पापा ‘आफ’ हो गए : दिनेश डाक्टर
श्रीनाथ के बड़े लड़के ने दिवाकर को फोन पर सूचना दी कि पापा ‘आफ’ हो गए | पहले तो दिवाकर को कुछ समझ में नहीं पड़ा कि लड़का क्या कह रहा है पर जब उसने लड़के की अंग्रेजी भाषा की योग्यता पर गौर किया तो सारी बात समझ में आ गयी कि श्रीनाथ चल बसा |
दिवाकर को दरअसल इस समाचार का बहुत दिनों से इंतजार था | पता नहीं क्यों पर कुछ दिनों से दिवाकर ऐसी कामना करने लगा था कि अच्छा हो श्रीनाथ मर ही जाये | दोनों बेटियां तो पहले ही शादी होकर अपने घर जा चुकी थीं | बड़े बेटे का भी विवाह हो गया था | उसके बड़े बेटे के विवाह के बाद से ही कुछ गड़बड़ा गया था |
हर बार जब वो ऋषिकेश आता था तो मामा के यहाँ से उसे श्रीनाथ और उसके परिवार के बारे में अजीब से व्यथित करने वाले समाचार ही मिलते थे | कभी पता लगता था कि श्रीनाथ पता नहीं किस मंतव्य और भाव से पुत्रवधू को मानसिक उद्वेग दे रहा है | कुछ लोगों ने ऐसा भी बताया कि उसकी पुत्रवधू पर कुदृष्टि है और मंतव्य पूरा नहीं होने से उससे अभद्र व्यवहार करता है और बात बात पर उसका अपमान करता है | उसकी पत्नी जब भी कोई हादसा होता था तो मामा , मामी की शरण में आकर रोते रोते ह्रदय का सारा दुःख उड़ेल कर चली जाती थी |
पहली बार श्रीनाथ दिवाकर को मामा के घर ऋषिकेश में मिला था जहाँ वह विद्यार्थी की तरह रहता था | आर्थिक रूप से श्रीनाथ उन दिनों विपन्न स्थिति में था | उसका विवाह हो चुका था पर पत्नी और बच्चे पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसी गाँव में, उसके पैतृक घर में ही रह रहे थे | पिता की पचास वर्ष की अल्पायु में आकस्मिक मृत्यु के बाद दिवाकर गाँव ही में रह रहा था | एक दिन अचानक ही श्रीनाथ दिवाकर से मिलने उसके गाँव पहुँच गया | शायद मामा लोगों ने ही उसे दिवाकर के हित में उसे वहां भेजा था | उन दिनों श्रीनाथ थोडा थोडा पूजा पाठ, कर्मकांड सीख कर काम चला लेता था | इसमें कोई संदेह नहीं की श्रीनाथ बुद्धिमान तो था | चालाक शब्द उसके लिए और भी उपयुक्त होगा | श्रीनाथ की प्रेरणा से दिवाकर ने एक शांति पाठ हवन करवा दिया | उसी रात श्रीनाथ ने जब अपनी आर्थिक विपन्नता और अन्य मजबूरियों की सारी बात रुंधे कंठ से दिवाकर को बताई तो दिवाकर, जो खुद अच्छी स्थिति में नहीं था , श्रीनाथ के लिए ‘कुछ’ करने को प्रेरित हुआ | फलस्वरूप अगले दिन उसने श्रीनाथ को अच्छा ख़ासा माल दे कर विदा किया | आँखों में छलकते आंसुओं से श्रीनाथ ने यह कह कर विदा ली कि आज तक किसी ने उसे न तो इतना धन दिया और न ही सम्मान | दिवाकर था तो समझदार पर परले सिरे का भावुक मूर्ख भी था | अपनी परवाह किये बिना किसी के लिए कुछ करने में उसके हृदय में एक अजीब किस्म का मादक रस टपकता था जो उसे अंदर तक गहन शांति और संतुष्टि देता था और शायद कहीं उसके सामंती किस्म के अहंकार का पोषित भी करता था | खैर श्रीनाथ ने दिवाकर के इस रसास्वाद के ‘एडिक्शन’ को ठीक से पढ़ और समझ लिया और गाँठ में बाँध लिया |
दिवाकर की बहुत सी कमजोरियों में एक कमजोरी उसका ‘कंट्रोल फ्रीक’ यानी के हर स्थिति पर खुद का नियंत्रण करने की प्रवृत्ति का होना भी था | शायद जिन लोगों पर अल्पायु में परिवार का भरण पोषण करने की जिम्मेदारी चाहे अनचाहे आन पड़े , उनमे ऐसी प्रवृत्ति एक डिफेंस मेकेनिज्म की वजह से पैदा हो ही जाती है | दिवाकर में भी ऐसा ही कुछ पनपना शुरू हो गया था | पिता की मृत्यु के बाद वो खुद मुख्तारी के आलम में अपने सारे निर्णय खुद लेने लगा | किसी से सलाह लेना या विमर्श करना उसे अपनी कमजोरी जान पड़ता था | इसी मूर्खता में उसने बहुत नुक्सान भी उठाये | सहारनपुर में अपने मुसलमान दोस्तों के साथ प्लास्टिक के बैग बनाने की फेक्ट्री लगा कर उसमे अच्छा ख़ासा नुक्सान भी उठाया पर सबक फिर भी नहीं सीखा | समय समय पर ऐसी बहुत सी बेवकूफियां और वो भी जल्दबाजी में वो समय समय पर करता ही रहा | हालाँकि तुक्के में इस प्रवृति के कई फायदे भी कालांतर में उसे हुए |
ऐसी ही ‘इम्पल्सिव’ प्रवृति के चलते एक दिन उसने गाँव छोड़ कर ऋषिकेश बसने का निर्णय कर लिया | गाँव में कुछ था भी नहीं और न ही उसे अपना कोई भविष्य वहां नजर आ रहा था | संघर्ष के दिनों में ऋषिकेश और उसके बाद हरिद्वार में प्रवास के दौरान श्रीनाथ से उसके सम्बन्ध प्रगाढ़ होते गए | दिवाकर का सामंती किस्म का अहंकार यह अनुभव कर पुष्ट होता था कि वो भी किसी का सहारा बन सकता है | श्रीनाथ को उसने एक तरह से अपने प्रश्रय में रखने को मौन सहमति दे दी थी | मामा भी ऐसी ही प्रवृति के चलते सालों श्रीनाथ पर कृपा दृष्टि बनाए रहे, उसके बहुत सारे दोषों को जानने के बावजूद भी | दिवाकर को कहीं यह बात अच्छी लगती थी कि एक थोड़ी बहुत पंडिताई और ज्योतिष जानने वाला व्यक्ति उसे हर समय अनुकृत भाव से उपलब्ध है | जब दिवाकर के विवाह में कर्मकांड इत्यादि कर्म के लिए पंडित का प्रश्न आया तो उसके मन में श्रीनाथ को छोड़कर किसी अन्य का विचार भी नहीं आया | विवाह के बाद सब लोगों ने श्रीनाथ के ज्ञान और सामर्थ्य की खूब आलोचना की , खास तौर पर दिवाकर के फूफा जी ने, पर दिवाकर पर न किसी का असर होना था और न ही हुआ | दिवाकर ‘आउट ऑफ़ द बोक्स’ जाकर जल्दी से सोचता ही नहीं था | उसे अपने कम्फर्ट ज़ोन में परिचित लोगों के साथ डील करना ज्यादा ठीक लगता था भले ही उसमे कितना भी बड़ा धोखा हो जाये | श्रीनाथ उसके अंदर के लोगों में शामिल हो चुका था | कालांतर में भले ही श्रीनाथ को मकान बनाने के लिए पैसे की ज़रुरत हो या उसकी लड़की के विवाह का खर्चा हो , दिवाकर दिल खोलकर श्रीनाथ की सहायता को सदैव उपलब्ध रहा , तब भी जब श्रीनाथ का छल पूर्ण चरित्र उसके सामने आ चुका था | दिवाकर उससे बात भी नहीं करता था तो भी उसकी लड़की के विवाह में मामा के माध्यम से ज़रुरत का पैसा भिजवा दिया |
श्रीनाथ में संभावनाएं तो थी पर उसका अपनी वाणी पर संयम नहीं था | बोलता था तो सामने वाले को प्रभावित करने के लिए अनर्गल प्रलाप करने लगता था | लोग उसके हल्केपन को जल्दी ही भांप पर उससे किनारा कर लेते थे | दिवाकर की माँ को छोड़कर, परिवार के अन्य सदस्य श्रीनाथ को नापसंद करते थे | माँ की तो खैर अपने घर से सम्बंधित हर व्यक्ति और वस्तु के प्रति अनक्वेश्चनेबल फेथ थी और माँ श्रीनाथ को अपने मायके के घर से जुड़ा हुआ मानती थी | दिवाकर की पत्नी की उससे खासी खुन्नस थी जिसका कारण था श्रीनाथ का चारित्रिक दोष , जिसे पत्नी से सबसे पहले समझा था | हालाँकि ऐसा ही कुछ इशारा दिवाकर की बहिन ने भी हल्के फुल्के ढंग से दिया था | पर दिवाकर के मूर्खतापूर्ण दोषों में से एक यह भी था कि जिस पर विश्वास करता था , अन्धविश्वास करता था | उसने पत्नी और बहिन की बातों को हलके में उड़ा दिया |
धीरे धीरे श्रीनाथ ने अपना स्वरुप बदलना शुरू कर दिया | आरम्भ में क्लीनशेव रहता था , चोटी रखता था, माथे पर लाल चन्दन का टीका लगाता था, कद उसका छोटा तो नहीं पर मध्यम से कम था , पतला दुबला पर गठा हुआ शरीर था | सुंदर भावप्रवण आँखे, स्वच्छ दन्त पंक्ति, पतले ओंठ, और सुते हुए चेहरे पर अक्सर उत्साहपूर्ण मुस्कराहट खिलती थी |
उन्ही दिनों एक साधू ने मायाकुंड में अपना एक छोटा सा आश्रम श्रीनाथ को रहने को दे दिया | थोड़े समय के बाद श्रीनाथ का परिवार भी वहीँ रहने आ गया | वहीँ से शायद उसके मन में छल के बीज पड़ने शुरू हो गए | उसने वहां एक ज्योतिष और तंत्र मन्त्र केंद्र खोल लिया , बाल बढ़ा लिए, दाढ़ी बढ़ा ली, माथे पर लाल और काले रंग के बड़े बड़े टीके लगाने लगा और खुद को छिन्नमस्ता का उपासक और तंत्र सम्राट घोषित कर दिया |
इस मौके पर एक दिन श्रीनाथ ने दिवाकर को अपने घर पार्टी पर आमंत्रित किया | कहीं से एक अंग्रेजी शराब की बोतल ले आया | कुँए का पानी लोहे की बाल्टी में भर कर पास रक्खा गया | बात बात में “बाह डाक्टर साहब बाह” उच्चारते हुए स्टील के गिलासों में शराब उड़ेल कर पीतल के लोटे के पानी से श्रीनाथ ने पैग बनाये | दिवाकर हालाँकि डाक्टरी कि प्रेक्टिस नहीं करता था पर उसने क्योंकि डाक्टरी की डिग्री ली थी तो परिचित उसे डाक्टर साहब कह कर ही पुकारते थे | श्रीनाथ की पत्नी ने लोहे की कढाई में कडवे सरसों के तेल में मछली और हरी मिर्च के स्वादिष्ट पकोड़े तल कर सर्व किये |
कुछ देर बाद नशे में श्रीनाथ का अनर्गल प्रलाप भी शुरू हो गया | “ छिन्नमस्ता माँ है डाक्टर साहब ||माँ है ||जो चाहता हूँ कर देती है ||वो डाकिनी है ||डाक ले आती है||एक दिन पहले ही बता देती है कि कौन आने वाला है ||क्या समस्या लाने वाला है” | दिवाकर को प्रभावित करने के लिए उसने पत्नी से भी हाँ करवाई | “हाँ भाई साहिब पंडित जी तो एक दिन पहले ही बता देते हैं कि आज छिन्मस्ता माँ ने स्वप्न में दर्शन दिया और बताया कि डाक्टर साहिब आने वाले हैं” ||||पत्नी ने ठेठ पूर्वांचली लहजे में श्रेष्ठ अभिनय द्वारा तुरंत अनुमोदन किया |
दिवाकर इस सारे नाटक को देखकर थोडा विस्मित तो हुआ पर प्रभावित बिलकुल भी नहीं | वो खुद भी ख़ासा अपोर्चुनिस्ट था | उसने अपने परिचित सरकारी अफसरों और सेठों को प्रभावित करने के लिये कुछ सोचा और उन्हें श्रीनाथ के छद्म आभामंडल में खींचने के लिए एक प्लान पर काम करना शुरू कर दिया | दिवाकर को अच्छी तरह पता था कि श्रीनाथ कम्प्लीट फ्राड है पर रिश्वतखोर अफसरों और व्यवसाय में नुक्सान से भयग्रस्त मारवाड़ी सेठों में अपनी साख बनाने के लिए उसके पास इससे अच्छा मौका नहीं था | प्लान कामयाब हुआ | आने वाले समय में श्रीनाथ को खूब धन मिला और दिवाकर का प्रभाव् मंडल धीरे धीरे चमकना शुरू गया | जहाँ एक तरफ उसे उन दिनों के हिसाब से अच्छा ख़ासा इन्क्रीमेंट मिला वहीँ दूसरी तरफ बड़े बड़े सरकारी अफसर जो बिना अपॉइंटमेंट बड़े बड़े उद्योगपतियों से भी नहीं मिलते थे , दिवाकर से कुर्सी छोड़कर मिलने लगे और अपने घर आमंत्रित करने लगे |
उधर श्रीनाथ के इरादे जब तक आश्रम के अधिष्ठाता बाबा पर प्रकट हुए तब तक अच्छी खासी देर हो चुकी थी | बाबा ने मुकद्दमा किया , गुंडई की, मारपीट की पर श्रीनाथ के इरादे स्पष्ट और दृढ थे | उसके लिए सवाल सरवाइवल का था | उसे मालूम था उसके और परिवार के पास और कोई ठौर है नहीं | मुफ्त का माल कौन हाथ से जाने दे | फौजदारी हुई , जेल हुई , मारकाट भी हुई पर श्रीनाथ को पता था कि ‘कब्ज़ा सच्चा मिल्कियत झूठी’ | उसने प्रण कर लिया था कि जान जाये तो जाए पर कब्ज़ा नहीं छोड़ना है | दो चार साल में बाबा को भी समझ आ गया कि बाज़ी हाथ से निकल गयी हो | धीरे धीरे बाबा उदासीन हो गया और कुछ दिनों में परलोक सिधार गया |
अब श्रीनाथ परिवार का दिवंगत बाबा की संपत्ति पर कब्ज़ा निर्बाध था | मामा जो श्रीनाथ के सच्चे हितैषी थे इन सब घटनाओं से व्यथित थे | उन्हें लगता था कि एक फ़कीर साधू की संपत्ति पर कब्ज़ा नहीं करना चाहिए | बाद में जब श्रीनाथ के दुर्दिन शुरू हुए तो मामा ने उसे दिवंगत साधू का शाप ही समझा |
पहला झटका श्रीनाथ को तब लगा जब उसकी पंद्रह सोलह बरस की बिना ब्याही लड़की गर्भवती हो गयी छोटा शहर है में बात सब तरफ दुर्गन्ध की तरह फटाफट उड़ गयी | पूछताछ करने पर पता भी चल गया कि श्रीनाथ के एक घनिष्ठ सज्जन और सह्रदय आचार्य और गुरु के पहले से ही विवाहित लड़के का चक्कर है | लड़की क्योंकि नाबालिग थी तो जैसे तैसे गर्भपात करवा कर मामले को रफा दफा कर दिया गया | पर श्रीनाथ पर बदले की भावना इस कदर हावी हो गयी कि उसने सज्जन गुरु के साथ , जिनका कोई भी दोष या अपराध इस घटनाक्रम में नहीं था, अत्यंत निन्दित और अभद्र व्यवहार किया | लड़का तो पहले ही शहर छोडकर कहीं गायब हो चुका था | सज्जन आचार्य को श्रीनाथ और उसकी पत्नी द्वारा इतना अपमानित और प्रताड़ित होना पड़ा कि वो एक दिन चुपचाप उस शहर से, जहाँ उनका पूरा जीवन बीता था, अत्यंत दुखी मन से विदा हो गए |
मामा ने, जो स्वयम उन सज्जन आचार्य के घनिष्ठ थे, उसी दिन भविष्वाणी कर दी कि अब श्रीनाथ का पतन शुरू हो गया है और अब इसकी बर्बादी निश्चित है |
और आने वाले दिनों में ऐसा ही हुआ भी |
दिवाकर ने इसी बीच अपने कई धनी मित्रों से भी श्रीनाथ का परिचय करवा दिया | वहां श्रीनाथ का आना जाना शुरू हो गया | मित्रों ने शुरू शुरू में तो श्रीनाथ की अच्छी खासी आवभगत की, प्रचुर धन सम्मान भी दिया पर धीरे धीरे दबी जुबान से शिकायत करने लगे कि पंडित को तंत्र मन्त्र के नाम पर रोज़ शराब और मांस चाहिए और यह भी कि पंडित शराब के नशे में अनर्गल प्रलाप करता है | एक परिचित के यहाँ तो हद ही हो गयी | शराब के नशे में श्रीनाथ ने जब उसके कम उम्र नौकर से समलैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जोर जबरदस्ती करने का प्रयास किया तो बच्चा घबरा गया और मालिक से शिकायत की | परिचित ने बड़े दुखी मन से दिवाकर को फोन किया और सारी घटना बतायी | परिचित के नौकर पर संदेह करने का प्रश्न ही नहीं था | श्रीनाथ के चारित्रिक दोष से दिवाकर थोडा बहुत तो परिचित था पर वो इतना गिर जायेगा , ऐसी कल्पना भी दिवाकर ने नहीं की थी |
इस घटना के बाद दिवाकर का मन खिन्न हो गया | परिवार के सब सदस्य श्रीनाथ को पहले से ही नापसंद करते थे | दिवाकर ने अपने हिसाब से श्रीनाथ को जता दिया कि अब उसका स्वागत दिवाकर के घर में नहीं है | धीरे धीरे सब मित्रों और परिचितों को भी दिवाकर ने अपने निर्णय से अवगत करा दिया | धीरे धीरे उन सबों ने भी श्रीनाथ के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए |
श्रीनाथ ने पुनः दिवाकर के मन में स्थान बनाने का कई बार प्रयास किया पर उसका मन अब श्रीनाथ कि तरफ से पूरी तरह उदासीन हो चुका था | मामा के घर कई बार मिला पर दिवाकर के ठन्डे और औपचारिक व्यवहार से समझ गया कि अब दिवाकर के यहाँ दाल नहीं गलने वाली | कुछ समय बाद श्रीनाथ ने आर्थिक संकट की दुहाई देकर जब छोटी लड़की के विवाह में आर्थिक सहायता की सिफारिश की तो दिवाकर ने हालाँकि मन नहीं था तो भी मामा से ही प्रार्थना कर दी कि उसकी तरफ से यथोचित प्रबंध कर दें | बस पैसा मामा को भेज दिया और यह भी जानने का प्रयास नहीं किया कि क्या हुआ और कैसे हुआ | श्रीनाथ ने एक बार फिर चालाकी से अपना उल्लू सीधा कर लिया था और दिवाकर जानते बूझते भी यह मान कर बेवकूफ बन गया था कि शायद इसका कोई पिछले जन्म का क़र्ज़ देना है | उस विवाह के बाद दिवाकर ने श्रीनाथ की तरफ से अपने को पूरी तरह निरपेक्ष कर लिया |
मामा गृह से समाचार मिला कि आजकल श्रीनाथ पागलों जैसी हरकतें करने लगा है | कभी कहता है कि अब सिले हुए वस्त्र नहीं पहनूंगा | कभी कई कई दिन खाना नहीं खाता | तरह तरह के नशे भी करने लगा है | कभी सब लोगों से खूब झगडा करता है | बड़े लड़के का भी तब तक विवाह हो गया था | उसके विवाह के बाद समस्या और बढ़ गयी | पुत्रवधू से बिना बात का वैमनस्य रखने लगा | बड़े लड़के को बार बार कहता कि वो अपनी पत्नी को तलाक देकर घर से निकाल दे |
फिर पता लगा कि बीमार रहने लगा है | शूगर बहुत बढ़ गयी है | पागलपन उग्र होता जा रहा है | परिवार के लोग उससे बहुत परेशान रहने लगे हैं | एक बार सुना कि दोनों लड़कों के मिल कर अच्छी खासी ठुकाई करके कमरे में बंद कर दिया क्योंकि उसका व्यवहार और प्रलाप दिनोंदिन उग्र और निंदनीय होता जा रहा था | धीरे धीरे स्थिति बहुत नाज़ुक होती जा रही थी |
जब पानी सर से ऊपर उतरने लगा तो एक बार श्रीनाथ की पत्नी ने प्लान बनाया कि उसे किसी अनजान जगह किसी दूर के स्टेशन पर अकेले छोड़कर चली आये | ऐसा किया भी गया | पूर्वी उत्तर प्रदेश में दूर किसी स्थान पर उसकी पत्नी उसे ले गयी | किसी बड़े जंक्शन पर पत्नी ने उसे किसी विपरीत दिशा में जाने वाली दूसरी गाडी में बैठा दिया और खुद घर की तरफ आने वाली गाडी में सवार हो गयी | पर श्रीनाथ अभी तक इतना बदहवास नहीं हुआ था कि बेवकूफ बन जाता | उसे पता नहीं कैसे आभास हो गया कि पत्नी उससे मुक्ति पाकर भाग रही है | गाडी चल पड़ी थी और पत्नी का कहीं अता पता नहीं था | श्रीनाथ ने चेन खींची और गाडी से कूद गया | लोगों से पूछपाछ कर तुरंत घर जाने वाली गाडी में दौड़कर सवार हो गया | पत्नी गाडी की सीट पर बैठी जब चैन की सांस ले रही थी कि चलो आफत से पीछा छूटा, तभी श्रीनाथ ने पहुंचकर हाथ पकड़ लिया और रोने लगा कि उसे छोड़कर क्यूँ जा रही है |
अब ट्रेन में ड्रामा हो गया | श्रीनाथ की पत्नी इतनी परेशान थी कि उसने सहयात्रियों से कहा कि वो इस व्यक्ति को नहीं जानती कि कौन है और क्यों उसके पीछे पड़ा है | इस पर लोगों ने श्रीनाथ की पिटाई भी कर दी कि क्यों वो एक भद्र महिला को तंग कर रहा है | पर श्रीनाथ ने पत्नी का हाथ नहीं छोड़ा, पिटता रहा और रोना ज़ारी रक्खा | अब स्त्री का मन था पसीज ही गया | पत्नी भी रोने लगी और उसने रोते रोते सारी दुर्दशा सहयात्रियों को सच सच बता दी कि क्यों वह ऐसा व्यवहार कर रही है | तो मुसीबत एक बार फिर वापस घर आ गयी |
फिर पता लगा कि श्रीनाथ गंभीर रूप से बीमार है, उसके शरीर में त्वचा पर कोई गंभीर बीमारी हो गयी है | उसके शरीर से दुर्गन्ध उठने लगी है , उसके कमरे में भी कोई नहीं जाता | उसी कमरे में पड़ा रहता है | पत्नी भोजन की थाली खिसका कर चली आती है |
और एक दिन इसी हालत में बकौल उसके बड़े बेटे के “श्रीनाथ आफ हो गया” |
छोटे लडके का रिश्ता हो चुका था | उसके विवाह के लिए पूरा परिवार जैसे श्रीनाथ के मरने की ही प्रतीक्षा कर रहा था | श्रीनाथ के मरने के सिर्फ पंद्रह दिन बाद जबरदस्त गाजे बाजे और आतिशबाजी के साथ छोटे लड़के की बारात चढ़ी |
देखने वालों ने बताया कि श्रीनाथ की पत्नी ढोल की थाप पर बारात के पूरे रास्ते बिना थके लगातार झूम झूम कर नागिन डांस करती ही चली गयी |