प्यार हो और कहना पड़े ?
क्या
मेरी आंखों में
मेरी सांसो में
मेरे सुनने में
मेरे कहने में
तुम्हे प्यार नज़र नही आता ?
क्या
मेरी सोच में
मेरी चिंता में
मेरी दृष्टि में
मेरी सृष्टि में
तुम हमेशा नही रहती ?
क्यूँ
तुम्हारा रोना
नम करता है मुझे
और तुम्हारा हँसना
उल्लासित
क्यूँ
तुम्हारा मान - अपमान
करता मुझे भी
आनन्दित - क्रोधित ?
क्यूँ
मेरे स्वप्नों में
तुम उतर उतर आती हो
अक्सर !
क्यूँ
मेरे ह्रदय में रहती हो
धड़कन बनकर ?
प्यार हो
और कहना पड़े ?
ना ना
कभी भी नही !
हरगिज़ नही
कहूंगा तुमसे
कि मुझे प्यार है तुमसे
कल परसों से नही
बरसों से !!! -