जैसे जैसे बाकी मुल्क की तरह देश की राजधानी दिल्ली में भी इलेक्शन पास आते जा रहे हैं , वैसे वैसे एक के बाद एक मुफ्तखोरों के लिए पिटारे खुलते जा रहे हैं । बिजली फ्री, पानी फ्री, महिलाओं के लिए बस यात्रा फ्री, साठ से ऊपर वालों के लिए तीर्थ यात्रा फ्री, और तो और वाई फाई डेटा भी फ्री । अभी तो इलेक्शन में और तीन चार महीने बाकी हैं तो चुपचाप तेल देखिए और तेल की धार देखिए कि और क्या क्या मुफ्त में मिलने वाला हैं । मेरे आपके टैक्स के पैसों से, जीएसटी के जज़िया से मुफ्तखोर माल-ए-मुफ्त दिल-ए -बेरहम तरुन्नम में गाते हुए ऐश कर रहे हैं । बीएमडब्लू कारों के वे मालिक जिनके पास पचास साठ हज़ार की रिश्वत के एवज में बने बीपीएल यानि बिलो पॉवर्टी लाइन वाले कार्ड है, उनके तो और भी मज़े ही मज़े हैं । एयर कंडिशन्ड रेलों से मुफ्त में तीर्थ यात्रा कर अपने सारे पाप धोने का इससे अच्छा मौका कब मिलता । दरअसल जिन अच्छे दिनों का वायदा बीजेपी ने किया था - पीने के गंदे पानी, कूड़े के पर्वतों और रोमांटिक धुंध का अहसास कराती दमघोंटू प्रदूषण परतों के बीच लाया तो केजरीवाल ही है । और देखो बड़े हक़ से चारों तरफ चुनौती देते पोस्टर भी दांये बाएं ऊपर नीचे चिपका दिए है कि जिसने जो उखाड़ना है उखाड़ लो - "दिल्ली में तो केजरीवाल" ।
कांग्रेसी और भाजपाई पंगत में बैठ भी नही पाए थे कि केजरीवाल पत्तल दोने उठा कर भाग गया । दोनों एक दूसरे का मुंह ताक रहे है पर कर कुछ भी नही पा रहे ।
चालीस और पचास और उनके बाद के दशकों में पैदा हुए लोग होश संभालने के बाद से देश में राजनीति और इसके खिलाड़ियों का ऐसा पतन देख कर रोज़ बस चुपचाप दुःखी हो लेते हैं। चुपचाप इसलिए कि जैसे ही कुछ बोलते हैं तो फौरन यार दोस्त और परिचित कोई न कोई लेबल चिपका देते हैं ; अच्छा तो आप कम्युनिस्ट है - या फिर आप तो इटली वाले कांग्रेसी है या फिर और कुछ नही तो मोदी भक्त का लेबल तो सबकी ऊपर वाली जेब में है ही ।
असल बात ये है कि जिस विचारधारा के साथ उनकी सहानुभूति है या फिर खिलाफत है - उसी के हिसाब से उनके रिएक्शन भी तय होते है । जैसे लेपटॉप बांटना कभी रिश्वत के रूप में देखा जा सकता है तो कभी युवाओं के सशक्तिकरण के रूप में । इसी तरह इलेक्शन से पहले धोती, चावल ,साड़ियां, प्रेशर कुकर वगैरा बाँटना भी ऐसे ही परिभाषित होता है । कब कौन सा निर्णय सेक्युलर हो जाए या कम्यूनल यह भी डिपेंड करता है कि कौन सी पार्टी और किसके लिए कर रही है । संजीदा लोगों की कोफ्त की सबसे बड़ी वजह यह है कि वे अक्सर अच्छे खासे पढ़े लिखे और बुद्धिजीवियों को विचारधाराओं के चश्मे अलग अलग जगहों पर अवचेतन में पड़ी धार्मिक आस्थाओं के हिसाब से बदलते देखते हैं।
दरअसल दोष उनका भी नही, बदलती उन फ़िज़ाओं का है जिनमे खौफ की आहट है।
केजरीवाल हकीकत में परिष्कृत रूप में वही कर रहा है जो देश के अलग अलग राजनीतिक दल पिछले बहत्तर बरसों में क्रूड रूप में पूरे देश में करते आये हैं । फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि पहले दारू की थैलियां , बिरयानी की देगें, हलवे पूरी और नगदी बंटती थी अब बिजली, पानी, बसों की टिकटें और तीर्थयात्रा का पुण्य बंट रहा है । क्योंकि केजरीवाल पुराने सियासी मगरमच्छों की तरह गंवार अनपढ़ नही बल्कि उच्च शिक्षा प्राप्त राजस्व अधिकारी है तो उसे अलग अलग तरह के तुष्टिकरण के समीकरण बैठाने दूसरोँ से इक्कीस ही आते हैं ।
कांग्रसियों के खिलाफ एक तरह का बुद्धिजीवी वर्ग खुश और चुप है और उन्हें केजरीवाल की इन नीतियों में कोई दोष नज़र नही आ रहा । उनकी संतुष्टि इसी में है कि इस इलेक्शन में कांग्रेस की ऐसी की तैसी हो जाएगी । बीजेपी के खिलाफ दूसरी तरह के बुद्धिजीवी प्लस अल्पसंख्यक वर्ग को भी केजरीवाल की मुफ्तखोरी की चालबाजियों से कोई आपत्ति नही है । वो भी खुश है कि राजधानी में मोदी को दिन रात उंगली करने वाला एक बन्दा तो है ।
रही आपकी मेरी यानि आम जनता की बात । मैं तो लेबल चिपकने के डर से वैसे ही चुप रहता हूँ । आप की आप जानों । किसी दिन आ जाओ । गर्म गर्म पकौड़ों के साथ चाय पियेंगे और मन की बात करेंगे ।
जय राम जी की ।
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9891161401 . dr.dineshsharma@gmail.com
लिखने पढ़ने और घुमक्क्ड़ी का बेइंतिहा शौक . पिछले 35 बरसों में पचास देशों की बारम्बार यात्रायें . शिक्षा से चिकित्स्क, ज्योतिषी, वास्तुविद, ध्यान प्रशिक्षक . अमेरिका से हिप्नोथेरेपी तथा पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी की उच्च शिक्षा . दुनिया को अच्छी तरह देख समझकर - आजकल लिखने पढ़ने और खुद को जानने समझने में प्रवृत्त . विभिन्न पत्रिकाओं में निरंतर कहानियां और व्यंग्य प्रकाशित . 9891161401 .
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