जैसा कि अरस्तू ने कहा हैं कि-स्त्री पुरुष के शरीर की एक अतिरिक्त हड्डी हैं।भौतिक सुविधाए, कानूनी अधिकार के कारण परम्पराओं से चले आ रहें वर्जित क्षेत्रों में कदम रखकर,परम्परागत वर्जनाओं की दीवार ढहाकर, अपने संघर्ष को जीवट रखकर,संघर्षरत प्रेरणा बन कर,अपमान के खानों में सम्मान अर्जित किया हैं।वही दूसरी ओर पुरुष दंभया,कुटिल आलोचना,अनुपलब्ध से कुंठित होकर,अपने सुनहरे पंख काटकर आकांक्षाओं को दवाकर दोयम जीवन यापन कर रही हैं।तब भी वह किसी भी क्षेंत्र में पीछें नही हैं।फिर चाहे उसने स्वतंत्रता को स्वच्छंदता मानकर गलत राह चल पङी हो।इस संबंध मे प्रसिद्ध शिक्षाविद् मैत्रैयी पद्माभन ने कहा हैं कि फैशन और पाश्चत्य का अंधानुधीकरण न करे।अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नालप्पाट्टु बाल मणि अम्मा नेअपने साहित्य में भौतिक ,आध्यात्मिक समस्याओं से ग्रस्त मानव समाज के प्रति गहरी वेदना वव्याधियो का उपचार बताया हैं।महिला विकास समिति को थोथा मानते हुए युवा वैज्ञानिक अवार्ड प्राप्त जयश्री सिक्का कहती हैं कि महिलाओं को अपनी संभावनाओं को पहचान कर दोयम दर्जे वाले समाज के विरूद्ध जागरूक होकर स्वयम् में काबिलियत लाए।स्त्री शिक्षा की बात कहने वाली इन्गलिश लेखिका मेरी बाॅल स्टोन क्राफ्ट ने अपनी पुस्तक ए विन्डीकेशन ऑफ द राइट्स मेंपुरूष वर्चस्व वाली अभेद सामाजिक व्यवस्था की बात कही।शिरोमणी अवार्ड से सम्मानित व आर्थिक विकास की हिमायती इश्र जज आहूवालिया ने महिला को उच्च मुकाम हासिल करने के लिए प्रतिवद्धता,लग्न,अनुशासन की भावना बताई।स्त्री कोमलांगी नही,साहसी व सशक्त सिद्ध करने में किरण बेदी,पत्रकारिता में ज्ञानपीठ पुरूस्कार से सम्मानित कर्तुल एन.हैदर,मेघना नारायण पायलट बनी।एक तरफ बुलबुले पंजाब सुशीला देवी ने क्रान्तिकारी देशभक्ति पूर्ण गीतों से जोश भरा, तो दुसरी तरफ आणविक शस्त्रों के खिलाफ विश्व शान्ति की गहरी रक्षा में दिलचस्पी,अछूतोद्धार की विस्मृत नायिका रामेश्वरी नेहरू ने की।द्वितीय विश्व युद्ध केजीवंत दृश्यों को कैमरे कैद कर होहईव्यारा प्रथम महिला फोटोग्राफर बनी।शोणित महिलाओं को अधिकारों के प्रति चेतन करने वाली महिला आन्दोलन की सक्षम अभिनैत्रीमधु किश्वर,राजस्थान मे महिला स्थिति सुधारनें का अविस्मरणीय प्रयास देश की प्रथम महिला सासंदबेगम आहिदा ने किया।असाधारण वर्जित क्षेत्रों में प्रवेश कर अपने विश्वास व कर्मठता का परिचय केरल राज्य परिवहन निगम की बस ड्राइवर शाहुनवाथ,माडलिंग सिनेमा में ख्याति प्राप्त ऐश्वर्या राय,लता जी,सीनी नौरोजी,नंदिता दास न्यूयार्क में ड्राइवरो की भलाई के लिए भारतीय मूल की भैरवी देसाई,न्यूजर्सी प्रान्त की गवर्नर ने सीमासिंह को भंडारनायके,खालिदा जिया,लक्ष्मीवाई से लेकर माॅन्टेसरी फ्लोरेंस,नाईटेंगल क्यूरी आदि ने विभिन्न क्षेत्रो में रचनात्मक स्त्री का अंग मानी जाने वाली स्त्री को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई।महिला शोषण के खिलाफ आवाज वामपंथी विचारक क्लाराझेंटकिन,स्वतंत्रता व सेवा की प्रतिमूर्ति जोगावाई ने 'नारी जागरण'का नारा दिया।शिक्षा के प्रति जागरुकता का अलख जगाकर नारा दिया'एक बच्चे की शिक्षा,एक व्यक्ति और एक लङकी की शिक्षा, पूरे परिवार की शिक्षा।अपेक्षित विकास के लिए साक्षर नहीं,शिक्षा जरूरी,जिससे अपने अधिकारो के प्रति जागरुक रहें।औरतें हमेशा समाज के हाशिए पर रही,केन्द्र में नहीं।फ्रान्सीसी लेखिका सीमोन द वी अवा कहती हैं कि सक्षम होते हुए भी,अवसर की कमी।इसलिए समानता नहीं,सशक्त होना चाहिए।जैसा कि इन्दिरा स्वरूप,भूतपूर्व सूचना निदेशक का कहना हैं कि स्त्रियाॅ अगर गंभीर नही होती,तो विकास कैसे होता।स्त्री मस्तिष्क की उर्वरता को प्रमाणित करने वाली डाॅ.देशहिन्दूजा नेटेस्ट ट्यूब प्रक्रिया संपन्न की।
अंततः धरा पर धरा सी उदार सृष्टि की पर्याय बनी नारी ने,अपने को पूर्वाग्रही चश्में से मुक्त कर जीवांत,स्पंदित,संवेदनापूर्ण व्यक्तित्व के तरह-तरह के आसमाॅ दिए।फिर भी सत्तर वे दशक से नारी स्वतंत्रता का आंदोलन समय की एक गिनती से अपनी अंतिम परिभाषा की तलाश भें दिख रही हैं,जबकि वह अपने आप में परिपूर्ण, सोच अनुभव का जीवट संसार लिए स्त्री कानूनी विसंगतियों के गर्त में बिलबिलाकर अपनी इच्छाओं, महत्वकांक्षाओं,कल्पनाओं,आदर्शो के प्रतिबिम्ब में,इन्दिरा गांधी, अदिति को ढूढती हैं।प्रतिष्ठित परिवारों में महिलाओं को दी जाने वाली यांतनाएॅ,आजादी का मुहावरा ,अतिशयोक्ति बन रहा हैं।अधिकारों व समानताओं की संगोष्ठियाॅ मनोरंजन का विषय बनी हैं।इसके लिए नारी ने स्वयं की गर्वीली,उज्ज्वल भविष्य,अर्थवान जीवन यात्रा के लिए खुद को हमेशा पुरूष का पैमाना बताकर,कम आंककर असफल हुई।जैसा की चीनी कहावत हैं-पुरूष सोचता है कि वह जानता हैं,पर स्त्री कही उससे अधिक जानती हैं,लेकिन स्वतंत्र अस्तित्व के लिए नारी को निरपेक्ष अस्तित्व मिटाकर अर्थवान का आहवान करना होगा,जिसके लिए अपने को मिट्टी का लोंदा समझकर उसी दिशा में गढकर,निर्णयात्मक स्वतंत्र अस्तित्व के सुनहरे पंख लगाकर अपनी परिभाषा, स्वयं समाज के समक्ष प्रेषित करनी होंगी।
अतः उपरोक्त प्रेरणात्मक प्रसंगों को केवल पढकर ज्ञानवान, उपदेशक न बने, बल्कि व्यवहारिक जीवन में ढालें।