आयु प्राप्त होने पर मनुष्य जब बुजुर्ग हो जाते हैं तो उन्हें बहुत अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। वे छोटे बच्चों की तरह संवेदनशील हो जाते हैं। बात-बात पर तुनक जाते हैं, रूठने-मानने और जिद करने लगते हैं। बच्चों की जरा-सी भी अनदेखी सहन नहीं कर पाते। इसलिए हर बात पर वे बिफर जाते हैं। किसी भी प्रकार की मनपसन्द बात न होने पर चीखने-चिल्लाने लगते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि कोई भी उन्हें नहीं चाहता, वे घर के सदस्यों पर बोझ हैं। इस प्रकार विचार करते हुए कभी-कभी अनावश्यक-सी बात हो जाने पर रोने लगते हैं।
उनका शरीर अशक्त होने लगता है। शरीर कमजोर हो जाने के कारण उनका साथ छोड़ने लगता है। उन्हें अपने कार्यों को करने में भी परेशानी होने लगती है। हर छोटे-बड़े कार्य के लिए उन्हें दूसरों पर आश्रित होना पड़ता है। जो व्यक्ति बच्चों को पाल-पोसकर, पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाते हैं, जब उन्हीं से अपने लिए बेरुखी का व्यवहार पाते हैं तो सहन नहीं कर पाते। तब वे टूटने लगते हैं और उनके सपने बिखर जाते हैं।
इसलिए वे मनसिक रूप से स्वयं को असहाय अनुभव करने लगते हैं। तन और मन दोनों से आहत होने पर रोग शीघ्र ही उन पर आक्रमण करने लगते हैं।
उस समय उन्हें अपनों के साथ की बहुत आवश्यकता होती है। आयु के इस पड़ाव में यदि उनके अपने बच्चे भी उनकी परवाह नहीं करेंगे तब उन बुजुर्गों की दुर्दशा होने लगती है। बच्चों का नैतिक दायित्व है कि इस असहाय अवस्था में उनकी लाठी बनें। उनकी सेवा-सुश्रुषा करें।
जिन बच्चों को समय रहते माता-पिता संस्कारी बनाते हैं वे अपने कर्त्तव्यों से मुँह नहीं मोड़ते बल्कि उस असहाय अवस्था में उनकी सभी जरूरतों को पूरा करते हुए उन्हें अकेलेपन के अहसास से दूर रखते हैं।
बच्चे अपने माता-पिता की सारी धन-सम्पत्ति, व्यापार आदि को जायज-नाजायज तरीके से हथिया लेते हैं, उन्हें ईमोशनली ब्लैकमेल भी करते हैं। तब फिर उन्हें असहाय अवस्था में दर-बदर की ठोकरें खाने के लिए बेसहारा छोड़ देते हैं।
इसीलिए कुकुरमुत्ते की तरह स्थान-स्थान पर 'ओल्ड एज होम्स' खुलते जा रहे हैं। कई सरकारी होम्स भी हैं। इनमें से कुछ होम्स में बुजुर्गों को मुफ्त सुविधाएँ दी जाती हैं और कुछ होम्स में वृद्ध शुल्क देकर रहते हैं। केवल महिलाओं के लिए भी होम्स हैं। शारीरीक रूप से असमर्थ और बीमार वृद्धों के लिए होम्स हैं। इनके अतिरिक्त स्वयंसेवी संस्थाएँ भी बुजुर्गों की सहायता के लिए तत्पर रहती हैं।
कुछ ओल्ड होम्स में एक निश्चित राशि देकर वृद्ध लोग रह सकते हैं। वहाँ उनकी सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है। आवश्यकता होने पर उनको चिकित्सा की सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई जाती हैं।
पुलिस स्टेशन पर भी सीनियर सिटीजन का रिकार्ड रखा जाता है उसके लिए उन्हें वहाँ पंजीकरण करवाना होता है। फिर समय-समय पर पुलिस उनकी देखभाल करती है। इनके अतिरिक्त विद्यालयों में भी ऐसे कार्यक्रम चलाए जाते हैं। बच्चे ऐसे अकेले रहने वाले बुजुर्गों के घर जाकर उनके साथ समय व्यतीत करते हैं। उनकी परेशानियों को दूर करने का यत्न करते हैं।
सीनियर सिटीजनों को रेल और हवाई यात्राओं के किराए में छूट दी जाती है। इसी प्रकार बैंक और पोस्ट आफिस में जमा किए गए धन पर अतिरिक्त ब्याज दिया जाता है। उनकी सुरक्षित वृद्धावस्था के लिए मेडिक्लेम पालिसी भी उपलब्ध हैं। जिससे वे अपना ईलाज करवाकर स्वय को सुरक्षित अनुभव कर सकते हैं।
बैंक वृद्धों की पार्पर्टी पर उन्हें लोन भी देते हैं जिससे उन्हें जीवन यापन करने में सुविधा हो सके।
ऐसे नालायक बच्चों से भी माता-पिता को भरण-पोषण का अधिकार भारतीय संविधान देता है। बजुर्गों के संवैधानिक अधिकार निम्नलिखित है-
मेंटेनस एंड वेलफेयर आफ पेरेंटस एडं सीनियर सिटीजनस एक MWPSCA के अनुसार बच्चों का बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार की स्थिति में शीघ्र ही कानूनी रूप से उनके बच्चों अथवा नाती-पोतों(grand childern) से उनकी देखभाल के लिए राशि दें। इसका पालन न करने पर ₹5000 का जुर्माना तथा तीन माह तक की जेल की सजा का प्रावधान है। उन्हें माता-पिता की जयदाद से बेदखल किया जा सकता है। अभी 15 सितम्बर 2017 को असम विधानसभा ने बिल पारित किया है कि जो सरकारी कर्मचारी अपने बुजुर्ग माता-पिता अथवा दिव्यांग भाई या बहन का ध्य्यन नहीं रखेंग, शिकायत मिलने पर एक निश्चित राशि उनके वेतन से काटकर उनके भरण-पोषण के लिए दी जाएगी।
चन्द्र प्रभा सूद
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