फुदकती फुदकती
मेरी खिड़की पर
फिर आ बैठी गिलहरी
छोटी सी लीची को
कुतर कुतर छीला
फिर मुझसे पूछा
क्या हुआ
सब खैरियत तो है
देखती हूँ कई महीनों से
कैद हो महज घर में
न बाहर जाते हो
न किसी को बुलाते हो
बस उलझे उलझे
उदास नज़र आते हो ?
मैंने देखा उसकी
चौकन्नी आंखों को
सफेद भूरी
चमकती धारियों को
छोटे छोटे सुंदर पंजो को
पल पल लहराती झबरी दुम को
वो तो वैसी ही थी
पेड़ की कोटर में रहती थी
अभी भी फुदक फुदक
पेड़ों पर चढ़ती थी
सूरज देख मुस्कराती थी
बारिश में नहाती थी
हवा में झुरझुराती थी
मैंने कहा
प्यारी गिलहरी
दुनिया को हुआ है कोरोना
हर तरफ मचा है रोना धोना
ज़िन्दगी सिहर सी गयी है
एक दम ठहर सी गयी है
सबको जान के लाले है
मुंह पर मास्कों के ताले है
मुझे टुकर टुकर ताकती बोली
तुम्हारी बातें समझ नही आती
पता नही कौन सी दुनियां की खबर हो सुनाते
झूठे किस्सों से मुझे भी डराते
बच्चे हैं भूखे मुझे है जाना
ये मनगढ़ंत बातें किसी और को बताना
मैं कुछ कहता वो लीची लिए सुर्र हो गयी
पेड़ो पर बैठी चिड़िया भी
थी इन बातों को सुनती
वो मुझ पर जोर जोर हंसी
और फुर्र हो गयी ।