सालज़्बर्ग में मोज़ार्ट का घर अप्रैल 12-18 , 2018
केबल कार सुबह साढ़े सात बजे चलनी शुरू होती थी । नाश्ता सुबह साढ़े छह बजे ही लग जाता था । जल्दी जल्दी नाश्ता कर वापस पच्चीस नम्बर बस के स्टैंड पर पहुंच गया । बस भी जल्दी ही मिल गयी और साढ़े आठ बजे तक केबल कार स्टेशन पर पहुंच गया । मन प्रसन्न हो गया जब देखा कि केबल कार पर्यटकों को ऊपर ले जा रही है । हवा भी आज शान्त थी और आसमान खुला हुआ था । पर्वतों में नीचे से ऊपर जाने का अनुभव वाकई बहुत नूतन और आह्लादकारी होता है । टूरिस्टस, जिनमे बहुत सारे एक दिन पहले वाले ही कोरियन और चाइनीज लोग थे, आज भी लाइन में लगे सेल्फियां खींच रहे थे । केबल कार बड़ी थी और एक बार में पंद्रह से बीस लोग समा सकते थे । जहां एक ओर ज्यादातर जापानी पर्यटक बहुत सौम्य, विनम्र, शांत और अंतर्मुखी होते है वहीं दूसरी तरफ अधिकांश कोरियन, चाइनीज और वियतनामी टूरिस्ट्स ठीक विपरीत होते हैं ।
केबल कार ऊपर उठनी शुरू हुई तो नीचे के दृश्य पेनारोमिक होते चले गए । धीरे धीरे पूरे साल्जबर्ग शहर का फैलाव और सिटी लाइंस नज़र आने लगी । थोड़ी देर बाद ही केबल कार बर्फ से ढकी चोटियों के बीच से गुजरने लगी । चारो तरफ सफेद झक्क बर्फ । कई जगह तो ऐसा भी लगा कि हाथ बढ़ा कर बर्फ समेट लो । बारह मिनट बाद सबसे ऊंची चोटी पर बने स्टेशन पर पहुंच कर केबल कार रुक गयी । परिचालक ने दरवाजा खोला तो खून जमा देने वाली हवा के हल्के से झौंके ने चेहरे को सुन्न कर दिया । बिल्डिंग से बाहर निकले तो चारों तरफ बस बर्फ ही बर्फ । दूर पहाड़ी पर एक दो लोग आइस स्केटिंग करते भी नज़र आये । सोचा कि बर्फ के रास्ते ऊपर चोटी तक पैदल चल कर जाया जाए । जैसे ही कदम बढ़ाए तो फौरन समझ आ गया कि बर्फ पर आइसिंग हो गयी है । बर्फ पर आइसिंग हो जाये तो खतरनाक रूप से फिसलन हो जाती है और उस पर चलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है । एक कम उम्र की चाइनीज़ लड़की कुछ ज्यादा ही उत्साह में आगे बढ़ी तो दस कदम बाद ही धड़ाम से फिसल कर गिर गयी । वापस जल्दी उठने के चक्कर में तीन चार बार वापस फिसल कर गिरी । किस्मत से दांयी तरफ नही फिसली क्योंकि उस तरफ ढलान और गहरी खाई थी और मौत पक्की थी । हालांकि वहां पतली सी रेलिंग तो थी पर रेलिंग के बीच के गैप को देखकर मुझे शक था कि तेज़ फिसलते आदमी को वहां कोई सहारा मिलेगा । मेरा हौसला जवाब दे गया और मैं वापस बिल्डिंग की डेक पर बने केफिटेरिया में, जहां से पूरी घाटी का बड़ा सुंदर अवलोकन हो रहा था, आकर काफी पीने लगा । चीनी लड़की हौसले वाली थी । उसने हार नही मानी और जैसे तैसे गिरती पड़ती पहाड़ की चोटी पर पहुंच कर बड़े गर्वपूर्ण आनंद से सेल्फियां लेने लगी ।
मुझे याद हो आईं ख़्वाजा मीर की वो मशहूर पंक्तियां ;
सैर कर दुनियां की ग़ाफ़िल
जिन्दगानी फिर कहाँ ।
जिन्दगानी गर कुछ रही तो
ये जवानी फिर कहाँ ।।
मैं अपवादों की बात नही कर रहा पर मुझ जैसे सामान्य लोगों की एक उम्र ऐसी भी होती है जब अनाप शनाप खतरे लेने का हौसला पता नही कहाँ से आता है और फिर उम्र के ढलान पर एक वक्त ऐसा भी आता है कि बहुत सारे बेसिर पैर के भय घेरने लगते हैं । आज बर्फ की आइसिंग पर कदम फिसलते ही ऐसे ही भय ने मुझे कैफेटेरिया में हार मान कर काफी पीने बैठा दिया । अपने टूटे हौसले से रुबरु होकर अच्छा तो नही लगा पर ये सोचकर कि मैं अब कोई तीस पैंतीस साल का जवान पट्ठा नही बल्कि चौसठवें बरस में प्रवेश करने वाला अधेड़ व्यक्ति हूँ और अकेले ही यात्रा कर रहा हूँ और अगर खुदा ना खास्ता कुछ हो गया तो खामख्वाह लेने के देने पड़ जायेंगे, यही सोचकर चुपचाप काफी सुड़कने में ही भलाई समझी ।
आस पास की तस्वीरें उतारी और केबल कार पकड़कर नीचे लौट आया । बस छूटने ही वाली थी ।
समय से वापस साल्जबर्ग शहर के केंद्र में पहुंच गया । पास ही टूरिस्ट ऑफिस से पता चला कि पचास कदम पर ही मोज़ार्ट का घर है, जो कि अब एक म्यूजियम में तब्दील हो गया है । उसे भी देख लिया । मोजार्ट के कपड़े, कंघे, कुर्सी, बिस्तर, पियानो और वायलिन देखने में मेरी कोई खास रुचि नही थी, फिर भी अनमने भाव से बिल्डिंग में चक्कर लगा कर रसोई, सोने के कमरे, म्यूजिक रूम वगैरा देख लिए । मोजार्ट का संगीत जहां उसकी शाश्वत जीवन्तता का प्रतीक है तो ये सब प्रतीक उसकी मृत्यु की खबर दे रहे थे । थोड़ी ही देर में बाहर आ गया । हाँ ! कुछ पुराने पारिवारिक चित्र और पेंटिंग्स को ज़रूर थोड़ी उत्सुकता से देखता रहा ।