आज भारत देश में ही नही,अन्य देंशों मे भी गंगा दशहरा धूमधाभ से मनाया जा रहा है।काशी के विभिन्न त्यौहारों में से गंगा दशहरा सबसे बङा त्यौहार हैं।इस दिन उपवास करने वाले और न भी करने वाले अपनी-अपनी तरह से श्रद्धानवत होकर गंगा मैया को नमन करते हैं।गंगा नदी पर प्रज्ज्वलित दीपकों के साथ-साथ विभिन्न प्रकारों के पुष्पोंव उसकी मालाओं को गंगा मैया को समर्पित करने के साथ अपनी निर्मल भावनाओं को उङेल देते है,जो अपनी धारा से पूजन सामग्री के साथ प्रवाहित हो जाती हैं।हम मन ही मन अपने पापों को मुक्त करने में एक और पुण्य शामिल कर खुश हो लेते हैं। लेकिन क्या वास्तव में हमने अपने हिस्सें मे पुण्य का ईजाफा कर लिया ?शायद नही।क्योकि गंगा मैया प्रतिदिन प्रदूषित तो होती ही हैं ,लेकिन आज हमने इस तरह आज पूज अर्चना कर और अधिक तादात में दूषित कर दिया।माफ कीजिए मैं पूजा विरोधी नही हूं ,लेकिन हम इस तरह पावन नदी को पतित नही बना रहे ?दूषित का कारण जानते हुए भी हम सब अंधविश्वास में भूल रहे हैं कि आज यह जीवन दायिनी कल कही कालदायिनी न बन जाएं।प्रशासन का प्रयास कागजी कार्यवाहियों पर अधिक,व्यवहारिक कम हैं।रोजमर्रा के प्रयासों के साथ,आज विशेष त्यौहार पर मंदिरों,गंगा घाटों पर कथाओं का आयोजन किया जाता हैं।गंगा अवतरण से लेकर उसकी पवित्रता की महिमा का गुणगान किया जाता हैं ,तो वही गंगा मैया की पवित्रता को बचाए रखने के उपाय भी बताना चाहिए ।धर्मो के देश में पंडित को भगवान का दर्जा दिया गया है।इस कार्य में पंडितों को साधुजनों को तनिक अपनी मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत हैं।पूजन सामग्री को गःगा नदी में प्रवाहित न करने की ओर प्रवृत कर सकते हैं।क्योकि भक्तों के देश में 'पंडित की सीख को भगवान की वाणी'माना जाता हैं।