क्रोएशिया में लैंड होने के बाद बहुत जगह एक बात बहुत सारे क्रोएशयन ने कई बार जो बड़े गर्व से दोहराई वो है यहां के पानी के बारे में उनका विश्वास । ' आप बोतल के पानी में पैसा खराब न करे ! हमारे हर नल का पानी किसी भी बोतल के पानी से ज्यादा अच्छा और शुद्ध है । क्योंकि मेरे अपने देश में बहुत सारी बीमारियों की जड़ अशुद्ध पानी है तो शुरू में ये बात हजम नही हुई पर बाद में जब देखा कि यहां के लोग अपनी टोंटियों का पानी पीने के बाद भी लंबे तकडे स्वस्थ और हट्टे कट्टे है तो मैंने भी महंगे बोतल के पानी को छोड़कर किचन की टूंटी का पानी ही पीना शुरू कर दिया । हम भले ही बचपन से अपने घरों के कुएं और हैंड पम्प का पानी पीकर पले बढ़े है पर आजकल जब तक पन्द्रह बीस हज़ार का आर ओ वाटर फिल्टर नही लगवा लेते, तसल्ली ही नही होती ।
पता चला की स्प्लिट से 250 किलोमीटर उत्तर में प्लिटविच नेशनल पार्क है जो दुनियाँ के दस सबसे खूबसूरत नेशनल पार्कों में एक है । गाड़ी उठायी और निकल पड़ा । सड़क बढ़िया थी तो आराम से रास्ते में रुक कर भी 3 घंटे में पहुंच गया । पार्क तो वाकई बहुत खूबसूरत था पर सैलानियों की बड़ी आपाधापी थी । जबसे चीन की अर्थव्यवस्था सम्पन्न हुई है, दुनियाँ में हर बेहतरीन पर्यटन स्थल पर चीनियों की भरमार दिखती है । चीनी टूरिस्टों के बहुत सारे ग्रुप्स ने इतने बड़े और खूबसूरत प्राकृतिक स्थल को चांदनी चौक का बाज़ार बना दिया था । हर जगह लम्बी लम्बी लाइने थी । कई जगह तो लोग कंधे से कंधा मिलाकर कतारों में बस रेंग ही रहे थे । तभी एक संकल्प पुनः मन में दोहराया - हमेशा मशहूर पर्यटक स्थल पर सिर्फ और सिर्फ आफ सीजन में ही जाओ तभी उसका आनंद उठा पाओगे ।
स्प्लिट में एक शांत और सौम्य वृद्ध विधवा के जिस खूबसूरत घर में रुका हूँ उसमे नारंगियों के पेड़ के अलावा अनार और आलूबुखारे के पेड़ भी है । दूर से ही सही पर समुद्र के नीले विस्तार का मनमोहक नज़ारा है । कल सुबह पेड़ को थोड़ा हिलाया तो कुछ पके आलूबुखारे नीचे गिर पड़े । जीवन में इतने मीठे और स्वाद आलूबुखारे इससे पहले कभी नही चखे । वृद्धा माता जी इतने बड़े घर में अकेली ही रहती है । एक लड़की है जो पास ही कहीं अपने परिवार के साथ रहती है । माता जी क्योंकि ठीक से अंग्रेजी समझ नही पाती तो लड़की ही फोन पर घर में रुकने वाले सैलानियों से सम्पर्क में रहती है । लड़की बहुत मेहनती है । वैसे तो लड़की खासी सम्पन्न है -नई मर्सिडीज कार चलाती है पर इस घर की साफ सफाई, झाड़ू पोछा खुद ही खुशी खुश करती है ।
बीस मिनट पैदल रास्ते की दूरी पर हर रोज़ सुबह सात बजे से ग्यारह बजे तक फार्मर्स मार्किट यानी किसानों का बाज़ार लगता है । आस पास के पहाड़ी और मैदानी कस्बों के किसान शहद, तरह तरह के चीज़ या पनीर, फल, सब्जियां, मछली, अंडे, गोश्त लाकर अपने नियत स्थानों पर जम जाते हैं । पर्यटक क्योंकि बहुत होते है तो यह जानकर कि सैलानी लोग ज्यादा भाव ताव नही करते, अपनी मर्जी से दाम वसूला जाता है हर देश की तरह । मैंने जब एक महिला दुकानदार से पके टमाटर और प्याज खरीदे तो उसने बिना तराजू अंदाजे से ही गिनकर दे दिए । पैसे देकर मैं चलने लगा तो वापस बुला कर हंसते हुए पता नही क्यों दो टमाटर और दे दिए । एक और दुकानदार ने जबरदस्ती करके चीज़ यानी क्रोएशयन पनीर का एक बड़ा सा टुकड़ा जो वाकई बहुत स्वाद था, मुझे इस उम्मीद में कि शायद मै खरीद लूँ, दे दिया ।
सत्रह सौ साल पुराने चर्च के लंबे चौड़े दालान में, मैं भी एक टूरिस्ट गाइड के ग्रुप में मोटी गाइड फीस देकर फंस गया । चील जैसी शक्ल और भाड़ जैसे मुंह वाली पतली दुबली गाइड ने सुनाया ज्यादा दिखाया कम । जितना मैं खुद दस पन्द्रह मिनट में देख लेता उसे उसने डेढ़ घण्टे में यहां वहां की फालतू बातें करते हुए बताया । एक जगह बड़ी सी धातु की मूर्ति के सामने लोगों की लम्बी लाइन लगी थी । लोग मूर्ति के दांये पैर के अंगूठे को घिस कर आंख मूंद कर कुछ बुदबुदा रहे थे । पता चला किन्ही बिशप ग्रेगरी की मूर्ति है जिन्होंने ग्यारह सौ बरस पहले रोम के बड़े पोप से रोमन भाषा के विरुद्ध क्रोएशयन मातृ भाषा के अधिकार पर विद्रोह कर दिया था और बिशप पद से हटा दिए गए थे । फिर 1929 में लोगो ने उनकी याद में ये मूर्ति बनवा दी और पता नही कैसे मान्यता बन गयी कि मूर्ति के दांये अंगूठे को रगड़ने से मन की मुराद पूरी हो जाती है । पूरा बुत तो वैसे मटमैला है पर पैर का दांया अंगूठा लगातार रगड़े जाने की वजह से सोने की तरह चमक रहा था ।
टूर गाइड से मैंने जब अच्छे पिज्जे की दुकान के बारे में दरयाफ्त की तो उसने कोने की एक छोटी सी दुकान की तरफ इशारा किया । पिज़्ज़ा बहुत वाजिब दाम में और बहुत ज़ायकेदार था । खाकर मज़ा आ गया । उसी की बतायी दुकान से पिस्ते वाली जिलाटो आइसक्रीम भी खाई जो वाकई बेहद मलाईदार और स्वाद थी ।
अगले रोज़ पता लगा कि डेढ़ घण्टे की ड्राइविंग की दूरी पर सिबनिक में करकरा राष्ट्रीय उद्यान है । गाड़ी उठायी और निकल पड़ा । छोटी सड़कें और राजमार्ग अच्छे बने हुए हैं । एक घंटे से थोड़ा ऊपर के समय में ही पहुंच गया । क्रोएशिया में सभी राष्ट्रीय उद्यानों को बहुत अच्छी तरह सरंक्षित किया जाता है इसलिए टिकट अच्छी खासी महंगी है । बोट ट्रिप मिला कर 320 कुना यानी हिंदुस्तानी रुपयों में करीब साढ़े तीन हज़ार रुपये की टिकट थी । पहले चार घण्टे की बोट ट्रिप थी । कुछेक जवान जोड़ों को छोड़कर ज्यादातर सैलानी प्रौढ़ावस्था के सर्बियन थे । महज एक सौ साठ मीटर लम्बे और सौ मीटर चौड़े विसोवेच द्वीप पर पहला पड़ाव था जहां सैंट फ्रांसिस का बनवाया चार सौ बरस पुराना चर्च था । वहां से बोट चली तो तीन चार प्रौढ़ सर्बियन औरतों में सीट को लेकर झगड़ा हो गया । सबने सोचा था कि बोट चलने से पहले लाइन में लग कर जो बढ़िया सीट मिली थी, पूरी यात्रा में वही सीट रिजर्व हो जाएगी । पर सर्बियन औरतों की सोच थी कि उन्होंने भी पूरा पैसा खर्चा है तो उन्हें बढ़िया सीटों पर बैठने का पूरा हक़ है क्योंकि सीटें रिजर्व नही है । बहुत देर तक तू तड़ाक और गर्मा गर्मी रही । समझ तो मुझे कुछ नही आया पर आवाज के उतार चढ़ाव से अंदाज़ा लगता रहा कि झगड़ा बढ़ रहा है या शांत हो रहा है । बोट पर हालांकि तीन नेशनल पार्क के कर्मचारी थे पर वे निरपेक्ष भाव से सिगरेट के छल्ले उड़ाते रहे ।
पूरा पार्क वाकई बहुत खूवसूरत है । मेरी ही उम्र के वैंकूवर में रहने वाले एक कनाडियन पति पत्नी से परिचय हो गया । पति रिटायर्ड इंजीनियर थे और पत्नी कार्यरत शिक्षिका । दोनो बहुत सौम्य और सज्जन थे और भारत को छोड़कर बहुत देशों की यात्रा पर जा चुके थे । पर जितने टूरिस्ट्स चीन से थे उतने किसी और देश से नही । चीन के टूरिस्ट्स न तो किसी अन्य देश के लोगों से कोई सम्प्रेषण करते है और न ही किसी के सम्प्रेषण पर कोई उत्तर या प्रतिक्रिया देते हैं। बस पूरी तरह अपने अपने ग्रुप्स में ही खोये रहते है । हर जगह अपने कैमरों या सेल फोन्स से फोटो खींचते या सैल्फिंया लेते ही नज़र आते है । जहां चीनी पुरुष अक्सर सामान्य और औसत दर्जे के कपड़ों में दिखते हैं, वहीं औरते महंगे भड़कीले कपड़ों, घड़ियों और जेवरात में सजी लकदक नज़र आती हैं ।
एक घड़ी और इलेक्ट्रॉनिक कम्पनी द्वारा प्रायोजित समूह अलग अलग शहरों से आये भारतीय पुरुषों का भी दिखा जो एक मैदान के बीचो बीच बैठकर साथ लाये खाखरे चिप्स और मठ्ठियों के साथ प्लास्टिक के गिलासों में बियर पी रहे थे और तेज़ आवाज में शोर मचा रहे थे । देखने से ही लगता था कि ज्यादातर लोग मध्यमवर्गीय दुकानदार थे जिनको कम्पनी का ज्यादा सामान बेचने के एवज में मुफ्त यात्रा का मौका मिला था ।
जहाँ रुका हूँ , वो घर एक पहाड़ी पर है । नीचे पूर्व में नीले समुद्र का विशाल फैलाव है । सीढियां उतर कर पन्द्रह बीस मिनट में समुद्र का किनारा है । दांयी तरफ बहुत विशाल और खूवसूरत मरजान पार्क है । शनिवार और इतवार के दिन पार्क की कारों और अन्य वाहनों के लिए वर्जित सड़क पर साइकिल चलाते छोटे बच्चे , लड़के लड़कियां, कुत्तों की रस्सियां थामे बुजुर्ग दिख जाते है पर बाकी दिनों में पार्क का छह- सात किलोमीटर लम्बा रास्ता शांत ही रहता है । एक तरफ नीले समुद्र और एक तरफ चीड़ के घने वन के बीच से गुजरते सोलह सत्रह बरस के लड़के लड़कियों के खिलखिलाते झुंड को देखकर पता नही क्यों अपनी उम्र का अहसास हो आया । सोचने लगा कि पचास बरस बाद ये बच्चे जब मेरी उम्र में पहुचेंगे तो कितना कुछ इनके जीवन में घट चुका होगा । आज इनके दिल और दिमाग हौसलों और रुमानियत से लबालब है । जिस्म चुस्त, हल्के और फुर्तीले है । जीवन के संघर्ष, मान अपमान और फरेब से ये निर्लिप्त और अन्जान है ।
घर के नज़दीक एक सुपरमार्केट में सामान खरीदते वक़्त क्रोएशयन भाषा में लिखे लेबल को पढ़ने की कोशिश में जब निरीह सा महसूस करता हूँ तो किसी अन्य ग्राहक से सहायता मांग लेता हूँ । उम्रदराज़ लोगों को छोड़कर ज्यादातर लोगों को अंग्रेजी अच्छी आती है । जिस शालीनता विनम्रता और बिना हड़बड़ाहट के लोग मदद करते है, वैसा किसी दूसरे देश में जल्दी से देखने को नही मिलता ।
पैदल चलते हुए किसी शहर को देखने से जितनी जानकारियां मिलती है वो बस, टेक्सी या किसी अन्य सवारी से यात्रा करने पर नही मिलती । कल एक और बात गौर में आयी । इस देश में लोगों के पास चालीस पैंतालीस बरस या उससे भी पुरानी कारें होना आम बात है । हालांकि नई नई कारों के मॉडल भी बहुत है पर पुरानी कारें भी लोग चला रहे है । उन पुरानी कारों को देख कर मेरे मन में यह विचार ज़रूर आया कि हमारे शहर दिल्ली में दस साल पुरानी डीजल कार और पन्द्रह बरस पुरानी पेट्रोल कार को जबरदस्ती रिटायर करने का फैसला कितना तर्कसंगत है । मेरे जैसे जो लोग कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल करते है और साल में बामुश्किल पांच से छह हज़ार किलोमीटर चलाते है और उन लोगों की कारों को जो बिना सही देखभाल के साल में बीस पचीस हज़ार किलोमीटर चलती है, एक ही श्रेणी में क्यों रख दिया गया । हमारे देश में हर तरह के बेहूदे सरकारी आदेश पर सवाल न करने की परम्परा बन गयी है । न कोई सवाल करता है और न ही कोई जवाबदेही ही है ।
एक दिन पार्क में सैर करते हुए बीस इक्कीस की उम्र के दो हिंदुस्तानी लड़के मिले । पता लगा कि दोनों स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत तीन महीने के लिए क्रोएशिया आये हुए है । दोनो मुम्बई के बिजनेस मैनेजमेंट कालेज के छात्र थे । एक जयपुर का रहनेवाला था तो दूसरा चेन्नई का । हालांकि दोनों बड़े खुश थे कि इतने अच्छे देश में आये हुए हैं पर दोनों के भविष्य के इरादों में अमेरिका जाकर सैटल होने की बात थी । मेरे मन में विचार उठा कि एक समय ऐसा भी था कि भारत हर किसी के लिए जबरदस्त आकर्षण का केंद्र था । दूर दराज के देशों से हज़ारों छात्र तक्षशिला, नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों में ज्ञान प्राप्त करने आते थे । कहाँ कहाँ से व्यापारी व्यापार करने आते थे । अध्यात्म, योग, ज्योतिष और आयुर्वेद जैसे उन्नत शास्त्रीय ज्ञान के पिपासु तो अभी तक दुनियां के बहुत देशों से निरन्तर आ रहे हैं । और आज क्या हो गया है ? जिस के पास भी थोड़ा से अवसर और सामर्थ्य है वो इस देश में रहना ही नही चाहता । मुझ जैसे लोग भी आज एक समय में विदेश में बसने की अनिच्छा की मूर्खता पर स्वयं को कोसने लगे हैं । आज इस देश के कर्मठ और काबिल लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यहां तक की तुर्की और ग्रीस जैसे देशों में टेक्सी चलाने, वेटर बनने, खाना पकाने, एअरपोर्ट वगैरा पर सफाई करने जैसे काम करते बड़े खुश हैं पर अपने देश में नही बसना चाहते ? कभी हमारा हिस्सा रहे पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोगों का भी यही हाल है ।
एक किंवदंती के अनुसार एक राजा की जान एक तोते में बसती थी । आज बहुत लोगों की जान का वो तोता उनका मोबाइल है । मेरे तोते का चार्जिंग केबल टूट गया था तो गूगल पर एक स्टोर ढूंढ कर गूगल मेप की सहायता से दुकान पर पहुँचा । सुबह साढ़े नौ बजे का वक़्त था । टूटा केबल मेरे हाथ में देख दुकानदार बड़ा खुश हुआ । मेरी सैलानियों वाली मजबूरी भांप कर चीन का बना हुआ एक घटिया सा केबल उसने बढ़िया से दाम में मुझे टिका दिया । फिर उसने एक और केबल दिखाया और कहा कि ये वाला ओरिजिनल है । वो चार गुनी कीमत का था । मजबूरी में सस्ता ही ले लिया । हालांकि मैं उसकी दुकान पर पहला ग्राहक था यानि कि मैंने उसकी 'बोहनी' कराई थी पर उसने हमारे देश के दुकानदारों की तरह पैसों को माथे या आंख से नही छुआ ।
हालांकि मेरे पास एक पूरी तरह सुसज्जित एक बढ़िया रसोई है जिसमे कुकिंग रेंज से लेकर, इलेक्ट्रिक ओवन, माइक्रोवेव ओवन, काफी मशीन, मिक्सर ग्राइंडर, फ्रिज, छुरी कांटे, खाना पकाने के बर्तन, कप प्लेटों समेत सब कुछ अव्वल दर्जे का है पर फिर भी मकान मालकिन की रिकमंडेशन पर समंदर के किनारे एक बढ़िया रेस्तरां भी ढूंढ निकाला । क्योंकि ये जगह एक तरफ हटकर थी तो टूरिस्ट्स को इसका पता नही था । दाम भी वाजिब थे और मेनू में लोकल क्रोएशयन डिशेज बहुत थी । बियर भी सस्ती ही थी ।
क्रोएशिया क्योंकि एडियाट्रिक समंदर के उस भाग में हैं जहां इटली के मेडिटेरियन समंदर का भी हिस्सा आकर मिलता है, तो यहां के खान पान में इटली का बड़ा प्रभाव है । चावल का बना रिजोतो हो या चार तरह के चीज़ से बना पिज़्ज़ा, खाने में सी फ़ूड और ऑलिव आयल की प्रधानता हो या छोटी छोटी वाइनरीज में तैयार हुई व्हाइट और रेड वाइन, आपको इटेलियन स्वाद और महक की बार बार याद आएगी । हाँ एक बड़ा फर्क है - इटेलियन जहां तेजतर्रार और चालू होते है और आपको चूना लगाने में देर नही लगाते, क्रोएशयन लोग सीधे और बिना लाग लपेट वाले होते हैं ।
एडियाट्रिक के बेहद खूबसूरत डेलमेशियन इलाके से मन था कि भरने का नाम ही नही ले रहा था । पर ये मेरा घर तो नही था । छोड़ना ही था । कार उठा कर दुब्रोवनिक की तरफ चल पड़ा जहां से फ़्लाइट लेकर मुझे क्रोएशिया को अलविदा कहना था । रास्ते में बोस्निया में सड़क के किनारे ढाबे में दोपहर के भोजन के लिए रुक गया । हालांकि दोनो मुल्क साथ साथ लगे हुए है पर बोस्निया अपेक्षाकृत गरीब है । सड़कें, लोगों का लिबास और जीवन स्तर देखकर ही पता लग जाता है कि क्रोएशिया काफी आगे निकल गया है । बोस्निया ने कोई महत्वपूर्ण टूरिस्ट स्थान भी उन्नत नही किया है जबकि क्रोएशिया का सारा ध्यान ही उस तरफ है । बोस्निया की लोकल बियर मंगवाई । मेनू में देखा तो हर चीज़ बहुत सस्ती थी । मैंने सोचा कि शायद दोनों मुल्कों की मुद्रा एक सी ही है । यहीं पर ग़लतफ़हमी हो गयी । एक बोस्नियन मार्क चार क्रोएशयन कूना के बराबर था । जो मेनू में बहुत सस्ता दिख रहा था दरअसल वैसा था नही । फिर भी खाना ताज़ा और बढ़िया था । लोकल बियर थोड़ी अलग पर मजेदार थी । चिकन अच्छा भुना और सब्जियां ताज़ी थी । इसी बीच एक चाइनीज लड़की अपने लोकल गाइड के साथ मेरे बगल वाली मेज पर बैठ कर, अपने मोबाइल फोन को स्टैंड पर लगाकर खाना खाते हुए पता नही खाने के बारे में तीखी आवाज में क्या क्या कह कर खुद का वीडियो शूट करने लगी । खुद की सेल्फी लेने में और वीडियो शूट करने में चीनी लोग हिंदुस्तानियों से उन्नीस नही बल्कि इक्कीस ही है ।
आखिर पांच घंटे की लम्बी ड्राइव के बाद खुले नीले समंदर के किनारे बसे छोटे से केवेटाट कस्बे में, जहां मेरी रुकने की जगह बुक थी, पहुंच गया । जानबूझकर यहाँ रुका क्योंकि यहां से एयरपोर्ट सिर्फ दस मिनट की ड्राइव पर है । लंबा तगड़ा बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाला मिखेल मेरे फोन के बाद नीचे खड़ा मुस्कराता हुआ मेरी राह देख रहा था । पहाड़ी पर बने बड़े से मकान में, मेरे ठहरने का कमरा थोड़ा ऊपर चढ़कर दूसरी मंजिल पर था । मेरे भारी सूटकेस को हल्के से खिलौने की तरह उठा कर फुर्ती से ऊपर चढ़ गया । घर बहुत खूवसूरत था । बैडरूम की खिड़की से खुले विशाल नीले समंदर का नज़ारा बहुत लुभावना था । सामने लाल गहरे पीले क्षितिज पर सूरज डूब रहा था । चमचमाती बत्तियों वाले विशालकाय टूरिस्ट क्रूज़ शिप्स लंगर डाले खड़े थे । नीचे बगीचे में पीली पकी नारंगियों और लाल लाल अनारों से लदे वृक्ष तेज़ हवा में झूम रहे थे ।
एक बार विचार आया कि चलो दस बारह दिन यहीं रुक जाता हूँ । पर अगले दिन सुबह की फ्लाइट कन्फर्म हो चुकी थी । घर सिर्फ एक रात के लिए ही बुक था । फ्रिज खोला । वेलकम ड्रिंक के लिए दो बीयर के कैन थे । खिड़की के नजदीक कुर्सी खींच कर ठंडी झागदार बीयर सिप करता हुआ क्रोएशिया के समंदर और आसमान की गहरी नीलिमा को हमेशा के लिए दिल में उतारने लगा ।