का बिन,सूनी दुनिया? का बिन ,माटी काया? उत्तर-नारी(नाङी)
जी हां नारी शब्द की सार्थकता दो अर्थो में होती हैं।एक नारी शब्द का अर्थ महिला, औरत, देवी आदि से अर्थात् ये नही होती तो ,दुनियां ही नही होती।सृष्टिकर्ता पालनहार भी सार्थक विहीन हो जाते।और दूसरा नारी(नाङी) शब्द का अर्थ-शरीर की स्पन्दन क्रिया से हैं।यदि नाङी(नारी) ही स्पंदनहीन हो जाए,तो शरीर भी मिट्टी समान।कहने का तात्पर्य हैं कि नारी(नाङी) बिन सब जग सूना।कवि, लेखकों,देवताओं ने नारी महत्तवता को अपने-अपने मनोंभावो,शब्दों से उच्च निम्न स्थिति पर प्रतिष्ठित किया हैं।सदियों,दशकों के साथ साथनारी स्थिति में उत्थान पतनव विसंगतिपूर्ण व्यवहार होता रहा है और वर्तमान में भी प्राचीनतम शब्दों की सार्थकता सिद्ध करने में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस,महिला मुक्ति मोर्चा,सशक्तिकण वर्ष,संबैधानिक अधिकार आदि विकल्पो द्वारा महिलाओं की छवि को सकारात्मकता प्रदान की जाती रही हैंऔर की जाती रहेगी।लम्बे-लम्बे भाषणों ,लेखों, कविताओं में सबला,औजस्वी,तेजस्वी,संकटमोचक जैसे शब्दों से प्रोत्साहित कर उसे रानी लक्ष्मीवाई,अवंतीवाई जैसी वीरांगनाओं के उदाहरण प्रस्तुत किए और हौसला अफजाई कर क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए प्रेरित किया।
वर्तमान में उदाहरण 'मलाला'जिसने कम उम्र में महिलाओं में शिक्षा के प्रति क्रांति की लहर उत्पन्न की।लेकिन जब वह इन्दिरा,लक्ष्मीवाई,पी.टी.ऊषा,मलाला के पदचिह्नों पर चलना चाहती हैं तो यह पुरूष प्रधान समाज वपरिवार अपनी स्वार्थलोलुपता,मानसिक संकीर्णताओं के कारण रामायण की सीता,सती शावित्री के उदाहरण प्रस्तुत करवहतोत्साहित कर उसकी सफलताओं में रोढा बन जाता हैं।आखिर यह दोहरी नीति क्यों?क्या ऐसी नीतियों पर चलकर पचास फीसदी वोटर बना पाएंगे?या फिर चन्द सफल महिला प्रतिशत से संतुष्टि कर धृतराष्टर् बने रहेगें? और अगर बदलाव हो रहा हैं ,तो नित नए कार्यक्रमों की आवश्यकता क्यों?
प्रयत्नशील सुधारात्मक प्रयासों के अलावा,रूढिवादी शब्दों को परे कर नारी शब्द की सार्थकता करनी होगी।माॅ,बहिन,बेटी,पत्नी इन शब्दों का पर्याय'औरत' और अंग्रेजी में वीमेन हैं।इन शब्दों की नीचे दी गई विश्लेषण व्याख्या परिवार, समाज में अलग हटकर दें और उन पर अमल करें-औ-अबला नहीं,औजस्वी।र-रमणीय नहीं,रणभेदी।त-तिरस्कृत नही,तेजस्वी। डव्ल्यू-वाइल्ड नहीवाइज्ली।ओ-ओवीडिऐन्ट नहीओपटीमिस्ट।एम-मीगरी नहीमोरल।ए-अफ्रेड नही एडवेन्चरस।एन-नीगलीगीवल नहीनोवल माइन्डेड।अतः इन शाब्दिक अर्थो को दृढ संकल्पित करें,तो वह दिन दूर नही जब महिलाओं की अस्मिता, सकारात्मक छवि,समकक्ष दर्जा दिलाने के लिए नित नए कार्यक्रमों,आयोंजनों,संबैधानिक प्रावधानों की आवश्यकता पढेगी क्योंकि परिवर्तन जागरुकता,चेतनता से आता हैं,कार्यक्रम तो एक जरिया होते हैं।