ब्रह्माण्ड में मानव आदि जीवों के अतिरिक्त भूत-प्रेतादि के अस्तित्व से इन्कार नहीं किया जा सकता। इनका भी अपना एक संसार होता है। इनके प्रति लोगों के मन में डर का भाव रहता है। इसीलिए तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में लिखा-
भूत-पिशाच निकट नहीं आवै, महावीर जब नाम सुनावै।
अर्थात हनुमान जी का स्मरण करने वालों के पास भूत-प्रेत नहीं आते।
बारबार ये भूत-प्रेत चर्चा का विषय बनते रहते हैं। हर व्यक्ति के मन में इनके बारे जिज्ञासा उठती रहती है। मानव मन की इसी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए ही कितने प्रोड्यूसरो ने इस विषय को लेकर फिल्में बनाईं हैं। प्राय: सभी प्रमुख टी.वी. चैनल भी इस विषय को लेकर सीरियल बनाते रहते हैं।
इसमें कितनी सच्चाई है हम नहीं जानते। इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि इसके बारे चर्चाएँ होती रहती हैं और लोग नमक-मिर्च लगाकर बताते रहते हैं। यह तक कहने से नहीं चूकते कि हमने उसे देखा है। इस विषय में तरह-तरह की कल्पनाएँ लोग करते हैं।
पूरे विश्व में एतद्दविषयक घटनाओं की चर्चा होती रहती है। जिन घरों के विषय में इनके होने की अफवाह होती है, उस घर में डर के कारण कोई भी रहना पसन्द नहीं करता। ऐसी इमारतों को लोग भूत बंगला कहकर लावारिस छोड़ देते हैं। धीरे-धीरे वे भवन बिना रख-रखाव के खाली पड़े हुए खण्डर बन जाते हैं।
पीपल के पेड़ के विषय में यह आम धारणा बन चुकी है कि रात के समय वहाँ भूतों का वास होता है। अत: शाम के ढलते ही लोग पीपल के पेड़ के पास जाने से डरते हैं। इस मिथ के पीछे शायद पीपल की सुरक्षा कारण हो सकता है। यही एकमात्र पेड़ है जो हमेशा हमें आक्सीजन देता है। यज्ञ और अन्य धार्मिक कार्यों में इसे शुभ माना जाता है तथा पीपल के पेड़ का प्रयोग किया जाता है।
ऐसी मान्यता आम है कि जिन लोगों पर इनका साया होता है, वे बाला जी दर्शन के लिए जाते है और स्वस्थ हो जाते हैं। बहुत से लोग ज्योतिषियों और तान्त्रिकों के चक्कर में भी पड़कर धन व समय बरबाद करते हैं। इनसे अपनी सुरक्षा के लिए गाँवों में आज भी झाँड़-फूँक का ही सहारा लिया जाता है। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी से दुश्मनी निकालने के लिए वहाँ उसे भूत या चुड़ैल कहकर जान से भी मार दिया जाता है। जिसके विषय में सोशल मीडिया, टी. वी. अथवा समाचार पत्र हमें बताते रहते हैं। प्राय: पत्र-पत्रिकाएँ भी इस विषय में कहानियाँ और लेख प्रकाशित करके सबका मनोरंजन करती रहती हैं।
विद्वानों का कथन है कि जिन लोगों की अकाल मृत्यु होती है या जो आत्महत्या करते हैं, उनका जीवात्मा शून्य में भटकता रहता है। जितनी आयु अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार मनुष्य के लिए ईश्वर ने निश्चित की होती है, उस आयु के शेष बचे हुए समय तक उसे जन्म नहीं मिलता। वही भूतादि कहलाते हैं।
शून्य में विचरण करने वालों में कुछ पुण्यात्मा होते हैं जो उस अवस्था में भी दूसरों का भला करने की सोचते हैं। कुछ पापात्मा होते हैं जो तोड़-फोड़ करते हैं और दूसरों को कष्ट देते हैं। इन्हें वश में करने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं। इनकी खोज करने के लिए जिज्ञासु, लोगों द्वारा निर्दिष्ट स्थानों पर जाते हैं। टी. वी. वाले यदाकदा ये सब दिखाते रहते हैं।
माँ बगुलामुखी की सिद्धि करके एवं आराधना करके इनसे मुक्ति पाई जा सकती है। जो भी हो, इनका अस्तित्व भी है और ये ब्रह्माण्ड में हमारे साथ ही विचरण करते हैं। वैज्ञानिक कुछ भी कहते रहें पर लोगों के मन में गहरे पैठे हुए इस संस्कार से छुटकारा पाना सरल नहीं है।
चन्द्र प्रभा सूद
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