पैर में शनि का चक्कर यानी टर्की के शहर इस्तांबुल में आदतन घुमक्कड़ !
मई - 2014
जब मैं छोटा था तो किन्ही पंडित जी ने मेरी जन्म कुंडली देखकर कहा था कि जातक के पैर में शनि का चक्कर है इसलिए ये हमेशा घूमता ही रहेगा । मुझे लगता है कि वैसा ही चक्कर ज़रूर बहुत घुमक्कडों के पैरों में होता होगा । यह बात मैं टर्की के शहर इस्तांबुल के बेयोग्लु में तक़सीम स्कवायर पर खड़ा दाना चुगते कबूतरों को देखते हुए, औरतों को अपने छोटे छोटे बच्चे टहलाते हुए, किसी को भुने हुए चने और किसी को भुट्टे बेचता हुआ देखता सोच रहा था । स्कवायर से लगे तक़सीम ग़ाज़ी पार्क में छाया में लोग सुस्ता रहे थे , अख़बार पढ़ रहे थे और औंधे मुँह पड़े सो रहे थे । मौसम ख़ुशगवार था । दो दिन पहले ज़ोर्डन में वादी -ए-रूम के रेगिस्तानी टीलों में था और आज यहाँ अपने देश की ही तरह अख़बार की पुड़िया में बंधे भुने हुए गर्म चने खा रहा था । फ़र्क़ ये था कि चने बड़े ज़रूर थे पर उनमें ख़ुशबू और स्वाद ‘वैसा’ नही था।
फ़ातिह का पुरानी गलियों से गुजरते हुए पैदल ही बोस्फोरस पुल की तरफ़ चल पड़ा । किसी भी नए शहर से अच्छे से परिचित होना हो तो पैदल चलने का हौसला और शौक़ अच्छा मददगार होता है । रास्ते में एक जगह का नाम तक्षशिला देखकर थोड़ा चौंका । मुझे स्मरण हो आया कि एक वक़्त में कुछ हिम्मती लोग तुर्की से भी तक्षशिला (अब पाकिस्तान में) में ज्ञानार्जन या पढ़ाने जाते रहें हैं । शायद किसी ने स्मृति के रूप में इस स्थान का नामकरण उस वक़्त के महान विश्वविद्यालय के नाम पर कर दिया हो । बाँयी तरफ़ शहर और दाँयी तरफ़ चौड़े पाट वाली बोस्फोरस नदी बह रही थी । रास्ते में एक फ़र्नीचर की दुकान पड़ी जिसमें पुराना फ़र्नीचर बिक रहा था । यूरोप के सैलानियों में पुरानी चीजों के लिए बहुत आकर्षण है । फ़र्नीचर देखते ही समझ गया कि नए फ़र्नीचर को पुराना बना कर बेचने का धंधा है ।
बोस्फोरस पुल पर लाइन से लम्बी लम्बी छड़ों वाले काँटे नदी में डाले मछली पकड़ने वाले जमे हुए थे । कुछ खड़े गप्पें मार रहे थे और कुछ अपने साथ लायी कुर्सियों और स्टूलों पर बैठे किताब या अख़बार पढ़ रहे थे और बीच बीच में सरसरी तौर पर आँख उठा कर काँटे को भी देख लेते थे । मैं भी खड़ा होकर नदी में झांकने लगा । बहुत देर तक भी जब मैंने किसी के काँटे में कोई मछली फँसती नही देखी तो मुझे लगा कि शायद मछली पकड़ना इन लोगों का सोशलाइज़िंग का और वक़्त बिताने का शग़ल है । जवान उम्र का एक लड़का और लड़की मेरे पास से गुजरे, फिर वापस मुड़कर मेरी तरफ़ आए और मुस्करा कर पूछा कि क्या मैं इंडिया से हूँ । मेरे हाँ कहने पर वहीं खड़े होकर गप्पें मारने लगे । लड़का सलमान खान - शाहरुख़ खान से मुतास्सिर था और लड़की ह्रितिक़ रोशन से । दोनों की इंडिया जाकर ताजमहल देखने की ख्वाहिश थी । पता लगा कि दोनों डेट कर रहे हैं और जल्दी ही शादी करने वाले हैं । फिर बोले आप हमारे मेहमान हैं आप हमारे घर चलिए । अब मैं थोड़ा चौकन्ना हुआ। मैंने उनका शुक्रिया किया और कहा मैं किसी परिचित का इंतेज़ार कर रहा हूँ जो यहाँ का पुलिस अफ़सर है । पुलिस का नाम सुनते ही दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और गुड नाइट बोल कर पता नहीं क्यों जल्दी जल्दी चलते बने । जिस मुल्क की सांस्कृतिक विरासत जितनी पुरानी होती है - उसमें ठगी, बटमारी वग़ैरा का इतिहास भी बड़ा समृद्ध होता है ।
जब आप इस्तांबुल के पुराने इलाक़ों से गुज़रतें हैं तो यह अहसास कि बावजूद वक़्त की अच्छी बुरी करवटों के - ब्लैक सी और मेडिटेरिनियन समंदरों के बीच बसा डेढ़ करोड़ की आबादी वाला यह शहर - जो सत्रह सदियों तक बिजानटियम और कोंस्टाटिनपोल नाम से मुख़्तलिफ़ राजशाही घरानों की राजधानी रहा है- साढ़े पाँच या छह हज़ार बरस से यूँही मुसलसल चल रहा है, तो आपके दिल की धड़कनों में एक ख़ास क़िस्म की रवाइश पैदा हो जाती है ।
साढ़े पाँच सौ बरस पुराना - चार हज़ार दुकानों और साठ से ऊपर छत वाली गलियाँ वाला ग्रांड बाज़ार - पूरी दुनिया से साल में तीस से चालीस लाख सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बनता है । जब आप हज़ारों तरह के सामानों से लदी और रोशनी से चकाचौंध दुकानों के बीच से हक्के बक्के हुए गुजरते हैं तो आपको समझ आ जाता है कि दुनिया में ‘शापिंग माल’ का आइडिया कहाँ से आया होगा ।