ममता का सागर,प्यार का वरदान हैं मां,
जिसका सब्र और समर्पण है अन्नत।
सौभाग्य उसका,बेटा-बेटी की जन्मदात्री कहलाना,
मां बनते ही,सुखद भविष्य का बुनती सपना।
अपने आसपास खुशहाल बगिया में,
खिल्लातें फूलों जैसे बच्चों की,किलकारियों की गूंज में तल्लीन,
इसी उधेङबुन में कब बाल पक गए।
लरजतें हाथ,झुकी कमर,सहारा तलाशती बूढ़ी ऑखें,
अंगुली पकङकर ,गिरकर उठना सिखाया जिसको,
वही अंगुली हाथ से फिसल गयी।
जिन्दगी का लम्बा पढ़ाव,कब गुजर गया?
इच्छाओं का गला घोंटकर,बच्चों का जीवन संवारती।
बेपरवाह धूप,लपट में,तावङतोङ दुनियां जहां से दूर,
एक पैर पर दौङ- दौङकर,बच्चोंको लायक बनाया।
टींस होती मन के किसी कोने में,
अफसोस! परवरिश में ऐसा क्या हुआ?
कहाॅ,क्या कमी रह गयी?
दिन-रात मां नाम की माला रटने वाले,किस माया के अधीन हो गए।
तिनका-तिनका बटोरकर,सिर ढकने की छत्त दी,
आज उसी को दर-दर ठोकरे खाने को छोङ दिया।
खुद से पहिले निवाला खिलाया,उसी मां को पेट भरने के लिए तरसा दिया।
मन सालता हैं,तुझसे मां का दर्द कैसे अंजान रहा?
तू मुझसे जाना जाता था,उसी को आज गुमनाम कर दिया।
जमानें केसामने मां को मां कहने से,शर्मसार होते हो
सबसे बङी सेवा,मात पिता सेवा,यह इंसानियत का सबक कैसे भूल गए?
शायद मैं ही कसूरवार हूं तुम्हारी,
तुम्हें तो जमाने के लायक बना दिया,पर स्वयं नही ढल सकी।
और हां,सपनों की लङी मे,अपने 'इस भविष्य'का मनका पिरोना भूल गई।
खैर.......तो बस गुजारिश इतनी सी हैं कि..
तुम्हारे संवेदनहीन ह्रदय में,कभी ममत्व का स्पंदन हो जाएं,
भूली बिसरी विस्मृत यादों में,स्वपनों में,कभी मां की झलक दिख जाएं,
तो बस बेवस मां की फरियाद जरूर सुन लेना,
दुनियां बदलती हैं,मां नही बदलती।
सो,इस चकाचौंध की दुनिया में,''मां को 'ममी '(मृत)मत बना देना''।