आधुनिक युग में बदलती सोच,रीतिरिवाजों के पतन,लोकाचारों में बदलाव,संस्कृति और सभ्यता में उथल-पुथल ने जहा नई समस्याओं को लाकर खङा कर दिया,वही दूसरी ओर जमाना बदलने के साथ-साथ रिश्तोउअं,रीतिरिवाजों में भी परिवर्तन आए हैं।छोटे-बङे,बहु-सास,श्वसुर-दामाद,बहु-बेटों के संबंधों में छोटे-बङे के मुलाहजों को दरकिनार करते हुए,समानता का दर्जा देने लगे,जिससे आपसी संबंधों में कङवाहट खी जगह मिठास आने लगी।लेकिन इस मिठास में कही-कहीखटास का स्वाद भी देखने को मिलता हैं।आचरण में जहा एक ओरबहुओं ने बेटियों के समान परिवार की वागडोर संभालनें में कोर कसर नहीं छोङी,तो दूसरी ओर परिवार के सदस्यों ने आत्मगर्विता के साथ स्वीकार किया।बहुओं का आचरण जब इस तरह से हो जा जाता हैं तो स्वाभाविक हैं किसास श्वसु भी उनसे बेटियों की तरह ही व्यवहार करते हैं।गलती करने पर डांटना,रोकना ,सलाह देना शामिल हो जा जाता हैं।क्योंकि व्यवहार में तबदीली,वास्तविक संबंधों की मर्यादा क्क्षीण होने पर होती हैं।इस तबदीली को एक स्वच्छंद विचारशील परिवार की उपमा दी जाती हैं।लेकिन जब यह नवीन संबःध सामान्य दिनचर्या में शामिल हो जाते है,तो थोङे दिनों के बाद आपस में खटास आने लगती हैं क्योकि वास्तविक संबंध आङे आने लगते हैं।सास श्वसुर,बहुओं के साथ बेटियों के समान व्यवहार करते हैं,उनकी गलतियों को भी बेटी समझकर नजरअंदाज कर देते हैं।लेकिन जब वही मां पिता समान सास श्वसुर जब बहुओं पर टोका टाकी करते हैं या कभी डांट लगा देते हैं,तो बहुओं को यही व्यवहार अभद्र लगने लगता हैं।कहने लगती हैं कि बहुओं से इस तरह से बात की जाती हैं?हमें तो इस तरह का कहना-सुनना पसंद नही।हमारा मुंह खुल गया,तो अच्छा नही होगा?उन्हें यह नागवार लगने लगता हैं।अब इन बेटी समान बहुओं से पूछिए कि जब तुम सास श्वसुर से कुछ ऐसा वैसा कहती हो और उनके पलटकर कुछ कहने पर ताना सा मारती हो तब कहती हैं कि'हमने कह दिया तो वबाल मचा दिया।यही बात दीदी ने कही ,तो कुछ नहीं'।यह कैसा परिवर्तन?रिश्तें ,तो दोनों तरफ से 'समझदारी से बनते हैं,न कि एकतरफा।'यह क्या बात हुई बहुओं की???