अनमोल रिश्तों को जोङने वाला शब्द 'मां',
खत हो या फोन,बच्चों की नजदीकी का एहसास कराता,
डेगची का अन्न खिलाकर सबको,बच्चों की डकार से ही,भूखा पेट भर लेती।
ऐसी होती हैं मां।
एक दिन मां की पथरीली ऑखों से,नीर टपकते देखा,
उदासीन हो बतलाती,'मताही' का स्मरण हो आया।
सुनकर गहरी चुप्पी छा गई,
मां के विलग होने के एहसास भर से,मैं भावविहल हो गई।
बचपन को वो दिन,ननिहाल के याद हो आए,
जो मन विस्मृत हो गए थे,चलचित्र बन उभर हो आए।
मां की मां का घर,ननिहाल।
खुशी मन में दबाएं,तागें से उतरती,
दौङती,पल्लू से हाथ पोंछती भावविहल नानी दिखती,
क्षण भर के लिए,आपस मेंनयन स्नेहसिक्त हो जाते।
लेकिन यह क्या?ठिठक कर ,मां पूछती,भैया-भाभी कहां हैं?
इशारा मिलते ही,बिना कुछ कहे,अंदर चली जाती।
स्नेहपूर्ण नम ऑखों से,ओझल होती छवि निहारती,
हालचाल पूछने के लिए,मुहऑ अधखुला रह जाता,
आशीर्वाद के उठे हाथ,उठे-के-उठे रह जाते।प्रसन्नचित्त मुख पर,प्रेममयी अश्रुधारा बहती जाती,
भावविहल स्वर ,मद्धिम स्वर में,मुझसे पुछती,सब ठीक हैं।ममत्व का सारा उबाल,मुझपर उङेल देती।
ऐसा ममत्व बचपन में,मेरी समझ से परे था,
बालमन मेंकई अनकहे सवाल थे।
कुछ समय पश्चात् ,मां नानी की अटुटता समझ आई,
आडंवरहीन,मितभाषी,शिकवे शिकायतों की कौई गुंजाईस नहीं।
बस रिश्तों के बीच संकोच,करूणा, आशीर्वाद सबसे ह्रदय लबालव था।
कैसा यह अदभुत रिश्ता,जो अपने आप में अनोखा था।
जब स्वर्ग सिधार गई नानी की खबर पाकर,
संकोच की सीमा पार हुई।
मन का गुबार,प्रेममयी अश्रुधारा बन फूटकर बह गया,
तब से जीवन में नीरसता ने पैर पसार लिए,
ऐसा लगा,हिम्मत देने वाली बैसाखी टूट गई।
मन ताङ-ताङ हो ,गुमनामी सा जीवन गुजरने लगा।
जब कभी पीहर जाने की बात करते,
लम्बी गहरी सांस खीचकरकहती -बेटी,
नानी बिना ननिहाल अधूरा,मां बिना मायका सूना।