मुहॅ अंधेरे ही भजन की जगह,फोन की घंटी घनघना उठी,
फोन सुनते ही स्फूर्ति आ गई,नही तो उठाने वाले की शामत आ गई।
पहले दर्शन इसके होते,बाद में भगवान के दर्शन।
उठते ही चार्जिन्ग पर लगाते,तत्पश्चात् मात पिता को पानी पिलाते।
दैनान्दिनी से निवृत हो पहले मैसेज पढ़ते,बाद में ईश्वरीय वंदन करते।
घर मेरे,जब घंटी घनघनाती,आसपास जमघट-सा लग जाता।
मजाल जिसकी,बङो के सामने, छोटे उठा लेते,
संदेश सुनने को सब उत्सुक, न मिलने पर मुहॅ लटका लेते।
मौका पाकर सब फोन पर लग जाते,पकङे जाने पर बहाना मारते।
दूर-दराज से,आवाज लगाते वावा दौङे आते-
आवत है.....आवत है....आवत है......
पीछे सेदादी चिल्लाती-
काहे को उकलाए जात हो,फोन कहा भागत जात हैं।
फिर क्या, इसी बात पर तू तू...मैंमैं .....हो जाती,
नाती पोते,बहु बेटे,रिश्तेदारोंसे होती बातें,
यह डिब्बा बन जाता,'कलेजे का टुकङा।
पर, खिलखिलाते दांत,मिसमिसाहट में कब बदल जाते,
आग बबूला हो,चोंगा वही धराशयी हो जाता।
इसकी भी अजीब दास्तान हैं -'पल में तोला,पल में माशा'।
आज,ड्राईंग हाॅल की शोभा बढ़ाने वाला,कचङे का सामान कब बन गया,
जरूरत हैं इसकी तो,बदले में कार्डलेश रख गया।
जमाना बदला, इसका भी रूप बदला,
चलता फिरता मोबाईल,हर हाथ की शान बन गया।
रूमाल के बदले जरूरी,बिना इसके दुनियां अधूरी।
भूकंप आए,धरती फट जाए,सब लुट जाए,
पर मोबाइल ,हाथ से छूट न पाए।
भूखे पेट रह सकते हैं,पर चार्जिंग बिना नही रह सकते।
जहां दूरी का अवरोध हटा,वहही शिकायतों का चिट्ठा घटा।
घर परिवार में हैं अनूठीं भूमिका,बैठे बिठाए बनते नए-नए रिश्तें।
बजूद हैं जीवन में इतना,पार्टी हो या गमी,रखना हैं जरूरी।
नवबधू आगमन पूर्व ,रिश्तों में इतनी मिठास भरता,
विवाहोपरांत,सब बुराईयों पर ,पर्दा-पङ जाता।
अनेकानेक हैं इसके काम,हवा -हवा में ही करता काम तमाम।
दुनियां जहां की खबरों से अवगत कराता,
तो मनमुटाव का कारण बन जाता।
अफवाहें फैलानें में इतना माहिर,घर बैठे ही लोगों के दिल जलाता।
तकरार मिटाता या कङवाहट बढ़ाता,
घावों पर मलहम लगाता या नासूर बनाता।
झूठ फरेब का,मेल टू मेल करके,डंके की चोट पर भांडा फूटता।
मेसेज ,चेटिंग की दुनियां में,नीम चढ़ें करेले का काम करता।
समुद्र पार बैठे,जन्मोत्सव हो या विवाहोत्सव,बधाईयों का तातां लग जाता।
भागमभाग की दुनियां में,घंटों समय बर्वाद करना कम हुआ,
अब कुछ ही चंद लाईनों का,एक ही समय में,'संदेशवाहक'बन गया।
पहले हम-पहले हम का विवाद खत्म हुआ,
खींचातानी से इंसान, आरामपरस्त हुआ।
कार्डो,खतों का ,अब इंतजार नहीं हैं करना,
'मुहॅ छिए'फोन पर ,आवागमन हैं जरूरी।
एक छोटे से ,मुट्ठी भर के बक्से में,नाता तोङने-जोङने की कङियां हैं।
जीवन के हर हिस्सें में,दस्तखनकारी जरूरी हैं,
किसी भी बात के जिक्र में ,'फोन'शब्द जरूरी हैं।
अशुभ समाचार मिलने पर,गालियों की झङी लगती,
नासमिटें, कलमुहें ,खबर अबही देनी थी।
मिठास न घोलने पर ,इसकी होती विडंबना,
गुस्सा-गुस्सी,झङपा-झङपी में,इसका होता फिकना।
होश आता,तो जाकर उसको ऐसे उठातें,
जैसे बिछङे लाल को, सीने से लगाते।
शुक्र मनाते ऊपर वाले का,चलो बच गया,
पर अफसोस नही ,इसकी वजह से रिश्ता टूट गया।
भई किसी के लिए आस हैं ,किसी के लिए विश्वास हैं।
कभी जुल्मोसितम ढहाता,कभी खुशियों की झङी लगाता।
पल-पल का हाल जान,सुख जीवनन का आधार बना,
उखङे मूङ में,मनोरंजन का साधन बना,
आपातकाल में भगवान बना,खींचातानी में अपशगुनी बना।
जीवन में इकलौता सहारा हैं,यह नही तो जीवन बंजारा हैं।
सच हैं,जीवन ही ठेलमठेला हैं,आदमी की दुनियां में अलबेला हैं।
छूट गया ईश्वरीय वंदन,उठते-बैठते होते इसके दर्शन।
सुना हैं, कण-कण में भगवान है बसते,
लेकिन लगता हैं मोबाईल में भगवान हैं बसते।
इतना इसे धन्यवाद कहते नही थकते,
जिसने जीवन दिया उसे भी नही कहते।
बस बहुत हुई ,इसकी अपनी लंबी दास्तान हैं,
जिसमें छिपी अनगिनत करतूतें हैं।
हम इसे नवाजतें हैं-
''घर का भेदी ,रिश्तों को ढहाएं,
कभी अभिशाप,कभी वरदान बन जाए"।