फलों , शहद और झरनों के देश क्रोएशिया में -6
14 सितम्बर 2019 से 5 अक्तूबर 2019
दुनिया के सबसे खूबसूरत प्लिटविच और सिबनिक नेशनल पार्क्स में
क्रोएशिया में लैंड होने के बाद बहुत जगह एक बात बहुत सारे क्रोएशयन ने कई बार जो बड़े गर्व से दोहराई वो है यहां के पानी के बारे में उनका विश्वास । ' आप बोतल के पानी में पैसा खराब न करे ! हमारे हर नल का पानी किसी भी बोतल के पानी से ज्यादा अच्छा और शुद्ध है । क्योंकि मेरे अपने देश में बहुत सारी बीमारियों की जड़ अशुद्ध पानी है तो शुरू में ये बात हजम नही हुई पर बाद में जब देखा कि यहां के लोग अपनी टोंटियों का पानी पीने के बाद भी लंबे तकडे स्वस्थ और हट्टे कट्टे है तो मैंने भी महंगे बोतल के पानी को छोड़कर किचन की टूंटी का पानी ही पीना शुरू कर दिया । हम भले ही बचपन से अपने घरों के कुएं और हैंड पम्प का पानी पीकर पले बढ़े है पर आजकल जब तक पन्द्रह बीस हज़ार का आर ओ वाटर फिल्टर नही लगवा लेते, तसल्ली ही नही होती ।
पता चला की स्प्लिट से 250 किलोमीटर उत्तर में प्लिटविच नेशनल पार्क है जो दुनियाँ के दस सबसे खूबसूरत नेशनल पार्कों में एक है । गाड़ी उठायी और निकल पड़ा । सड़क बढ़िया थी तो आराम से रास्ते में रुक कर भी 3 घंटे में पहुंच गया । पार्क तो वाकई बहुत खूबसूरत था पर सैलानियों की बड़ी आपाधापी थी । जबसे चीन की अर्थव्यवस्था सम्पन्न हुई है, दुनियाँ में हर बेहतरीन पर्यटन स्थल पर चीनियों की भरमार दिखती है । चीनी टूरिस्टों के बहुत सारे ग्रुप्स ने इतने बड़े और खूबसूरत प्राकृतिक स्थल को चांदनी चौक का बाज़ार बना दिया था । हर जगह लम्बी लम्बी लाइने थी । कई जगह तो लोग कंधे से कंधा मिलाकर कतारों में बस रेंग ही रहे थे । तभी एक संकल्प पुनः मन में दोहराया - हमेशा मशहूर पर्यटक स्थल पर सिर्फ और सिर्फ आफ सीजन में ही जाओ तभी उसका आनंद उठा पाओगे ।
स्प्लिट में एक शांत और सौम्य वृद्ध विधवा के जिस खूबसूरत घर में रुका हूँ उसमे नारंगियों के पेड़ के अलावा अनार और आलूबुखारे के पेड़ भी है । दूर से ही सही पर समुद्र के नीले विस्तार का मनमोहक नज़ारा है । कल सुबह पेड़ को थोड़ा हिलाया तो कुछ पके आलूबुखारे नीचे गिर पड़े । जीवन में इतने मीठे और स्वाद आलूबुखारे इससे पहले कभी नही चखे । वृद्धा माता जी इतने बड़े घर में अकेली ही रहती है । एक लड़की है जो पास ही कहीं अपने परिवार के साथ रहती है । माता जी क्योंकि ठीक से अंग्रेजी समझ नही पाती तो लड़की ही फोन पर घर में रुकने वाले सैलानियों से सम्पर्क में रहती है । लड़की बहुत मेहनती है । वैसे तो लड़की खासी सम्पन्न है -नई मर्सिडीज कार चलाती है पर इस घर की साफ सफाई, झाड़ू पोछा खुद ही खुशी खुश करती है ।
बीस मिनट पैदल रास्ते की दूरी पर हर रोज़ सुबह सात बजे से ग्यारह बजे तक फार्मर्स मार्किट यानी किसानों का बाज़ार लगता है । आस पास के पहाड़ी और मैदानी कस्बों के किसान शहद, तरह तरह के चीज़ या पनीर, फल, सब्जियां, मछली, अंडे, गोश्त लाकर अपने नियत स्थानों पर जम जाते हैं । पर्यटक क्योंकि बहुत होते है तो यह जानकर कि सैलानी लोग ज्यादा भाव ताव नही करते, अपनी मर्जी से दाम वसूला जाता है हर देश की तरह । मैंने जब एक महिला दुकानदार से पके टमाटर और प्याज खरीदे तो उसने बिना तराजू अंदाजे से ही गिनकर दे दिए । पैसे देकर मैं चलने लगा तो वापस बुला कर हंसते हुए पता नही क्यों दो टमाटर और दे दिए । एक और दुकानदार ने जबरदस्ती करके चीज़ यानी क्रोएशयन पनीर का एक बड़ा सा टुकड़ा जो वाकई बहुत स्वाद था, मुझे इस उम्मीद में कि शायद मै खरीद लूँ, दे दिया ।
सत्रह सौ साल पुराने चर्च के लंबे चौड़े दालान में, मैं भी एक टूरिस्ट गाइड के ग्रुप में मोटी गाइड फीस देकर फंस गया । चील जैसी शक्ल और भाड़ जैसे मुंह वाली पतली दुबली गाइड ने सुनाया ज्यादा दिखाया कम । जितना मैं खुद दस पन्द्रह मिनट में देख लेता उसे उसने डेढ़ घण्टे में यहां वहां की फालतू बातें करते हुए बताया । एक जगह बड़ी सी धातु की मूर्ति के सामने लोगों की लम्बी लाइन लगी थी । लोग मूर्ति के दांये पैर के अंगूठे को घिस कर आंख मूंद कर कुछ बुदबुदा रहे थे । पता चला किन्ही बिशप ग्रेगरी की मूर्ति है जिन्होंने ग्यारह सौ बरस पहले रोम के बड़े पोप से रोमन भाषा के विरुद्ध क्रोएशयन मातृ भाषा के अधिकार पर विद्रोह कर दिया था और बिशप पद से हटा दिए गए थे । फिर 1929 में लोगो ने उनकी याद में ये मूर्ति बनवा दी और पता नही कैसे मान्यता बन गयी कि मूर्ति के दांये अंगूठे को रगड़ने से मन की मुराद पूरी हो जाती है । पूरा बुत तो वैसे मटमैला है पर पैर का दांया अंगूठा लगातार रगड़े जाने की वजह से सोने की तरह चमक रहा था ।
टूर गाइड से मैंने जब अच्छे पिज्जे की दुकान के बारे में दरयाफ्त की तो उसने कोने की एक छोटी सी दुकान की तरफ इशारा किया । पिज़्ज़ा बहुत वाजिब दाम में और बहुत ज़ायकेदार था । खाकर मज़ा आ गया । उसी की बतायी दुकान से पिस्ते वाली जिलाटो आइसक्रीम भी खाई जो वाकई बेहद मलाईदार और स्वाद थी ।
अगले रोज़ पता लगा कि डेढ़ घण्टे की ड्राइविंग की दूरी पर सिबनिक में करकरा राष्ट्रीय उद्यान है । गाड़ी उठायी और निकल पड़ा । छोटी सड़कें और राजमार्ग अच्छे बने हुए हैं । एक घंटे से थोड़ा ऊपर के समय में ही पहुंच गया । क्रोएशिया में सभी राष्ट्रीय उद्यानों को बहुत अच्छी तरह सरंक्षित किया जाता है इसलिए टिकट अच्छी खासी महंगी है । बोट ट्रिप मिला कर 320 कुना यानी हिंदुस्तानी रुपयों में करीब साढ़े तीन हज़ार रुपये की टिकट थी । पहले चार घण्टे की बोट ट्रिप थी । कुछेक जवान जोड़ों को छोड़कर ज्यादातर सैलानी प्रौढ़ावस्था के सर्बियन थे । महज एक सौ साठ मीटर लम्बे और सौ मीटर चौड़े विसोवेच द्वीप पर पहला पड़ाव था जहां सैंट फ्रांसिस का बनवाया चार सौ बरस पुराना चर्च था । वहां से बोट चली तो तीन चार प्रौढ़ सर्बियन औरतों में सीट को लेकर झगड़ा हो गया । सबने सोचा था कि बोट चलने से पहले लाइन में लग कर जो बढ़िया सीट मिली थी, पूरी यात्रा में वही सीट रिजर्व हो जाएगी । पर सर्बियन औरतों की सोच थी कि उन्होंने भी पूरा पैसा खर्चा है तो उन्हें बढ़िया सीटों पर बैठने का पूरा हक़ है क्योंकि सीटें रिजर्व नही है । बहुत देर तक तू तड़ाक और गर्मा गर्मी रही । समझ तो मुझे कुछ नही आया पर आवाज के उतार चढ़ाव से अंदाज़ा लगता रहा कि झगड़ा बढ़ रहा है या शांत हो रहा है । बोट पर हालांकि तीन नेशनल पार्क के कर्मचारी थे पर वे निरपेक्ष भाव से सिगरेट के छल्ले उड़ाते रहे ।
पूरा पार्क वाकई बहुत खूवसूरत है । मेरी ही उम्र के वैंकूवर में रहने वाले एक कनाडियन पति पत्नी से परिचय हो गया । पति रिटायर्ड इंजीनियर थे और पत्नी कार्यरत शिक्षिका । दोनो बहुत सौम्य और सज्जन थे और भारत को छोड़कर बहुत देशों की यात्रा पर जा चुके थे । पर जितने टूरिस्ट्स चीन से थे उतने किसी और देश से नही । चीन के टूरिस्ट्स न तो किसी अन्य देश के लोगों से कोई सम्प्रेषण करते है और न ही किसी के सम्प्रेषण पर कोई उत्तर या प्रतिक्रिया देते हैं। बस पूरी तरह अपने अपने ग्रुप्स में ही खोये रहते है । हर जगह अपने कैमरों या सेल फोन्स से फोटो खींचते या सैल्फिंया लेते ही नज़र आते है । जहां चीनी पुरुष अक्सर सामान्य और औसत दर्जे के कपड़ों में दिखते हैं, वहीं औरते महंगे भड़कीले कपड़ों, घड़ियों और जेवरात में सजी लकदक नज़र आती हैं ।
एक घड़ी और इलेक्ट्रॉनिक कम्पनी द्वारा प्रायोजित समूह अलग अलग शहरों से आये भारतीय पुरुषों का भी दिखा जो एक मैदान के बीचो बीच बैठकर साथ लाये खाखरे चिप्स और मठ्ठियों के साथ प्लास्टिक के गिलासों में बियर पी रहे थे और तेज़ आवाज में शोर मचा रहे थे । देखने से ही लगता था कि ज्यादातर लोग मध्यमवर्गीय दुकानदार थे जिनको कम्पनी का ज्यादा सामान बेचने के एवज में मुफ्त यात्रा का मौका मिला था ।