फलों , शहद और झरनों के देश क्रोएशिया में -2
14 सितम्बर 2019 से 5 अक्तूबर 2019
माटों का शराब खाना और उसकी चिन्ताएँ
पुराने शहर के मुख्य दरवाज़े पर जबरदस्त भीड़ का रेला था । लंबी डीलक्स बसों में से उतर कर टूरिस्ट ग्रुप्स के झुंड के झुंड जमा थे । मुझे दिल्ली में होने वाली राजनीतिक रैलियों की याद आ गयी । मेरी हिम्मत ही नही पड़ी कि अंदर घुस जाऊं । पैदल ही वापस शहर का नया बंदरगाह देखने के इरादे से लौट चला ।
रास्ते में एक शांत सी दुकान देखी तो कुछ पीने और सुस्ताने के इरादे से उसमे ही घुस गया । यह दरअसल एक वाइनरी थी जो मुख्य टूरिस्ट मार्ग पर न होने की वजह से इस समय वीरान थी । अंदर रेड और व्हाइट वाइन के कांच के बड़े बड़े जार थे, लकड़ी के बड़े बड़े गोल हौद थे जिनमे वाइन बनने से पहले अंगूर फर्मेंट हो रहे थे । एक तरफ लकड़ी के ऊंचे ऊंचे बॉटल रैक थे जिनमे सालों के हिसाब से वाइन की बोतलें लिटा कर जमाई गयी थी । मुझ जैसा चौंसठ बरस का प्रौढ़ अवस्था का अकेला हिंदुस्तानी सैलानी क्योंकि टूरिस्ट्स के किसी भी वर्ग में आराम से फिट नही होता तो लोगो की - खास तौर पर रेस्टोरेंट होटल या दुकानों के मालिक की जिज्ञासा का आसानी से पात्र बन जाता है ।
वाइनरी के पचास बरस के हंसमुख मालिक माटो को जब पूछने पर मैंने बताया कि मैं हिंदुस्तान से हूँ तो उसे हैरानी हुई क्योंकि वो मुझे साउथ अमेरिकन समझ रहा था । माटो ने बताया कि क्योंकि हिंदुस्तानी वो भी मेरी उम्र के, कभी अकेले नही दिखते तो उसे ये भ्रम हुआ । माटो अपनी बनाई रेड वाइन खुद ही अकेला काउंटर पर बैठा पी रहा था । मैंने भी एक ग्लास ऑर्डर किया और बैठ गया । माटो ने जब बताया कि वो और उसके बहुत सारे दोस्त सैलानियों की बेसाख्ता बढ़ती भीड़ से बहुत चिंतित है तो मुझे कुछ अजीब लगा । उसने बताया कि उसे लग रहा है कि उसका शहर जो एक शांत खूबसूरत चरित्रवान लड़की की तरह था अब भौंडी वैश्या बन रहा है जो हर वक़्त बिकाऊ है । सब लोगों ने अपने घरों में सैलानियों के लिए गेस्ट हाउस बना दिए है, ज्यादातर स्त्री पुरुष कमाने की अंधी दौड़ में अपनी कारों को उबर में टेक्सी बना कर दिन रात दौड़ा रहे है । पुराने शहर में जहां सदियों से हज़ारो पुराने परिवार बसते थे अब महज दो चार सौ लोगों को छोड़कर सबने अपने मकान और दुकान पैसे और कमाई के लालच में 'बाहर वालों' को बेच दिए हैं ।
एक तरफ माटो जहां खुश था कि उसकी वाइनरी पर ज्यादा लोग आ रहे है और उसकी कमाई बढ़ रही है दूसरी तरफ वो इस बात को लेकर खासा परेशान दिखा कि उसके खूबसूरत शहर का आखिर होगा क्या । दस बरस पहले माटो ने क्रूज़ शिप की दुनिया भर में मुफ्त सैर कराने वाली बढ़िया नौकरी छोड़ कर यह वाइनरी शुरू की थी इस उम्मीद के साथ कि जीवन के आखिरी दिन वो सुकून से बढ़िया वाइन बनाते और शहर के भद्र लोगों का अपने दुकान में स्वागत कर उनसे गपशप करते बिताएगा पर अब वो शहर में हर दिन बढ़ती भीड़ की वजह से शंका और चिंताओं से घिरा हुआ था । मैंने बिल चुकाया और पानी में हिलती डुलती छोटी बड़ी नावों को देखते नए बंदरगाह की तरफ चल पड़ा ।
चलते चलते अपने खुद के छोटे से शहर ऋषिकेश के बारे में सोच रहा था जो पचास पचपन साल पहले एकदम शांत और खूबसूरत जगह थी । सर्दियों में रात के नौ बजते बजते पूरे शहर में एक ठंडा सन्नाटा पसर जाता था जो अगले दिन सुबह साढ़े चार बजे मंदिरों की घंटियों और सड़क पर इक्का दुक्का गंगा स्नान को जाती स्त्रियों के मुंह से निकलती गंगा आरती की दबी दबी स्वरलहरियों से ही टूटता था । आज वही ऋषिकेश बारहों महीने चौबीसों घंटे लगते ट्रैफिक जाम, डीजल के धुएं, लाखों यात्रियों द्वारा फेंके गए प्लास्टिक के कचरे, सैंकड़ों लाउडस्पीकरों पर कान फाड़ देने वाले धार्मिक शोर, हर दूसरे तीसरे घर में खुले गेस्टहाउस, कदम कदम पर खड़ी रेहड़ियों और सड़कों गलियों में बेतरतीब खड़ी हज़ारों कारों बसों ट्रकों से घुट गया है । काशी नाथ सिंह ने अपने उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ में बनारस और बनारस के आर्थिक संघर्षों से जूझते सदियों पुराने पारम्परिक परिवारों पर विदेशी सैलानियों के संक्रमण को जिस शिद्दत से उतारा है , वो संसार के किसी भी देश के ख़ूबसूरत और आकर्षक पर्यटन स्थल के चरित्र संक्रमण की गाथा है ।