्राचीनकाल में गौधन की संख्या के आधार पर व्यक्ति की समृद्धि का आकलन किया जाता था। प्रत्येक गृहस्थ को यह निर्देश था कि वह खाना बनाते समय गाय के लिए एक रोटी अवश्य बनाए। गाय का दूध अमृत तुल्य माना जाता है जिसे पीकर मनुष्य पुष्ट होता है। कुछ मनीषी कहते हैं कि इसके शरीर में तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है।
गाय का महात्म्य दर्शाने के लिए बहुत से मनीषियों ने लिखा है। महाकवि कालिदास सहित अनेक विद्वानों ने इस सुप्रसिद्ध कथा का वर्णन किया है कि अयोध्या के राजा दिलीप बहुत धर्मात्मा और प्रजावत्सल थे। प्रौढावस्था तक राजा दिलीप के घर कोई सन्तान नहीं हुई।एक दिन पत्नी सुदक्षिणा को लेकर गुरु वसिष्ठ के आश्रम में वे सन्तान प्राप्ति का उपाय पूछने के लिए गए।
गुरु वसिष्ठ ध्यानस्थ होकर बोले- "राजन्।यदि आप मेंरे आश्रम में स्थित कामधेनु की पुत्री नन्दिनी गौ की सेवा करेंगे तो उसकी कृपा से आपके घर सन्तान अवश्य होगी।"
राजा रानी सुदक्षिणा के साथ महर्षि के तपोवन में गो-सेवा करने लगे। प्रतिदिन दोनों गाय की पूजा करते। राजा गाय को चरने के लिए ले जाते। उसके पीछे-पीछे छाया की तरह रहते। उसके जल पीने के पश्चात ही राजा जल पीते थे। उसे नहलाते-धुलाते और पूर्ण समर्पण से गाय की सेवा करते। गाय के सो जाने पर वे दोनों सोते और प्रातः उसके जागने से पूर्व उठ जाते थे। इस प्रकार इक्कीस दिन तक निरन्तर गाय की सेवा करते रहे। बाईसवें दिन राजा गाय चरा रहे थे, एक शेर कहीं से आकर अचानक गाय पर टूट पड़ा। राजा ने सिंह को खदेड़ने के लिए धनुष हाथ में उठाया तो उनके हाथ की अँगुलियाँ बाण से चिपक गईं। तब शेर ने मनुष्य की वाणी में राजा से कहा- "राजन्। तुम्हारा बाण मुझ पर नहीं चल सकता। मैं भगवान शंकर का सेवक कुम्भोदर हूँ। इन वृक्षों की सेवा के लिए भगवान शिव ने मुझे नियुक्त किया है और कहा है कि जो भी जीव यहाँ आएगा वहीं तुम्हारा आहार होगा। आज आहार के रूप में यह गाय मिली है, अतः तुम लौट जाओ।"
राजा ने कहा- "सिंहराज! जैसे शंकर जी के इस वृक्ष की रक्षा करना आपका कर्तव्य है, उसी प्रकार गुरुदेव की इस गाय की रक्षा करना मेरा धर्म है। आपके आहार के लिए मैं अपना शरीर अर्पित करता हूँ। आप मुझे खाकर अपनी क्षुधा शान्त करें, इस गाय को छोड़ दें।"
सिंह ने राजा को बहुत समझाया, पर राजा टस-से-मस न हुआ। राजा शस्त्र त्यागकर सिंह के समक्ष आँखें बन्द करके बैठ गए और मृत्यु की प्रतिक्षा करने लगे। तभी उन्हें नन्दिनी की मधुर वाणी सुनाई दी- "वत्स! उठो, तुम्हारी परीक्षा हो चुकी है। मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, वर माँगो।"
राजा ने वंश चलाने के लिए पुत्र की याचना की। तब गौ ने कहा- "मेरा दूध दोहकर पी लो। तुम्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी।"
सांयकाल आश्रम लौटकर राजा ने गुरु वसिष्ठ को सारी घटना बतायी। उन्होंने गोदोहन के पश्चात राजा और रानी को आशीर्वाद के साथ दूध पीने को दिया। समयानुसार उनके घर पुत्र रघु का जन्म हुआ, जिनके नाम पर इनका वंश ‘रघुवंश’ कहा जाने लगा।
गाय के विषय में हमारे देश में कुछ मान्यताएँ प्रचलित हैं, उनका जिक्र मैं करना चाहती हूँ। गाय को सभी सुखों का दाता माना जाता है। कहते हैं जिस स्थान पर खड़ी होकर गाय चैन की साँस लेती है। वहाँ वास्तुदोष समाप्त हो जाते हैं। जहाँ गाय खुशी से रम्भाने लगे, वहाँ देव पुष्प वर्षा करते हैं। गाय के गले में घण्टी बजने से उसकी आरती होती है। जो गाय की सेवा करता है उस पर आने वाली सभी विपदाओं को वह हर लेती है। गाय के खुर्र में नागदेवता का वास होता है। जहाँ वह विचरण करती है, वहाँ साँप और बिच्छू नहीं आते।
गाय के दूध में स्वर्ण तत्व पाया जाता है, जो रोगों की क्षमता को कम करता है। गाय की पूँछ से झाड़ा लगाने पर बुरी नजर उतर जाती है। गाय की पीठ पर उभरे हुआ कुबड़ में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। रोजाना सुबह आधा घण्टा उसकी कुबड़ पर हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है। एक गाय को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है। गाय के दूध, घी, मख्खन, दही, गोबर, गोमूत्र से बना पञ्चगव्य हजारों रोगों की दवा है। इसके सेवन से असाध्य रोग मिटते हैं।
भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो अपनी हथेली पर गुड़ रखकर गाय को चटाएँ। हथेली पर रखा गुड़ गाय को चाटने से भाग्य रेखा खुल जाती है। गाय के चारों चरणों के बीच से निकलकर परिक्रमा करने से इन्सान भयमुक्त हो जाता है। बछड़े के जन्म के पश्चात पहला दूध बाँझ स्त्री को पिलाने से बाँझपन मिट जाता है। स्वस्थ गाय के मूत्र का दो तोला सत कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं। गाय वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे देखती है, उस ऊपर उसकी कृपा हो जाती है। काली गाय की पूजा करने से नवग्रह शान्त रहते हैं। धर्मपूर्वक गौ पूजन से शत्रु दोष दूर होते हैं।
गाय को एक चलता फिरता मन्दिर मानते हैं। गाय के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं। कोई भी शुभकार्य अटका हुआ हो, बार-बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो, तो गाय के कान में कहने से रुका हुआ काम बन जाता है।
इस प्रकार गाय मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी जीव है। इसकी हत्या करना मनुष्य की हत्या करने के समान दण्डनीय अपराध माना जाता है। सन 1966 में करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में सन्तों ने गौवंश की हत्या रोकने के लिए आन्दोलन किया था। आज भी यदा कदा गाय की हत्या रोकने और सुरक्षा प्रदान करने की चर्चा होती रहती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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