अलस का मौसम
हवा थी गीली
सीली सीली कुछ नशीली
मौसम की खुमारी
बदन में थी भारी
सोता ही रहा
फिर जिस्म को
बड़ी मुश्किल से
उठाया, समेटा
शाल खींच कर
बदन से लपेटा
उठूं या वापस लेट जाऊं
इसी में जीती सुबह की खुमारी
फिर लुढका तकिये पे
लिए अलसाया जिस्म भारी
स्लो मोशन में
भोर का शोर हुआ
धीरे धीरे आँख खुली
कमरे में थी फैली
रोशनी धुली धुली
घंटे दो - दो मिनट में थे बीते
खयालों में छिटके सवाल रीते रीते
बिस्तर कब छोड़ेगा बे अहदी
देख उठने में आज फिर देर करदी
कभी नींद उचटी इसका बहाना
कभी ये कि देर रात था
कामों को निबटाना
कभी तुर्रा ये - था मौसम सुहाना
अबे नामाकूल बन्दे
ढूंढ इस मौसमी अलस का
अब कोई नया बहाना