छह साल बाद यात्रा संस्मरण लिखना न तो आसान है और न ही उत्साहपूर्ण । साढ़े तीन महीने से दुनिया भर में घूमने की पुरानी स्मृतियों के सहारे वक़्त काट रहा था कि पिछले हफ़्ते पुराने काग़ज़ खंगालते खंगालते एक नोट पैड हाथ आ गया । मैं भूल ही गया था कि हंगरी यात्रा के दौरान मैंने कुछ हल्के फुल्के नोट्स बनाए थे । 2014 सितम्बर में ये यात्रा हुई थी । नोट्स के ज़रिए यात्रा सूत्रों को जोड़ना मज़ेदार मनोरंजन सिद्ध हुआ । इस कोरोना काल के कुछ फ़ायदे भी हुए हैं ।
यात्रा से एक सप्ताह पहले मशहूर लेखक असग़र वजाहत साहेब से भेंट हुई और उन्हें बताया कि ज़रूरी काम से फ़्रांस और जर्मनी जा रहा हूँ तो उन्होंने तजवीज़ दी कि वक़्त निकाल कर हंगरी भी ज़रूर जाऊँ । वजाहत साहेब पाँच बरस हंगरी में हिंदी के प्राध्यापक रहे है और उस मुल्क से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं । मैं ठहरा आदतन घुम्मकड तो मन ही मन वहाँ जाने का संकल्प कर लिया । जैसे ही काम ख़त्म हुआ तो पेरिस से फ़्लाइट पकड़ी और पहुँच गया बुदापेस्ट । हवाई अड्डे से बाहर आया तो तय कार्यक्रम के मुताबिक़ वजाहत साहेब का परिचित लोरेंड बोड़ोर मिल गया । हंगरी अच्छे से घूमना है तो किसी अंग्रेज़ी जानने वाले स्थानीय व्यक्ति को साथ लेकर घूमना अच्छा रहेगा - ऐसा सोच कर लोरेंड को मैंने हंगरी में अपने सम्पूर्ण प्रवास के दौरान साथ रखने का फ़ैसला लिया था । लोरेंड सुंदर लम्बा अच्छे नैन नक़्श वाला पचीस बरस का सौम्य और ख़ुशमिज़ाज युवक था। अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों ही अच्छी बोलता था ।
एयर पोर्ट से बाहर निकलकर टैक्सी पकड़ी और चेन ब्रिज के पास डेन्यूब के किनारे होटल मेरीडियन की तरफ़ , जहाँ मेरा रहने का स्थान बुक था निकल पड़े । रास्ते भर लोरेंड मुझे बुदापेस्ट शहर के भिन्न भिन्न लैंड मार्क्स के बारे में बताता रहा। होटल ज़्यादा दूर नहीं था सो जल्दी ही पहुँच गए । होटल के पास ही बुदापेस्ट का मशहूर मात्याश चर्च था जहाँ सैलानियों की अच्छी ख़ासी भीड़ जमा थी। होटल में चेक इन वग़ैरा की प्रक्रिया पूरी करने के बाद पास ही सड़क के कोने पर एक दुकान से पानी, घर की बनी बीयर और हंगरी के मशहूर पेय पालिंका ख़रीदी। मैं एक महँगे सितारा होटल में ठहरा था जो ख़ुशक़िस्मती से एक डील में मुझे सस्ता मिल गया था पर उसमें खाने पीने की चीजें बहुत महँगी थी । ये सब ख़रीदारी बाहर से करने में ही अक़्लमंदी नज़र आयी ।
होटल का कमरा बड़ा आरामदेह और बहुत अच्छे दृश्य वाला था। कमरे की खिड़की से नीचे और पास की पहाड़ियों पर बसे शहर के दूसरे हिस्से, डेन्यूब नदी और उस पर बने चेन ब्रिज का बड़ा खूबसूरत नज़ारा सामने था। सामान कमरे में छोड़ा और होटल से बाहर निकल आए। बड़े ज़ोरों की भूख लगी थी। लोरेंड ने बताया कि थोड़ी दूर पैदल चलने पर एक छोटा सा कैफ़ेटेरिया है। खाना ताज़ा और साफ़ सुथरा है और महँगा भी नहीं है। रेस्टौरेंट वाक़ई अच्छा था। हंगरी का मशहूर गुलाश सूप जो कि सब्ज़ियों और मीट के साथ बनाया जाता है, पिया और खाना खाया। वहाँ से पैदल ही नीचे चेन ब्रिज पर आ गए। अठारह सौ उनचास में अंग्रेज इंजीनियर विलियम क्लार्क द्वारा डिज़ाइन किया और स्कोटलैंड के इंजीनियर ऐडम क्लार्क द्वारा डेन्यूब नदी पर बनाए इस पुल ने पश्चिमी छोर पर बसे बुदा और पूर्वी छोर पर बने पेस्ट नाम के दो अलग शहरों को मिलाकर बुदापेस्ट नाम का एक बेहद खूबसूरत और बहुत ख़ास शहर बना दिया है। नदियों और पुलों से मुझे न जाने क्यों बहुत लगाव है और किसी भी नए शहर में पहुँच कर सबसे पहले मैं नदियाँ और पुल ही ढूँढता हूँ। किसी भी पुल के बारे में कोई क्या लिखे ? पुल दरअसल एक अनुभव है - बेहद ख़ास, व्यक्तिगत और रूमानी।
वजाहत साहेब की मित्र और पूर्व सहकर्मीणी डॉक्टर मारिया विश्वविद्यालय में अभी भी हिंदी विभाग की सर्वे सर्वा थी । उनसे भी मिलने का मन था तो सोचा गया कि अगली सुबह विश्वविद्यालय’ भी देखा जाए, और डॉक्टर मारिया के भी दर्शन हों । तय वक्त पर कमरे से तैय्यार होकर नीचे लाबी में आया तो लोरेंड इंतेज़ार कर रहा था । बसों, मेट्रो और ट्रामस का जाल जितना बेहतरीन और चुस्त बुदापेस्ट में है उतना दुनियाँ के बहुत ही कम मुल्कों में है। आप ट्रेन या ट्राम के टाईम से अपनी घड़ी मिला सकते हैं। विश्वविद्यालय पहुँचे तो डाक्टर मारिया बहुत खुश हुई और अपने कक्ष में ले गयी । उन्होंने बताया कि हंगेरियन लोग आगंतुक के सम्मान में पालिंका पेश करते है भले ही दिन का कोई भी वक़्त हो । अपनी दराज़ों में ढूँढ ढाँढ कर उन्होंने पालिंका की एक बोतल पैदा की और इधर उधर से कुछ कप्स भी जुटाए और हंगेरियन परम्परा का ऐसे ही निर्वाह हुआ जैसा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के अंचलों में गुड और पानी के साथ कभी अभ्यागतों का होता था । विश्वविद्यालय का माहौल एकदम अनौपचारिक और हल्का फुलका था। बिल्डिंग पुरानी, भव्य और खूबसूरत थी । डाक्टर मारिया से विदा ली तो लोरेंड की सलाह से विश्वविद्यालय के पास वाले बाज़ार से सस्ते और बढ़िया फल ख़रीदे ।
अब कार्यक्रम के मुताबिक़ लोरेंड की मंगेतर रीका से मिलना था जो पास ही पार्क में इंतेज़ार कर रही थी । पता चला दोनों एक साल पहले ही एक नृत्योत्सव में मिले थे और मोहब्बत में डूब गए । हंगरी के नृत्योत्सव बहुत प्रसिद्ध है । पूरे देश के परंपरागत नृत्य में दक्ष स्त्री पुरुष इन समारोहों में बड़े उत्साह से शिरकत करते है । नृत्य के साथ साथ मौज मस्ती होती है । नए नए रोमांस होते हैं । ऐसे ही उत्सव में मिलने के बाद दोनों अब साथ ही रहते थे । इसी बीच रीका गर्भवती हो गयी तो दोनों ने शादी का फ़ैसला कर लिया। रीका सुंदर गोल चेहरे, मोहक मुस्कान, खूबसूरत आँखो वाली बाइस बरस की आकर्षक और सौम्य लड़की थी। लोरेंड भी कम खूबसूरत नहीं था । दोनों की जोड़ी बहुत सुंदर थी। रीका को ज़ोरों की भूख लगी थी। फ़ैसला हुआ कि शहर के केंद्र में चल कर किसी बढ़िया रेस्तराँ में खाना खाया जाए। रेस्तराँ में अंधेरा सा था पर खाना बहुत उम्दा और ज़ायक़ेदार था।
रीका से मिलकर मुझे थोड़ा अजीब लगा कि पहले से ही उसका गर्भ चार महीने का हो चुका था और डेढ़ महीने बाद शादी थी तो कैसे सब को स्वीकार होगा। ज़ाहिर था कि मैं भारत में संस्कारित अपने मन से निष्कर्ष निकाल रहा था। मेरी दुविधा को समझ कर लोरेंड और रीका ने बताया कि हंगरी में अब यह सामान्य रूप से स्वीकार हो गया है कि विवाह के वक़्त बच्चे गर्भ में बैठे बैठे या फिर गोद में खेलते खेलते मम्मी पापा की शादी के समारोहों का मज़ा उठाएँ । बातें करते करते हम विशाल हीरो स्कवायर स्मारक पर पहुँच गए जो हंगरी के जुझारू योद्धाओं के शौर्य और त्याग का प्रतीक है । सैलानियों की भारी भीड़ हर कोण से फ़ोटो खींचने में लगी थी। स्मारक का स्थापत्य वाक़ई बहुत अलग और रोचक है और देखने वालों को ख़ासा प्रभावित करता है ।
लोरेंड मुझे एक परम्परागत पर्यटक समझ कर वही सब दिखाना चाह रहा था जो उसे लग रहा था कि मुझे देखना चाहिए। पर दुनियाँ भर के बहुत सारे स्मारक और कला संग्रहालय देखने के बाद मैं अच्छा ख़ासा उकता गया था। पास ही बुदापेस्ट का राष्ट्रीय कला संग्रहालय था । जिस गर्व से लोरेंड और रीका ने संग्रहालय देखने का प्रस्ताव दिया , मैं मना नहीं कर पाया। कुछ चित्र वाक़ई बहुत कमाल के थे - ख़ास तौर पर इटेलियन चित्रकारों और शिल्पकारों की कृतियाँ । फ़्रेंच कलाकार मोने का भी अच्छा ख़ासा संग्रह था । उसका घर और व्यक्तिगत संग्रहालय पेरिस के पास मैं पहले ही देख चुका था । यह संग्रहालय भी ख़ासा बड़ा और प्रभावशाली था और बहुत भव्य और विशाल भवन में था तो चाह कर भी पूरा देख नहीं पाया । रीका और लोरेंड तो पहले ही बहुत बार सब कुछ देख चुके थे ।
बुदापेस्ट के ‘न्यूयॉर्क काफ़ी हाउस’ की बहुत तारीफ़ सुनी थी । सोचा गया कि वहाँ चलकर काफ़ी पी जाए । काफ़ी हाउस एक बड़े महल की तरह बहुत खूबसूरत और अद्वितीय नक़्क़ाशियों की सज्जा लिए हुए था । छत और दीवारें सुनहरे पेंट से बनी पेंटिंग्स और नक़्क़ाशियों से दमक रही थी । लग रहा था किसी राजमहल में आ गया हूँ । पर हर चीज़ बहुत महँगी थी । पाँच सितारा से भी ज़्यादा भव्य माहौल था इसलिए क़ीमतें भी उसी के मुताबिक़ थी । पर काफ़ी और दूसरे स्नैक्स बहुत अच्छे थे । रीका को जल्दी घर जाना था तो उसने मुस्करा कर विदा ली । हम दोनों बाहर निकल कर यूँही बतियाते इधर उधर मटरगश्ती करते रहे और फिर एक छोटे से बार में घुस गए । वहाँ तसल्ली से बेहतरीन हंगेरियन बीयर पी । लोरेंड ने बड़े नाज़ से बताया कि हंगेरियन बीयर का पूरी दुनिया में मुक़ाबला हो ही नहीं सकता क्योंकि ये सर्वश्रेष्ठ है । मैंने भी पूरे सुरूर में खुले दिल से उसकी बात का अनुमोदन किया । बार से निकल कर वापस शहर के सेंटर यानी केंद्र कि तरफ़ पैदल चल पड़े । दूर से किसी वाद्य यंत्र की बड़ी मनमोहक आवाज़ आ रही थी । उसी तरफ़ बढ़ चले । एक जवान खूबसूरत लड़की ढपली नुमा गोल वाद्य यंत्र को अपनी हथेलियों से थपथपाकर बड़ी मस्ती में झूम झूम कर बजा रही थी । आसपास खड़ी छोटी सी भीड़ बड़ी शांति और तन्मयता से सम्मान पूर्वक सुन रही थी। लोरेंड ने बताया की यह ‘स्पेस ड्रम’ बजा रही है । स्पेस ड्रम यानि अंतरिक्ष की ढपली । यंत्र की ध्वनि वाक़ई बहुत सुंदर और गूंज अंदर तक छू देने वाली थी। काफ़ी देर तक हम दोनों भी वहीं ठगे से खड़े होकर सुनते रहे और आनंदित होते रहे ।
अगले रोज़ सेनतेंद्रे या जेनतेंद्रे, जो कि कलाकारों का गाँव है - देखने जाना था । सुबह सुबह ही रीका को लेकर लोरेंड पहुँच गया । होटल से निकल कर पैदल ही स्टेशन की तरफ़ चल पड़े । रीका की वजह से धीरे चले तो जो ट्रेन सोची थी वो तो निकल गयी । आधा घंटा इंतेज़ार के बाद दूसरी मिली । सारे वक़्त रीका लोरंड से लिपटी सरल भाव से मुस्कराती रही । दोनों के बीच के अनन्य प्रेम को देख कर मन स्नेह से भीग गया । रास्ते में एक्विनकम शहर भी आया जहाँ दोनों पहली बार नृत्योत्सव पर मिले थे और एक दूसरे पर मर मिटे थे । दोनों को ही इस शहर से बड़ा लगाव था और बड़े उत्साह से बताया कि उनका इरादा इसी शहर में बसने का है । यहाँ किराया भी कम है और बुदापेस्ट से ज़्यादा दूर भी नही है । सेनतेंद्रे स्टेशन से बाहर निकले तो जिप्सियों का एक झुंड कहीं जाने के लिए जमा था । औरतें ऊँची आवाज़ों में बातें करती हुई लापरवाही से छाती उघाड़े बच्चों को दूध पिला रही थी । उनके मर्द भी आसपास ही लोगों को ताकते हुए इधर उधर मंडरा रहे थे । लोरेंड ने बताया कि ज़्यादातर हंगेरियन लोग जिप्सियों से सहानुभूति तो रखते हैं पर उनसे दूर रहना ही पसंद करते हैं । जिप्सी लोगों का मूल स्थान भारत है पर इतने बरसों तक इधर उधर के मुल्कों में भटकते इनकी भारतीय पहचान पूरी तरह खो गयी लगती है । शायद कुछ भारतीय शब्द है जो अभी भी इनके बीच बोले जाते हैं । पता लगा कुत्ते को ये लोग कुच्चा कहते हैं ।
मुझे क्योंकि पैदल पर्यटन का अच्छा ख़ासा शौक़ है तो सेनतेंद्रे स्टेशन से पैदल ही शहर की तरफ़ चल पड़े । रास्ते में हिंदुस्तानी भटूरे जैसा कुछ बिक रहा था । लोरेंड ने बताया लाँगूस है । मज़े का ज़ायक़ा था । चलते चलते ही खाया। रास्ते में माइक्रो म्यूज़ियम भी देखा । कलाकारों की बस्ती में घूमकर बड़ा मज़ा आया । जितना ज़्यादा देखा तो अहसास हुआ कि घूम-फिरकर सब दुकानों में मिलती जुलती ही कृतियाँ है । पर कलाकारों ने सड़कों, बाज़ारों, उनके दरवाज़ों और आरकेड्स को बड़े सुरचिपूर्ण ढंग और ख़ूबसूरती से सजाया हुआ है । सड़के जहाँ चौक पर मिलती थी वहाँ के कोबल स्टोन पत्थरों को अलग अलग रंगो से रंग कर बड़े खूबसूरत अल्पना की तरह बनाए डिज़ाइन आपकी दृष्टि को बांध लेते हैं। हर जगह एक ऐसी विशिष्टता है जो आपको वाह वाही लुटाने को मजबूर कर देती है । इधर उधर भटककर - घूम घाम कर वापस स्टेशन लौट आए और बस पकड़कर श्कानजेन पहुँच गए ।
श्कानजेन एक मायने में बहुत दर्शनीय हैं । पुराने घर, पानी से चलने वाली पन चक्कियाँ, हवा से चलने वाली विंड मिल चक्कियाँ, लोगों का पहनावा और रहन सहन, पुराने यहूदी बाशिंदों के घर , वाइन सेलेर्स आपको एक दूसरे ही वक़्त के दौर में ले जाते हैं । आपको लगता है कि पुराने वक़्तों में वाक़ई दुनिया कितनी छोटी और सरल रही होगी और फिर हमने खुद ही इसका कितना कबाड़ा कर लिया । श्कानजेन में दोपहर का शानदार भोजन हुआ । पहले बढ़िया ज़ायक़ेदार बीयर का मज़ा लिया, गुलाश सूप पिया और फिर बेहतरीन सिरके वाले प्याज़ के साथ परम्परागत हंगेरियन खाना जिसमें तरह तरह के कबाब और सब्ज़ियाँ थी, खाया गया । खाने की तारीफ़ मैंने की तो अंदर से एक सिक्ख युवक निकल कर आया । पता लगा जनाब दिल्ली के मालवीय नगर के रहने वाले है और गर्लफ़्रेंड के साथ लंदन से बुदापेस्ट घूमने आए थे तो पैसे ख़त्म हो गए । अब मेहनत करके पैसा कमाया जा रहा है और साथ साथ घूमने फिरने के मज़े भी लिए जा रहे हैं ।
अगले रोज़ बालातोन झील की ट्रेन से यात्रा हुई । बीच के स्टेशन से एक लड़का और लड़की अपने झबरे कुत्ते के साथ चढ़े । दोनों की बातों बातों में लोरेंड से दोस्ती हो गयी । आज रीका साथ नही थी। गंतव्य पर पहुँचे तो गर्मागर्म पलाचिंता कबाब और कोलबास सासेज खाए । बालातोन झील लगभग छह सौ वर्ग किलोमीटर में फैली ताजे पानी की बहुत विशाल और खूबसूरत झील है । बोट पकड़कर चित्ताकर्षक और सुंदर तिहोन्य द्वीप गए जो बालातोन झील के बीचों बीच था । दूर पहाड़ी पर एक चर्च था । लोरेंड ने बताया कि कुछ दिन पहले तक यहाँ घाटी में ज़ोर से चिल्लाने पर आवाज़ सात बार गूंज कर आती थी पर जब से आस पास बहुत सारे मकान और बिल्डिंगे बन गयी है तो वो बात ख़त्म हो गयी है । एक खिलौना ट्रेन नुमा बस ऊपर चर्च तक जा रही थी । दूरी सिर्फ़ डेढ़ किलोमीटर थी । हम दोनों पैदल ही चढ़ कर पंद्रह मिनट में पहुँच गए । ऊपर पहुँच कर झील, पहाड़ियों और घरों का विहंगम दृश्य आँखों को बहुत भला लगा । नीचे उतर कर गुरुदेव टैगोर द्वारा रोपित वृक्ष के आस पास भिन्न भारतीय राजनेताओं द्वारा लगाए गए कई पेड़ भी देखने को मिले ।
वापस बालातोन फ़्यूरेड स्टेशन पहुँचे तो स्टेशन का शांत वातावरण देख मन बहुत प्रसन्न हो गया। मुश्किल से सात आठ यात्री थे । लोरेंड को नए नए सम्पर्क बनाने और लोगों से बातें करना अच्छा लगता है । एक रिटायर्ड इलेक्ट्रिक इंजीनियर महिला से लोरेंड ने गप्पबाज़ी शुरू कर दी । ट्रेन चल पड़ी थी । दूर झील के पार बड़ा मोहक सूर्यास्त हो रहा था । देखते ही देखते झपकी लग गयी ।
अगले कुछ दिनों में एक शाम डेन्यूब नदी पर पालिंका पीते हुए क्रूज़ का लुत्फ़ उठाया । खाना तो ठीक ठाक था पर संगीत और नृत्य का कार्यक्रम वाक़ई काफ़ी दिलकश था । सेंट स्टीफ़ेन बेसिलिका, पार्लियमेंट हाउस की शानदार बिल्डिंग और ऐतिहासिक बुदा कासल तो चलते फिरते वैसे ही देख लिए थे । बिल्डिंग्स देखने में - जब तक वे प्राचीन और अद्वितीय न हों और उन्हें ठीक से समझाने वाला कोई अनुभवी गाइड न हो - मेरी कोई ख़ास रुचि नही है ।
इस यात्रा में गिने चुने सिर्फ़ तीन हंगेरियन लोगों से ही भेंट हो पायी । लोरेंड, उसकी मंगेतर रीका और डाक्टर मारिया । मुझे लगता है कि हंगरी को जितनी शिद्दत से देखना और महसूस करना चाहिए था वो नही हो पाया । किसी मुल्क को देखने के लिए न सिर्फ़ उसकी सड़कें, इमारतें, खाद्य पदार्थ, झीलें नदियाँ, पौधे और वनस्पति महत्वपूर्ण है बल्कि इन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है वहाँ के लोगों और रवायतों को जानना और समझना । मैं फिर वजाहत साहेब का ज़िक्र करूँगा क्योंकि उनके यात्रा संस्मरणों का आधार उन्ही के शब्दों में ‘सोशल टूरिज़्म’ है । वो शहर के बीच सस्ते होटलों में रुकते हैं, स्थानीय कहवा खानों में चाय काफ़ी पीते हैं और जहाँ तक सम्भव हो स्थानीय लोगों से सम्पर्क कर उनके शहर, परम्पराओं, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का जायज़ा लेकर लिखते हैं । इस हंगरी यात्रा में वक़्त कम था । मुझे एक ख़ास मीटिंग के लिए लंदन पहुँचना था । हंगेरियन बीयर और पालिंका से तृप्त पर हंगरी दोबारा लौटने की प्यास लिए अगले रोज़ बुदापेस्ट को विदा कह कर वापस चल पड़ा।