‘विएना’ खूबसूरत और दिलकश प्रेमिका की तरह एक शहर - 4
विदा विएना विदा ! फिर लौट आऊँगा !!! अप्रैल 12-18 , 2018
अगले सात दिनों में विएना में इतने म्यूजियम देखे, इतने पुराने किले और तकनीकी रूप से इतनी पुरानी पर उत्कृष्ट इमारते देखी और इतना घूमा देखा कि एक पूरी किताब उस पर आराम से लिखी जा सकती है। ग्लोब म्यूज़ियम में सोलहवीं सदी के सैंकड़ों तरह के एक से एक पुराने गलोब्स थे । दूसरे म्यूज़ियम में पुराने से पुराने रेल इंजन और रेलवे के कोच थे । टाइप राइटर म्यूज़ियम में सन 1860 के बाद के क़रीब क़रीब हर तरह के टाइप राइटर्स का संग्रह था । मुझे यह देखकर बड़ी हैरानी हुई की कार बनाने वाली मशहूर मर्सिडीज़ कम्पनी 1920 में टाइप राइटर्स भी बनाती थी।
ग्रामोफ़ोन म्यूज़ियम में सन 1890 से लेकर सैकड़ों प्रकार के एक से एक बेहतरीन तकनीकी श्रेस्ठता लिए हुए ग्रामोफ़ोन्स का संग्रह था । कैमरों के म्यूज़ियम में सन 1895 से लेकर अब तक की सब तकनीकों से लैस कैमरों का संग्रह था । मोटरसाइकिलों और कारों के म्यूज़ियम में एक से एक पुराने वाहन थे । 1697 में निर्मित लोअर और 1717 में निर्मित अपर बेलवेडेयर के विशाल भवनों में दुनिया के श्रेस्ठ कलाकारों की पेंटिंग्स, शिल्प और अन्य कृतियों का विविधता लिए हुए बहुत बड़ा संग्रह है । एक एक पेंटिंग ऐसी है कि जितना भी देखो मन नही भरता । एक एक शिल्प ऐसा है कि कलाकार के प्रति ह्रदय में श्रद्धा और सम्मान भर जाता है । गुस्ताव क्लिमिट की मशहूर कृति ‘द किस’ का मौलिक संस्करण भी वहाँ था जिसे देखने के लिए भारी भीड़ थी । दोनों बेलवेडेयर में कृतियों का इतना बड़ा संग्रह है कि उन्हें ठीक से देखने के लिए दो दिन भी काम हैं। दुनिया भर के इतने सारे म्यूजियम देख चुका हूँ और अब और नए म्यूजियम देखने में कुछ नया नज़र न आने की वजह से ऊब सी हो जाती है । पिछले दिनों गलती से दिल्ली में जनपथ पर स्थित राष्ट्रीय कला संग्रहालय देखने चला गया । अव्यवस्था और कार्यरत कर्मचारियों का लापरवाही भरा व्यवहार देखकर मन अवसाद और वितृष्णा से भर गया ।
सात दिन बाद बैक पैक संभाले विएना के हब्तबाहनहॉफ यानी के मुख्य स्टेशन से जब ट्रेन पकड़ी तो न जाने क्यों विएना को छोड़ते हुए मन भारी हो गया । बेहद नकचढ़ी और गुस्सैल ट्रेन परिचारिका ठंडी बेस्वाद चाय का कप थमा गयी । उसके बुरे स्वभाव को सहयात्रियों ने भी महसूस किया और उसके जाने के बाद मजाक में टिप्पणियां भी की कि शायद अपने घर से लड़ कर निकली है । पूर्वी और पश्चिमी यूरोप की ट्रेन्स में खासा फर्क है । पश्चिमी यूरोप की ट्रेन्स जहां फ़ास्ट और मॉडर्न हैं, वहीं पूर्वी यूरोप की ट्रेन्स अपेक्षाकृत धीमी और कम आधुनिक हैं । हालांकि पेंट्री कार और हाई स्पीड इंटरनेट वाई फाई लगभग सभी ट्रेन्स में मौजूद है पर पश्चिमी यूरोप की ट्रेन्स के इंजिन और पूरी ट्रेन की बनावट ही पूरी तरह एयरोडायनामिक है। खास तौर से फ्रांस और जर्मनी की ट्रेन्स साढ़े तीन सौ से चार सौ किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड पर आराम से दौड़ती है और अंदर पता भी नही चलता । पूर्वी यूरोप की अधिकांश ट्रेन्स डेढ़ दो सौ किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से ही चलती हैं ।
एक बड़ी खास बात जो महसूस की वो ये कि ऑस्ट्रियन लोग स्वभाव से बहुत बिंदास, खुले दिल के और गर्मजोश होते हैं । संगीत और नृत्य के बहुत प्रेमी होते हैं । जम कर खाते पीते है और स्वास्थ्य के प्रति भी बहुत सजग रहते हैं । मैं स्विस और नॉर्वेजियन लोगो के बारे में ऐसा नही कह सकता जो ज्यादातर स्वभाव से शुष्क और ठंडे होते है और जल्दी से आप से घुलते मिलते नही हैं । दरअसल पूरे पूर्वी यूरोप की, चाहे वो हंगरी हो या चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड हो या क्रोएशिया - बात ही कुछ और है । हो सकता है मैं ग़लत होऊं पर मुझे लगता है कि मौसम का असर लोगों के स्वभाव पर पड़ता है । जिन जगहों में हमेशा बर्फ पड़ी रहती है और सूरज सिर्फ चार छह महीने ही ठीक से दिखता है वहां के लोगो के स्वभाव में एक सर्द एकाकी पन और डिप्रेशन जैसा कुछ उतर जाता है ।
इन देशों में साफ सफाई तो चुस्त दुरुस्त है ही, लोग भी जागरूक हैं और गंदगी नही फैलाते । टॉयलेट्स भी साफ सुथरे रहते हैं । वाश बेसिन्स में भी पानी रहता है और फ्लश में भी । हाथ सुखाने के लिए गर्म हवा का ब्लोअर भी ज्यादातर ट्रेन्स के टॉयलेट्स में रहता है । सहयात्रियों के सम्मान के लिए यात्री ऊंची ऊंची आवाज में मोबाइल फोन्स पर बात नही करते । किसी को फोन पर बात भी करनी होती है तो धीमे स्वर में संक्षिप्त सा वार्तालाप या ट्रेन के छोर पर जाकर बात । ट्रेन में स्क्रीन्स पर आने वाले स्टेशन्स की, पहुंचने के समय की अग्रिम सूचना आती रहती है । विएना में भी, चाहे सड़क के बीचों बीच चलने वाली ट्राम सर्विस हो या जमीन के नीचे गहरे गर्भ में चलने वाली अंडर ग्राउंड ट्यूब रेलवे, तकनीकी श्रेष्ठता हर जगह नज़र आएगी । हर स्टेशन पर लगी स्क्रीन्स पर पता चलता रहेगा कि ट्यूब ट्रेन या ट्राम कितनी देर में आएगी । आप अपनी घड़ी मिला लीजिए । मजाल है कि ट्यूब ट्रेन या ट्राम एक मिनट भी लेट हो जाये । अंदर ट्राम या ट्यूब ट्रेन की व्यवस्था और साफ सफाई भी बेहद दुरस्त रहती है । सब कुछ साफ सुथरा चमकता दमकता ।
वृद्ध लोगों के प्रवेश करते ही कई लोग लपककर अपनी सीट की पेशकश कर देते हैं । ट्राम और ट्यूब ट्रेन के भीतर भी स्क्रीन आने वाले स्टेशन्स की सूचना क्रम से आती रहती है । बावजूद इसके कि आप पहली बार इन देशों की यात्रा पर है और आपको इन देशों की भाषा भी नही आती, हर व्यवस्था तकनीकी रूप से इतनी सम्पूर्ण है कि जल्दी से आपको कोई परेशानी नही होने वाली । सहयात्रियों में ब्राजील का एक खूबसूरत युवा जोड़ा है और साथ साथ यात्रा कर रही दो जर्मन औरतें । ब्राजील जोड़ा बर्लिन जा रहा है । जर्मन औरतें आपस ही में कुछ बतिया रहीं हैं जर्मन भाषा में । रास्ता बहुत खूबसूरत है । दोनों तरफ हरी भरी पहाड़ियां है, बीच बीच में खूबसूरत मैदान हैं और ट्रेन के दायीं तरफ एक नदी भी साथ साथ चल रही है । यात्री अब ऊंघते ऊंघते झपकी ले रहे हैं और बीच बीच में उनींदी आँखें खोल कर छह सीटों वाले इस कूपे का जायजा भी ले लेते हैं ।
पश्चिमी और पूर्वी, दोनों ही यूरोप बहुत खूबसूरत हैं । कितना भी देख लो मन ही नही भरता । पिछले पच्चीस छब्बीस सालों में अनगिनत बार यूरोप की यात्रा कर चुका हूँ पर दिल है कि मानता ही नही । फिर फिर लौट आता हूँ इधर । घुमक्कड़ी भी एक मज़ेदार किस्म का नशा है । जिसे ये लत लग जाती है वो ही जानता है कि उस पर उन दिनों में क्या बीतती है जब घर की खाट पर नियमबद्ध जीवन बिताने की मजबूरी आन पड़ती है । जैसे इन दिनों मुझ जैसे घुमक्कडों के साथ हो रहा है । नीरस से दिन काटे नही कटते । एक अवसाद सा उतरना शुरू हो जाता है । स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी उतर आता है । खाने में स्वाद नही मिलता और जीवन के प्रति एक अजीब सी निरपेक्षता उतरने लगती है ।
किसी के मिज़ाज़ में कितनी भी घुमक्कड़ी हो आखिर में तो घर लौटना ही पड़ता है । अब घर की तरफ़ लौट चलने का समय हो गया है ।