आप सभी के लिये पाकिस्तान के मशहूर शायर अहमद फ़राज़ की एक नज़्म जो पाकिस्तान के कट्टरवादी संगठनो पर चोट करती है का हिन्दी अनुवाद पेश है.
काफ़िर हूँ, सिर फिरा हूँ मुझे मार दीजिये
मैं सोचने लगा हूँ मुझे मार दीजिये
है एहतराम हज़रते-इंसान मेरा दिल
बेदीन हो गया हूँ मुझे मार दीजिये
मैं पूछने लगा हूँ सबब अपने क़त्ल का
मैं हद से बढ़ गया हूँ मुझे मार दीजिये
करता हूँ मुल्लाओ से मैं सब सवाल
गुस्ताख हो गया हूँ मुझे मार दीजिये
खशबु से मेरा रब्त है जुगनू से मेरा काम
कितना भटक गया हूँ मुझे मार दीजिये
बे दीन हूँ मगर हैं जमाने में जितने धर्म
मैं सब को मानता हूँ मुझे मार दीजिये
ये जुल्म है के जुल्म को कहता हूँ साफ जुल्म
क्या जुल्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिये
जिंदा रहा तो करता रहूँगा हमेशा प्यार
मैं साफ कह रहा हूँ मुझे मार दीजिये
है अमन मेरी शरीयत तो मुहब्बत मेरा जेहाद
बागी बहुत बड़ा हूँ मुझे मार दीजिये
बारूद का नही मेरा मसलक है दारुद
मैं खैर मनाता हूँ मुझे मार दीजिये.