शारीरिक व मानसिक विकार का कारण चिंता और तनाव होता है।जो धीरे - धीरे मीठे जहर की तरह तन मन को विनाश के कगार पर ले जाती है।चिन्ता व तनाव के रहते हमारा तन के साथ मन भी कई लाइलाज भयंकर बीमारियों का शिकार हो जाता है।जीवन खंड खंड होकर दुविधा ग्रस्त हो जाता है।हम एक उद्धेश्य हीन जीवन की ओर अग्रसर होने लगते हैं।ययद्यपि हमारे जीवन के कई कारक समस्याप्रद होना जैसे बच्चों के भविष्य के प्रति चिंता, बुढापे की चिन्ता, बिजनेस में सफलता की चिंता आदि हैं। जिन्हें हम सकारात्मक सोच द्वारा नौ दो ग्यारह कर सकते हैं।लेकिन कुछ चिंताएं व तनाव वेवजह होती है जिनका कारण आलस्य, कर्महीनता, उत्साह हीन कार्य रूप रेखा, लापरवाही आदि।हमें अपनी हर नई सुबह की शुरूआत शान्ति व धैर्य के साथ, सकारात्मक सोच व विचार रखते हुए, सद्भाव व सहयोग की भावना के साथ प्रेम पूर्वक करना चाहिए।न कि आपाधापी, नफरत, क्रोध के साथ।क्योंकि चिंता चिता के समान होती है।लगातार चिंता व तनाव के कारण मानसिक असंतुलन के साथ सेहत पर भी प्रभाव पङता है। जिससे एक बहुत बङे मनोरोग से शिकार ग्रस्त हो जाते हैं।उद्देश्यों को पूरा करने में, सफलता प्राप्ति में रास्ते के रोढे बन जाते हैं।ऊर्जा हीन, हताश भरी जिंदगी जीने लगते हैं।ऐसी स्थिति न बनने दें इसके लिए आपको अपने आपका आत्मनिरीक्षण कर, सकारात्मक विचारों से प्रोत्साहित होना चाहिए।कमजोर प्राणी न समझ, सर्वशक्तिमान महसूस करना चाहिए।उद्धेश्य को सामने रखकर उसे पाने के लिए बुद्धिमतता का सहारा लेकर पूरी सामर्थ्य व शक्ति के साथ प्राप्त करने की सोचना चाहिए। लक्ष्य प्राप्ति में आ रही असफलताओं के डर को नजरअंदाज करना चाहिए।ऐसी सोच से आप अपने आपको सशक्त, विश्वास से भरे, ऊर्जावान पाएंगे।ऐसा नियमित रूप से व सुनियोजित ढंग से करने पर जो चिंता और तनाव का संक्रमण फैला हुआ है, वो नष्ट हो जाएगा।अगर बेवजह चिंता और तनाव के विषय में अंतर्मन की गहराई से विचार विमर्श करेंगे तो वो खंड खंड नजर आएंगी।और विश्वास हो जाएगा कि चिंता , तनाव व डर हमारे जीवन में एक काली छाया के समान है, जो सिद्धांत हीन हो कर हमारी आनंद मयी जिन्दगी में मनहूसियत भर देती है। ये वास्तविकता से परे मन की सोची कालजयी परिकल्पनाएं होती हैं। क्योंकि मन की सोच का ही प्रतिबिंब शरीर पर दिखाई देता है।जिसका इलाज आपके अपने अवचेतन मन में विराजमान होता है।जिसे बस सामने भर लाने की बात होती है।अनुशासनवद्ध होकर सच्चाई के साथ अपने आप का अवलोकन करना भर होता है।पूरी शक्ति व आरामदेह स्थिति में तन्मयता के साथ अपने आपको जगाना होता हैकि मेरा असीम जीवन प्रज्ञावान, सर्वशक्तिमान, अदभुत बुद्धि से भरपूर है।ऐसा करने से आपमें समस्याओं से जूझने की ताकत जाग्रत होगी।हहमें अपनी बदकिस्मती, नाइंसाफी का रोना नहीं रोना चाहिए।क्योंकि आप अपनी विचारधारा के अग्रदूत है। अपनी प्रतिक्रियाओ, भावनाओं, इच्छाओं के सर्वेसर्वा मालिक हैं।चिंता को अपने जीवन में हावी न करके , खदेङ देना चाहिए। इसके अलावा ध्यान, प्रार्थना, ईश्वरीय शक्ति में विश्वास करके उबर सकते हैं।ऐसा हमें आनंद मयी जीवन के लिए करना चाहिए।हमें कोशिश करना चाहिए उनके परिणामों की शंका किए बिना प्रयत्नशील रहना चाहिए, क्योंकि ये उपलब्धियों में घातक बन सकती है।इन सबमें मन की एकाग्रता एक बहुत बङा कारक है जिसे भंग करने में चिंता, तनाव, डर बहुत बङा वायरस है, जो व्यक्ति की सृजनात्मक शक्ति का गला घोट देता है।कार्यकुशलता फीकी पड जाती है।ऐसे में हमें तटस्थ भाव से मानसिकता को सकारात्मक बनाएं।अन्य समस्याओं को मन में न दोहराए, मन के साथ शरीर को भी शांत रखे क्योंकि मन की सुन्दरता की झलक शरीर पर दिखती है।नकारात्मक विचारों के बोझ से मन अशांत रहेगा।एकांत में बैठकर शरीर को शिथिल करे।ऐसा करने से मन स्वतः ही शांत हो जाता है।मन विश्वास से भर जाता है, हमारा ध्यान उपलब्धियों पर एकाग्र हो जाता है, बेहतर बनाने की योजना उपजने लगती है, अपने आप में सुधार की गुंजाइश होने लगती है।नकारात्मकता को सृजनात्मक सुझावों द्वारा परे कर देते हैं।
इसके साथ ही हमें दूसरों की समस्याओं को भी सुलझानी चाहिए।इससे न तो शक्ति क्षीण होती है और न ही समय।सद्भावना व अच्छे इरादों के साथ यह करना चाहिए।क्योंकि हमारे सृजन का पपरिणाम ही हमारा जीवन हैं।वास्तविकता को गले लगाकर, विश्वास जगाकर बेहतर जीवन बनाने में सक्षम हैं।हताश भरे समय में सकारात्मक नजरिए से मन एकाग्र कर लें।जीवन के अंधकार को दूर करने के लिए ये प्रकाश रूपी दरवाजा खोलना पडेगा।तभी हमारे जीवन में खुशी , आत्मविश्वास, सहयोग, सदभावना, कृतज्ञता का भाव आएगा।जिससे निराशमयी कट्टर दुश्मन जो जीवन को अंधकारमय बना रहा है, उसे प्रकाश रूपी सुन्दर खुशनुमा विचार से खदेङ कर निरस्त कर दे।जीवन में थोडा अवकाश, मनोदशा को तरोताजा करती है।तात्कालिक चिन्ताओं पर मन केन्द्रित न करें अंर असफलताओं पर अफसोस करने के बजाय, सुलझाने वाली नीतियों को विकसित करें, न कि उससे भविष्य का आकलन करें।क्योंकि यह वास्तविकता है-हम अपने मन के स्वामी हैं, अपनी विचारधारा के सम्राट हैं।