गुरु जी
दिनेश डाक्टर
जून की कड़क दोपहरी और मंत्री जी के बंगले का लम्बा चौड़ा ड्राइंग रूम |
घुसते ही बांयी तरफ दीवार से सटे बड़े वाले सोफे पर ठीक पंखे के नीचे और खिड़की पर लगे एयर कंडिशन के सामने खरार्टे मारती अस्त व्यस्त भगवें कपड़ो में लिपटी मध्यम शरीर की एक आकृति लेटी है | घुटनों से ऊपर चढ़े खद्दर के भगवें तहमद के नीचे पतली काली टांगे झाँक रही हैं | पास वाली मेज पर दो महंगे मोबाईल फोन, सिगरेट की डब्बी और माचिस रक्खी है | गर्दन एक तरफ लुढकी हुई है | पास ही दूसरी कुर्सी पर सफ़ेद कुर्ते पायजामे में प्रौढ़ आयु और भरे हुए शरीर का एक और आदमी ऊंघ रहा है | बार बार नींद के झटके में उसकी गर्दन आगे को जब ज्यादा ही झुक जाती है तो चौंक कर आँखे खोल कर इधर उधर देख कर फिर ऊंघने लगता है |
अन्दर कहीं से खट खट टाइपराइटर की आवाज आ रही है |
मंत्री जी घर पर नही हैं | सोफे के सामने वाली मेज पर रखे दो मोबाइल फ़ोनों में से एक पर 'ॐ जय जगदीश हरे' आरती की रिंग टोन बजनी शुरू हो जाती है | कुर्सी पर ऊंघता आदमी भगवें कपड़ों वाली खरार्टे मारती आकृति की तरफ देखता हुआ आगे झुक कर फोन उठा लेता है |
' हाँ जी कौन साहब?'
उधर से आती आवाज को बड़े गौर से सुनता है ..
'जी मैं मदन गोपाल बोल रहा हूँ '
पुनः सोफे की तरफ देखता है ...
'जैन साहब ! गुरु जी तो थोडा आराम कर रहे है - आप कहो तो उठा दूं '
'अच्छा जैन साहब जरा होल्ड करना' मदन गोपाल उठता है , स्वामी जी के सिरहाने आकर हलके से हिलाकर कर जगाता है |
‘गुरु जी !! गुरु जी !!! आपका फोन है ..कोई जैन साहब हैं ..'
गुरु जी गहरी नींद से जागते है , लाल लाल आँखे मलता हुआ इधर उधर देखते है | हाथ में बंधी घडी देखते है | कोहनी के सहारे ज़रा सा उठते है |
'ला यहीं दे दे फोन | कड़क आवाज | उमर् लगभग पैंतालीस पचास बरस | लम्बे लम्बे ज्यादा सफ़ेद और कुछ काले बाल | काली सफ़ेद खिचड़ी लम्बी दाढ़ी | आँखे बड़ी और लाल | ताम्बे जैसा तपा रंग | चेहरे पर खुंदक भरी चालाकी | माथे पर काले और लाल रंग का बड़ा सा टीका | | ढीला सा खद्दर का भगवा कुरता |
मदन गोपाल ने बड़े सम्मान से कुर्ते की बांह से मोबाइल को रगड़ कर पौंछते हुए फोन गुरु जी को थमा दिया |
' क्या है बे ?' कर्कश आवाज और उपेक्षा का लहजा |
'हूँ.... हूँ ...हूँ ...हूँ...अबे भडुवे बक मत ...तू मुझे बेवकूफ समझ रहा है ... हूँ हूँ मै सुन रहा हूँ ..बहरा नहीं हूँ ..हूँ हूँ ' बीच में कनिखयों से अभी तक खड़े हुए मदन गोपाल की तरफ भी देख रहा है |
' हूँ ...हूँ ...सुन ली तेरी सारी बकवास ..तूने मुझे पहले फोन क्यों नहीं किया ....फिर झूठ पे झूठ बोल रहा है ..ससुरे .. मै दिन रात तेरे जैसों को देखता हूँ ..तेरे पास मेरा मोबाईल नम्बर तो है ...फिर तूने फोन क्यूँ नहीं किया स्साले भडुवे | खैर झूठे ..अब सुन ..मैंने बात कर ली है ..तुझे मंत्री जी से मिलवा दूंगा ..तू यहीं आजा मंत्री जी के बंगले पे ..आगे की बात आमने सामने होगी | अखबार नई पढता तू ..फोन टेप हो रए हैंगे रोज़ .. देख एक बात और सुन ले गौर से ..उस भुक्के सक्सेना को साथ मत लाइयो..मुझे उसकी सकल (शक्ल) से ही नफरत है स्साले की .. मै तो बात भी नई करता उस मनहूस से '.. | तू लंच वंच का झंझट छोड़ ..काम की बात कर ..नोटों का इंतजाम कर....| मै तो पहले ही तेरा काम करवा देता ..सारी बात पक्की हो गयी थी यादव जी से ..तूने ही एन मौका पे पिछवाडा दिया .. लाला जी बिना अंटी ढीली किये माल कैसे कमाएगा |” फोन काट देता है |
मदन गोपाल अभी तक खड़ा है | ' अरे बैठ जा उल्लू ..काहे मेरे सर पे खड़ा है ..यो ससुरा जैन बहुत हरामी है ..पैसे खर्चना नहीं चाहता ..जान निकल रही है ससुरे की नोट निकलते .. साले को जरूरत होयगी तो शाम तक पहुँच जाएगा यहाँ ..फालतू बात में टैम ख़राब ना करता मैं...'
खड़े होकर अंगडाई ली , तहमद ठीक किया फिर बालों में और दाढ़ी में उँगलियाँ फिराई | अन्दर से नौकर कपडा हाथ में लिए आया और मेज और सोफे से धूल झाड़ता हुआ गुरु जी की तरफ बार बार कनिखयों से देखता रहा |
'क्यों रे चाय वाय नहीं बनाएगा आज ..'
नौकर उपेक्षा से बिना कुछ बोले अन्दर चला गया | मदन गोपाल वापस कुर्सी पर इस बार थोडा चौकस होकर बैठ गया | गुरु जी ने सिगरेट की डब्बी उठाई, कमरे में बेचैनी से घूमते सिगरेट सुलगाई, माचिस की अधबुझी तिल्ली लापरवाही से फर्श पर फेंक दी |
कुछ सोचते सोचते गहरे गहरे तीन चार कश लगाये , मोबाइल उठाया और वापस सोफे पर बैठ गया | सिगरेट को उँगिलयों में फंसा कर मोबाइल में खोज कर नंबर मिलाया | चेहरे पर सोच की लकीरें | सिगरेट एशट्रे में रख दी, कमर सोफे से टिकाई, मोबाइल बांये कान में लगाया, दांया हाथ सोफे की कमर पर आराम से टिकाया , दोनों पैर लापरवाही से सामने मेज पर फैलाये, बांये पैर की ऊँगली और अंगूठे के बीच दांये पैर की एड़ी फंसाई, हाथ की उँगलियों से सोफे की रेक्सीन पर तबला सा बजाना शुरू कर दिया |
उधर से किसी ने नमस्ते की |
' राम राम .. हाँ गुरु जी बोल रहा हूँ ..काम निकल गया तो भूल गया मुझे ससुरे....तुम स्साले दिल्ली वालों की जात ही ऐसी है ..काम निकालो और लात मार दो कोई बात नहीं भैय्या ...ऐसा ही चलन है ......हूँ ....हूँ.. आज सबेरे की फ्लाईट से आया हूँ ..यादव जी मंत्री जी के बंगला पर बैठों हूँ '.... बीच बीच में हूँ हूँ की आवाज....'
“मंत्री जी ना हैंगे ..बम्बई से पहुचने वाले है | बस एक दो घंटा में पहुँचते ही होंगे ..कल मिलूंगा तुझे ' वातार्लाप समाप्त |
एक बार फिर दोनों हाथ उठा कर जम्भाई और अंगडाई ली |
नौकर लापरवाही से चाय के दो कप रख कर चला गया | मदन गोपाल ने ख़ामोशी से चाय सुडकनी शुरू कर दी | गुरु जी ने कप उठा कर चाय की चुस्की ली |
“फीकी पड़ी है ससुरी” ..कप उठा कर रसोई की तरफ चला गया ..अंदर से नौकर से बातचीत की आवाज ..बाहर आकर कप में चम्मच हिलाते हुए पुनः सोफे पर बैठ गया | एक और सिगरेट सुलगाई.. फिर मोबाइल उठाया..इस बार गुरु जी थोडा पशोपेश में ..सोच में डूब कर फिर गहरे गहरे कश लिए..सोफे पर सरक कर सीधा बैठ गए ..नंबर मिलाया ..मोबाइल को दोनों हाथों से सावधानी से पकड़ कर दांये कान पर लगाया..घंटी जा रही थी..बांया हाथ चाय के कप की तरफ एक और चुस्की लेने को बढाया ही था कि उधर से किसी की आवाज आते ही वापस बांया हाथ फिर मोबाइल की सपोर्ट में संभाल कर लगा लिया ..' हलो हेलो ..साहब हैं ...जी मैं... मैं.. गुरु जी ...यादव मंत्री जी का गुरूजी .. जी ..जी.. तनिक काम था साहब से .हाँ जी मैं होल्ड करता हूँ ...' थोड़ी देर चुप्पी.....
.' हाँ जी .. तो ठीक हाँ जी ..हाँ जी जगदम्बा जी... पर देवी जी प्रार्थना ये है कि साहब से ही बिनती करनी थी ..जी जी काम तो मैं आपको लिखवा देतो पर तनिक साहिब से विनती कर दो... अक..गुरु जी .. यादव मंत्री जी के गुरु जी कुछ रिक्भेस्ट (रिक्वेस्ट) करना चाह रहे हैं ..आप एक बार तनिक और पूछ लो देवी जी .. मैंने बड़ी उम्मीद से फोन किया है ...मै होल्ड करूंगा जी ..'
एक बार फिर लम्बी चुप्पी ...बांये हाथ की ऊँगली से चाय की पपड़ी को उतरा और एशट्रे में झटक दिया | सिगरेट उठाकर राख झाड़कर फिर वापस रख दी | सूखे हो आये ओठों को जीभ और दाँतों के सहारे गीला किया ..दांये पैर को धीरे से बांये घुटने पर टिकाया ..कमर को सोफे की बैक से टिकाया, बांया हाथ लम्बा कर सोफे की बैक पर उँगिलयाँ बजानी चाही कि उधर से आवाज आते ही यकायक पैर घुटने से उतरा, कमर आगे को झुकी, दोनों हाथ वापस मोबाइल पर.. ' साहब जी नमस्ते..हांजी गुरु जी बोलता हूँ साहब जी ..आपको इसलिए कष्ट दिया था कि आज शाम को मै आपके दरसन करना चाह रहा हूँ | नई ख़ास नई ..वो जिस काम का जिकर मैं किया था आप से पिछली बार यादव मंत्री जी के बंगला पे, उसी सिलसिले में मै शाम कू जैन को आप से मिलाना चाह रहा हूँ ... मै सोच रहा था कि एक बार आप मिल लेते उससे तो आमने सामने बात हो जाती ...तो साब आज शाम को रख ले....वो आपको परसाद भी देना है हवन का | ..हाँ साब आ जाऊँगा ..ठीक है साहब'
मदन गोपाल की तरफ देखता है ' ससुरे अफसरों के दिमाग ज्यादा ही चढ़ गए आजकल”
मदन गोपाल आँख चुराते हुए पुराना अखबार पढ़ रहा है | बाहर कार रुकने की आवाज से
दोनों चौकन्ने होकर खड़े हो जाते है | दरवाजा खुलता है | मंत्री यादव जी किसी से बतियाते भीतर आते हैं | गुरु जी और मदन गोपाल घबराई हुई विनम्रता से झुक कर नमस्ते करते है | यादव जी बात करते करते थोडा रुकते हैं, एक क्षण को खड़े होते हैं. “आप दोनों को यहाँ ड्राइंग रूम में किसने बैठाया.... बाहर बरामदे में जहाँ सब लोग बैठ कर इंतज़ार करते हैं , वहीँ इंतज़ार करिए ..और आगे से शर्मा जी से टेलीफोन पर टाइम लेकर आया कीजिए ..' मंत्री जी थोडा झुंझला कर अंदर चले गए |
नौकर चाय का कप उठाने आया | गुरु जी की चाय वैसी ही पड़ी थी | सिगरेट बुझ चुकी थी | प्याले में फिर पपड़ी आ गयी थी |
नौकर अन्दर चला गया | गुरु जी और मदन गोपाल बाहर बरामदे में आकर एक तरफ को खड़े हो गए | कुर्सियों पर लोग पहले से ही बैठे हुए थे |