ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ?
दिनेश डाक्टर
बीते दिनों में एक विचार बार बार मन में उभरता रहा है कि आने वाली दुनिया पता नही अच्छी होगी या बुरी पर जीवन उतना अच्छा नही रहेगा । बहुत सारी बंदिशें होंगी, ढेर सारे डर होंगे, हर वक़्त लोगों को लेकर मन में वहम होंगे । ये खाऊं के न खाऊं, वहां जाऊं कि न जाऊं, उसको घर में आने दूं कि न आने दूं - इन सवालों में दिमाग हमेशा उलझा रहेगा । मुझे लगता है कि मुझ जैसा 65+ का आदमी अपने जीवन का बेहतरीन वक़्त देख और जी चुका है । क्या पहले की तरह जब चाहूं टिकट कटा कर मनमर्जी से जहां चाहे उड़ सकूंगा ? निर्बाध किसी भी नए देश में घूम सकूंगा ? मुस्कराते चेहरे से किसी भी सहयात्री से बात कर सकूंगा ? स्ट्रीट फ़ूड का लुत्फ उठा सकूंगा ? स्विमिंग पूल्स में तैर सकूंगा ? फ़िल्म, नाटक या अन्य नृत्य संगीत प्रस्तुतियां सभागारों में जाकर देख सकूंगा ? ये कर सकूंगा ? वो कर सकूंगा ? बस यही सवाल है जो सुबह शाम पकड़े रहते हैं ।
किसी से गले मिलना तो दूर, हाथ मिलाना भी बीती बात हो गयी । एड्स ग्रसित किसी व्यक्ति से तो इंटिमेसी फिर भी स्वीकार्य हो गयी थी क्योंकि वो छूने से नही फैलता पर कोरोना का डर तो लोगों से खुले मुंह बात तक भी नही करने देगा - इंटिमेसी की तो बात ही छोड़ दीजिए । मुंह पर मास्क लगाए हर पूर्व परिचित को परिचय देना बड़ा अजीब सा लगेगा । सुना है आजकल लोगों ने अपने फोटो वाली टी शर्ट्स और मास्क ऑर्डर करने शुरू कर दिए है - ताकि अपनी पहचान बतानी आसान रहे ।
बहुत से धर्म और शास्त्र कहते है कि आदमी अतृप्त इच्छाओं के वशीभूत होकर इस संसार में पुनर्जन्म लेता है । मेरी तो पहले ही से कोई अतृप्त इच्छा शेष नही थी । बची खुची कसर आने वाले संसार की हक़ीक़त समझ कर निकल गयी । किस का दिमाग खराब है जो ऐसे संसार में जन्म ले जिसमे हर वक़्त सेनेटाइजर की शीशी जेब में, मास्क मुंह पर और हज़ारों डर मन में रख कर रहना और जीना पड़े ।
कसम से मुझे तो कोई ख्वाहिश नही रही वापस इस दुनियां में लौटने की ।
(साहिर लुधियानवी साहेबसे माफी मांगते हुए)
ये मास्कों और सेनेटाइज़ारों की दुनिया
हर दिल में फैले वहमों की दुनियां
ये दारू तरसते बंदों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
हर एक मुंह पे ताला, हर एक रुह प्यासी
निगाहो में उलझन, दिलों मे उदासी
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
यहाँ बस कोरोना है इनसां की हस्ती
खत्म हो चुकी हर तरह की मस्ती
हरियाणे में दारू दिल्ली से सस्ती
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
जवानी भटकती है बेज़ार बनकर
जिस्मों से डरते है- चलते है हटकर
जहाँ प्यार होता है मास्क पहनकर
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ?