वैसे तो वर्षभर परीक्षापरिणाम निकलते रहे हैं,लेकिन मई-जून माह में परीक्षापरिणामों का अंबार सा लगा रहता हैं।सबसे अधिक चिन्तनीय परिणाम,हाई स्कूल व इण्टर के विषय में होता हैं।इसमें भी राज्य वकेन्द्र स्तरीय परीक्षा परिणामों की असमानता में।अवलोकन करने पर कई कारण उजागर होते हैं ,जिसमें प्रमुख कारण-शिक्षाप्रणाली की विसंगतपूर्ण बुनियाद व उचित पाठ्य सामग्री का अभाव।इसके साथ ही शिक्षित-प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी।पाठ्यक्रम में मातृभाषा पर अधिक ध्यान न दिया जाकर,गणित ,विज्ञान जैसे विषयों को महत्व देकर अन्य विषयों को महत्वहीन कर दिया जाता हैं।विचारोउअं को समझने और उन्हां अभिव्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम है।इसलिए इसके प्रति मात्र पास होनेभर की प्रवृति त्याग कर,रूचि पिदा करने वाली भावना भरनी होगी।साथ ही चयनित प्रक्रिया मे मातृभाषा के जोङना अनिवार्य बनाया जाए।गणित विषय से दिमाग की जंग छूटती है तो,विज्ञान विषय हमारे आस-पास का अवलोकन,परीक्षण कर तर्क-वितर्क के साथ सारगर्भित परिणाम प्रत्यक्ष प्रदान करता हैं।गणित,भौतिकशास्त्र को और अधिक रोचक व सरल बनाने के लिए ,पाठ्यक्रम में 'तार्किक विषय' की प्रधानता वअनिवार्यता की जानी चाहिए।जिससे बच्चें रटन विद्या से छुटकारा पाकर, तर्कसम्मत रूप से सबालों को हल कर सकें।इसके साथ ही शिक्षित-प्रशिक्षित अध्यापकों की व्यवस्था करना अतिअनिवार्य हैं।उन पर अतिरिक्त कार्यभार न डालकर समर्पित भाव से बच्चों को सैद्धान्तिक शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा प्रदान करें।बच्चों का रूझान समझकर,मातापिता के साथ-साथ ,अध्यापक भी उसे अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करें न कि अपनी इच्छाओं को थोपकर,अपनी दबी कामनाओं को पूर्ण करें।इन सब दलीलों के अतिरिक्त एक अन्य बात,सरकार की कक्षा एक से आठ तक फेल करने की नीति को दरकिनार करना होगा।इस नीति से बच्चों में आत्महीनता व तनावग्रस्तता में कमी नही बल्कि शिक्षा के प्रति उपेक्षित प्रवृति जन्म ले रही है।व्यवहारिकता से कोसों दूर,बच्चें 'किताबी क्रीङा'बन रहे हैं ।'समाज साक्षर हो रहा हैं ,शिक्षित नहीं।'