लिखने पढ़ने का साधारण सा कागज हमारे जीवन में कितना महत्व रखता हैं, यह सोचने वाली बात हैं।कागज का एक हिस्सा बङा और एक हिस्सा छोटा,जो एक गहरी लाल, हरी,काली लाइन मे विभाजित। थोङा गहराई से सोचा जाए तो कागज का यह विभाजित भाग समाज कीमहिला पुरूष स्थिति को दर्शाता हैं।समाज मे महिलाओं को हाशिए पर रख दिया गया है।क्षैत्र कौई सा भी होसामाजिक, आर्थिक, नैतिक या राजनैतिक सभी मे यह स्थिति दृष्टिगत होती हैं।यहा तक कि बच्चों के जीवन में भी माता उसकी प्रथम शिक्षिका होते हुए भी,स्थान पिता का ही सर्वोपरि होता हैं।महिला को कागज के लघु भाग पर अर्थात् हाशिए पर रख दिया जाता हैं और स्पष्ट नजर होता हैं दीर्घभाग पिता का।यही भूमिका गृहस्थ जीवन की हैं।इस हाशिए वाले पृष्ठ पर मंथन किया जाए, तो स्पष्ट जीवन नैया उभर आती हैं।यह बात सही है कि जब पेज का बङा हिस्सा भर दिया जाता है तोउसके बगल का खाली हिस्सा दिखता हैं।छोटा है जरूर,लेकिन जब इसमें मुख्य बातें भर दी जाती है,तो पेज का बङा भरा हिस्सा ओछा लगने लगता हैं।छोटे भाग मे लिखे गए चन्द शब्द ,किसी भी प्रकार के लेख के लिए अनिवार्य होते है और यही चन्द शब्द उस बङे हिस्से मे लिखे वाक्यो को स्पष्ट परिभाषित करते हैहैं कि आखिर ये क्या हैं?इसी प्रकार माँ को जिन बुद्धिमानों ने हाशिए की उपाधि से नवाजा हैं ,वो शायद भूल गए कि उन्होने भूलवश कितनी बङी उपाधि दे दी।क्योंकि एक पुरूष का पूरा जीवन नारी बिना अधूरा हैं।पुरूष का अहंकार इस बात को स्वीकृत करे या न करे।उसके जीवन के हर पृष्ठ पर नानारी का अस्तित्व विद्धमान रहता हैं।पुरूष का यही अहंकारी रूप भाई, पुत्र,पिता,दामाद के रूप मे जीवन में जीवट रहता हैं।