नारी की काबलियत पर सदैव सशंकित रहने वाला पुरूष समाज,उसकी अपूर्व क्षमताओं से दमकते व्यक्तित्व और उसकी कामयावियों को अपवादो में भले ही गिने। उसकी कामयाविओं को अपने पूर्वाग्रही,अनुमानरूपी चश्में से अनदेखा करे,लेकिन आज स्त्री कामयाबियों को भाग्यवादी कहकर नकारा नही जा सकता।आज जो मुकाम हासिल किया हैं,वह उसकी दिन रात की मेहरूपी साधना हैं।उसके लक्ष्य में हर कदम पर उसकी तपस्या हैं,जिसने अपने लक्ष्य प्राप्ति में उसकी यात्रा को निरंतरता प्रदान करने में खुद को विकसित किया हैं।और अपनी एक पुरजोर कौशिस व मौजूदगी के रूप में एक मुकमामल पहचान दी हैं।कामयावी का चस्पा लगवाने में व्यक्तित्व किसी का भी हो,चाहे पुरूष हो या स्त्री।वह अपने आप में अनूठा होता हैं,जिससे बंधनमुक्त,संशयरहित व्यक्तित्व की पहिचान स्वीकार की।स्त्री की क्षमताओं को एक अलग वर्गीकृत क्यों किया जाए? उसे पूर्वाग्रहों विचारों से मुक्त क्यों नही किया जाता?स्त्री योगदान को नतमस्तक कर एक पर्व की तरह उल्लासित होकर क्यों नही मनाया जाता?कब तक इनकी क्षमताओं पर उंगलियां उठती रहेंगी।जबकि उठाने वालो को यह जानना चाहिए कि वाकि उंगलियां स्वं की और क्षमता पर इशारा करती हैं कि पुरूष का व्यक्तित्व,काबलियत सब कुछ नारी बिन अधूरा हैं।महिला व्यक्तित्व को एक संवेदनरूपी जीवट स्पंदित से भरपूर व्यक्तित्व की संज्ञा दे।तमाम वर्जनाओं,पूर्वाग्रहोंनुमानों को तोङकर उपलब्धियों के निशां छोङे।गौरवतलव गुजरे दशक से उसकी कामयावी के पदचापो से पहिचान दर्ज कर व नक्शे पर बनी योजनाओं को कार्यरूप में परिणित कर अस्तित्व की लकीरें खींच रही हैं।शोणित, दमित नारी समाज में नवचेतना का संचार होने पर भी वह शिकारग्रस्त हैं क्योकि मानव समाज आज भी वही का वही खङा हैं ,क्योकि पुरूष समाज स्त्री आजादी को व्यक्तित्व विकास को अपना द्वन्दी मानता हैं।मानसिक सोच में परिवर्तन लाए बिना,समाजहित में परिभाषित नही कर पिएगा।सच्चे अर्थो मेंमहिला विकास मंझधार प्रकृति प्रदत्त रूपी कुछ पंक्तियां 'आंचल मेंदूध आंखों में पानी ' इसमें आंखों में पानी की जगह अग्नि प्रज्ज्वलित दिखाई देगी।नारी सृष्टि रचयिता,पालनहार,कर्तव्यपरायण सभी में पुरूषों से आगे होने पर भी,उसे अक्षम व नेतृत्वविहीन बनेकर चुपके से सत्ता के गलियारें में सत्ता की कुंजी पिछले दरवाजे से अपने हाथों में रखे हैं।फिर भी कई महिला नेत्रियों ने अपनी प्रेरणादायी छवि से अमिट छाप छोङी हैं।नए-नए मापदंड स्थापित कर, अपनी सहानुभूति व सहनशीलता की ताकत पर सामाजिक क्रान्ति लाने मेंपुरूषों से पीछें नहीं हैं।अपने बेहतर प्रदर्शन से पुरूषों को पीछें खदेङ दिया हैं।