सफल होने के लिए हमें सफलता के बारे में ही सोचना चाहिए।मन में विश्वास बैठा लेना चाहिए कि हम सफलता के लिए ही पैदा हुए हैं और सफलता प्राप्त करके ही रहेंगे।मनमस्तिष्क में जैसा हम सोच लेते हैं वैसे ही हम बन जाते हैं।सफलता प्राप्त करने के लिए हमें सकारात्मक सोचना चाहिए।स्वयं को महत्व देते हुए मूल्यवान समझना चाहिए।इस तरह का विश्वास करने वालों की ही सफलता मिलती है।सफल लोगों में ही आत्मविश्वास व आत्मसम्मान होता है, जो उन्हें अपने भीतर की शक्तियों का आभास कराता है। सफल लोग बाकी लोगों की अपेक्षा अपना स्वयं का आत्मसम्मान करते हैं।आशावादी व खुशमिजाज रहते हैं।बुरी खबर, बुरे दिनों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते। आत्मसम्मान से ही आत्मविश्वास उत्पन्न होता है।यह अखंड हिस्सा है। किसी विषय पर निर्णय लेने में स्वयं पर भरोसा करके उसके बारे में अच्छा सोचना चाहिए। मिली असफलता से निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि असफलता से आत्मविश्वास की कमी होने लगती है इसमें बदलाव की कुंजी हमारे मस्तिष्क के अंदर है। अपनी इच्छा शक्ति के द्वारा ही अपने सोचने के तरीकों को बदल सकते हैं।नकारात्मक विचार को हटाकर इच्छा शक्ति को प्रबल बनाया जा सकता है, क्योंकि इच्छा शक्ति नकारात्मक विचारों पर हावी होती है।
हमें अपनी असफलता के लिए किसी ओर को या प्रतिकूल परिस्थिति यों का बहाना नहीं देना चाहिए।असफलता पर पलटवार करने और सफलता हासिल करने का आत्मबल हमारे अंदर हैं।जिसके कारण सामने वाला विरोधी व्यक्ति आपको मार्ग से हिला नहीं सकता।अपने आप पर भरोसा आपके कार्यों के द्वारा दिखाई देगा, जो यह साबित करता है कि आप कितने विश्वास से भरे हुए हैं।आप अपने आप को जैसा सोचते हैं वैसा ही ढालिए।हमारा आत्मविश्वास ही ईश्वर प्रदत्त वास्तविक स्वरूप है।हमारे जीवन की घटनाएं हमारे सकारात्मक नजरिए और आत्मसम्मान को बताती है।ये घटनाएं प्रोत्साहित भी कर सकती है और निरूत्साहित भी, सुखी भी और दुखी भी।लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रतिकूल परिस्थियों का डटकर मुकाबला करना चाहिए।ऐसा तभी होगा जब हम नकारात्मक विचारों को निकालकर, असफलता को परे कर, संकल्प, समर्पण व कठिन मेहनत से लक्ष्य भेदे। हमें अपनी निराशा जनक व मित्रहीन स्थिति से उबरकर आत्मसुधार करना चाहिए।क्योंकि हमारे अंदर छिपी हुई रहस्यमयी शक्ति होती है , जिसके आह्वान पर अजेय बाधाओं को जीत सकते हैं।समर्पण भाव से कोशिश करे, स्वयं से प्रेम करे, भरोसा रखें, सकारात्मक सोच को लाएं, अपने आप को प्रोत्साहित करें।आत्मसम्मान बनाएं रखें।अपने आप को प्रेरित करना चाहिए जिससे अवचेतन मन में जङे मजबूत बन जाए।
आत्मसम्मान जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है जो युवावस्था में आगे धकेलता है, प्रौढावस्था में सबलता प्रदान करता है और आने वाले वर्षों में नवीनता प्रदान करता है। इसलिए हमें नकारात्मक, निराशा, असफलता के शब्दों की जगह सकारात्मक, आशावादी शब्दों को बोए और सृजन करे। विजयी शब्द सोचें, प्रोत्साहन के शब्दों को जोडे, उत्साह के शब्द बोए, प्रेम के शब्दों का प्रयोग करे।आत्मप्रताङना को स्थान नहीं देना चाहिए।स्थितियां कैसी भी हो आत्मविश्वास डगमगाना नहीं चाहिए।सकारात्मक सोच लाना चाहिए कि तरक्की, सफलता, कर्म दौलत सब कुछ हमारा है।खुद के प्रति ओछे साबित नहीं होना चाहिए। स्वभाविक ही है स्वयं की कमजोरियों के बारे में चिंता होना। इसका उत्तर हतोत्साहित होने में नहीं बल्कि प्रोत्साहित होने में होना चाहिए।जिससे आपका आत्मविश्वास के साथ आत्मसम्मान बढेगा।और आपकी समर्पण भाव की कोशिशे सफलता के चरण छूने लगेगी।जैसा कि फ्रांसीसी दार्शनिक एमील कुए की उक्ति को दोहराएं-" हर दिन, हर प्रकार से मैं बेहतर और बेहतर बन रहा हूँ।"