जीवन जीनें की तमन्ना में दिन पर दिन व्यतीत होते रहते हैं।जीवन के उतार-चढ़ाव में हमारे जीवन में सुख दुख,अच्छे बुरे,ऊॅचनीच घटनाएं घटयी बढ़ती रहती हैं।हर दिन ,एक नई आशा के साथ के साथ दिन शुरू होता हैं कुछ घटनाएं अमिट छाप बनकर जीवन शैली को ही बदल देती हैं।चाहते हुए भी हम उन्हें दरकिनार नही कर पाते हैं।सब कुछ जानते बूझते हुए भी मायावी जादू, मन मस्तिष्क पल नियंत्रण जमाए रहता हैं।सुख के दिन तो पंख लगते ही उङ जाते हैं,लेकिन दुखों की गाज हमारे दैनांदिनी के कार्यो के साथ मन मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं।हम अपने आस पास की सुखभरी दुनियां को देख देख कर अपनी जिन्दगी को कोसते रहते हैं।नकारात्मक विचारों पर अपनी ऊर्जा शक्ति वहन करते रहते हैं।नकारात्मक बातों सेहम अपने आपको,जीवन शैली को दुखदायीबना देते हैं।ऐसे में हमे अपने आपका आत्म चिन्तन करना चाहिए। सुख के व्यतीत दिनों को अपनी शक्ति बनाना चाहिए।हमारे पस जो कुछ भी हैंउसको सकारात्मकता पर खर्च करना चाहिऐ।हमें अपने आपको इस तरह सोचनि चाहिए कि जिस तरह ऑखों से हमे दूर का साफदिखाई देता है लेकिपास का दिखाई नही देति हैं तो इस दोष को निकटवर्ती दोष उजागर न करके,दूरदृष्टि दोष कहते हैं।कहने कि तात्पर्य हैं कि-सकारात्मक रोग बतायाऔर नकारात्मक(निकट दृष्टि का चश्मा लगाया।अपने में जो अच्छी बात हैं या अच्छी बात हो चुकी हैं,उसे सोचकर अपने दोष का निवारण करना चाहिए।अगर दोनो तरह के दोष हैं,तो दोनो को समान महत्व देकर(सुख दुख) देकर ऑखों को मजबूत अर्थात् जीवन को आत्मविश्वासी, हिम्मती बनाईए।इसी तरह अगर बुरे दिनों में जो कुछ अच्छा होता हैं,इसे अपनी नैतिक शक्ति बनाईए।जब जीवन में सुख दुख,उतार चढ़ाव की तरह हैं तो तराजू के दोनो पलङों की तरह तालमेल वाला जीवन जीना चाहिए।पूर्णतः सारांश यह हैं कि जीवन में नकारात्मक वस्तुओं,घटनाओं,व्यक्तियों के परे रखकर सकारात्मक पर अपनी ऊर्जा खर्च कीजिए।दूसरों में अच्छी बातों का गुणगान कर,अपने में सकारात्मक ऊर्जा संचित कीजिए।