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कार्य ही पूजा या कार्य ही पेट पूजा

7 मई 2015

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इस कहावत का मानव जीवन में बङा ही महत्व हैं ।इसका अर्थ आज के आधुनिक समाज में स्थिति के अनुसार गढ़ा हैं।बचपन मेंपढ़ी खरबूजे बेचने वाली बुङिया की कहानी याद आ गई,जो घर में पङे मृत बेटे के कफन और भूख से बिलखते नाती-पोतो की भूख मिटाने के लिए चोराहे पर बैठकर खरबूजे बेच रही है।गुजरने वाले नाक मुॅह सिकोङें,कोसतेहुए थूॅ-थूॅ करते अपनी राह चलते जा रहें।यकायक यह कहानी स्मरण इसलिए हो आई क्योंकि आज किसी के गमी में बैठकर आ रही थी।वहा पर अंतिम संस्कार के लिए बाहर सर्विस कर रहे बेटे का इंतजार किया जा रहा था।अंदर-बाहर बेटे के न आने की फुसफुसाहट हो रही थी।अंततःशमसान घाट ले जाया गया।लोगों के वापिस आने का सभी समय काट रहे थे।कौई कह रहा था कि तन्ख्वाह ही तो कटती ।कौई कह रहा था कि नौकरी ही तो जाती, कम से कम पिता का अंतिम मुख देखने को तो मिल जाता।सभी हाॅ में हाॅ मिला रहे थे।पीछे बैठी कौई धार्मिक परायण बुढ़िया सबकी बातें सुनते हुए कहती हैं कि क्या तुम लोंगों ने भागवत् गीता नही पढ़ी?भगवान कृष्ण ने कहा हैं कि 'जो होना था,वह हो गया,वो तो वापस नहीं आ सकता,आगे की सोच।वैसे भी कर्म ही पूजा कहा गया हैं।माला जपना,प्रार्थना करना सेसर्वोपरि कार्य माना गया हैं।पिता तो मिट्टी में समा गये।अंतिम दर्शन मेंशामिल होता तो,नौकरी चली जाती तो उसके बच्चें कौन पालता?बेटे ने नीति अनुसार सही किया।यह तो दुनियादारी हैं ।उस धर्मपरायण बुढ़िया की बातों को सभी सुन रहे थे।किसी ने तिल भर भी उसका विरोध नही किया।जो गिले शिकवे थे,वो भी नौ दो ग्यारह हो गए।जैसे उन्हें भविष्य में होने वाली इस तरह की घटनाओं के लिए एक प्रेरणादायक प्रसंग मिल गया हो।वैसे भी यह दुनियां भेङचाल हैं।यह मामला बङे घराने का था,सो सभी को लुभा गया।जैसे भविष्य में आने वाले रोङों का खात्मा कर देगा।।अगर यही घटना निम्नवर्गीय परिवार की होती तो उस परिवार का जीना हराम कर दिया होता।वैसे ही पाठशाला में पढ़ी खरबूजा बेचने वाली बुढ़िया की कहानी की तरह।जिसे सभी नेलालची,नैतिक पतिता,और न जाने क्या-क्या शब्दों की उपाधियां दी गई ,तब उसकी आवश्यकता पर किसी का ध्यान क्यों नही गया?उसके इस कार्य को निन्दनीय क्यों कहा गया?क्यों नही बुढ़िया के काम को ,जो उसकी मजबूरी थी,कार्य ही पूजा से नवाजा गया।सच्ची मायनें में तो बुढ़िया का कर्म पुज्यनीय हैं जबकि उस बङे घराने का काम निन्दनीय हैं।
मनोज कुमार - मण्डल -

मनोज कुमार - मण्डल -

चिंतन करने योग्य लेख | बधाई |

8 मई 2015

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हाशिया

15 अप्रैल 2015
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लिखने पढ़ने का साधारण सा कागज हमारे जीवन में कितना महत्व रखता हैं, यह सोचने वाली बात हैं।कागज का एक हिस्सा बङा और एक हिस्सा छोटा,जो एक गहरी लाल, हरी,काली लाइन मे विभाजित। थोङा गहराई से सोचा जाए तो कागज का यह विभाजित भाग समाज कीमहिला पुरूष स्थिति को दर्शाता हैं।समाज मे महिलाओं को हाशिए पर रख दिया गया

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पहचान

17 अप्रैल 2015
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मिलिट्री ट्रेनिंग की चर्चा चल रही थी,तभी एक सज्जन बोलते हैं-यह बात समझ नही आती कि महिला ऑफिसर्स को सर कहकर क्यों संबोधित किया जाता हैं,मेडम क्यों नही?इस पर दूसरे सज्जन समझाते हुए कहते हैं शायद महिलाओं को पुरूषों के समकक्ष दर्जा देने के कारण सर से संबोधित किया जाता हैं। पास बैठी महिला बीच में ही व्यं

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रिवाज

19 अप्रैल 2015
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शादियों का माहौल चल रहा था।कार्डस का आना जारी था।।कुछ दूर के रिश्तें दारों के निमंत्रण पत्र आए थे, तो कुछ लोकल में रह रहे चिर परिचित लोंगो के एक दो कार्डस भी थे।उन्हीं मे से एक निमंत्रण पत्र साथ में नौकरी समय में रही मेडम का था।शादी की बात सुनकर बङी खुश हुई।शादी की तैयारी संबंधी चर्चा चल पङी। रिश्ते

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सोच

20 अप्रैल 2015
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जब हम मानवीय व्यवहार का चिन्तन करते हैं,तो हमारे जीवन में कई प्रकार के व्यवहार होते हैं।उनका हम सभी अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में प्रतिक्षण आदान प्रदान करते हैं।व्यवहारो से जुङी व्यवस्थाए होती हैं या यूं कहिए कि व्यवस्थाएही व्यवहार को जन्म देती हैं।हम अनेक अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरते हैंउन

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महिला शब्द की सार्थकता

21 अप्रैल 2015
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का बिन,सूनी दुनिया? का बिन ,माटी काया? उत्तर-नारी(नाङी) जी हां नारी शब्द की सार्थकता दो अर्थो में होती हैं।एक नारी शब्द का अर्थ महिला, औरत, देवी आदि से अर्थात् ये नही होती तो ,दुनियां ही नही होती।सृष्टिकर्ता पालनहार भी सार्थक विहीन हो जाते।और दूसरा नारी(नाङी) शब्द का अर्थ-शरीर की स्

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ज्ञान को व्यवहारिक बनाईए

22 अप्रैल 2015
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जैसा कि अरस्तू ने कहा हैं कि-स्त्री पुरुष के शरीर की एक अतिरिक्त हड्डी हैं।भौतिक सुविधाए, कानूनी अधिकार के कारण परम्पराओं से चले आ रहें वर्जित क्षेत्रों में कदम रखकर,परम्परागत वर्जनाओं की दीवार ढहाकर, अपने संघर्ष को जीवट रखकर,संघर्षरत प्रेरणा बन कर,अपमान के खानों में सम्मान अर्जित किया हैं।वही दूसरी

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इज्जत

24 अप्रैल 2015
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प्रेसवाले के हिसाब करने पर,माताजी ने कहा-कपङों की संख्या से रूपए इतने हुए,लेकिन तुम तो अधिक रुपया बता रहे हों।प्रेसवाला कपङों को दिखा कर बोलता हैं-देखिए माताजी, यह पजामा घर पर पहनने वाला इसका दस रुपया,पेन्ट शर्ट का पांच रुपया,सफारी शूट का दस रुपया,कोट का पच्चीस रुपया।सबका जोङकर हुआ ना,एकदम सही हिसाब

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नारी स्थिति- जिम्मेदार कौन?

26 अप्रैल 2015
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प्राचीनकाल में जहाॅ नारियों को दैवीय अवतार समझा जाता था।उसका सामाजिक-राजनीतिक क्रियाकलापों में अपना अस्तित्व था।युग बदलते रहें,नारियों की दशा भी जीर्ण शीर्ण होती रही और एक समय ऐसा आया कि जब महिला पूर्ण रूप से पुरूषों पर आश्रित हो गई और नारियों पर कक्षई पावंदियां लगने के साथ ही अनेक सामाजिक कुरीतियो

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नववर्षागमन का स्वागत-परिवार को गुलाब के वृक्ष की तरह बनाने का दृढ़संकल्प के साथ करें।

27 अप्रैल 2015
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फिर वही 31दिसम्बर की वेला और नववर्षागमन के सूर्यागमन की प्रथम किरण के साथही मित्रगणों,शुभचिंतकों की बधाईयों का सिलसिला,टेलीफोन की ट्रिन-ट्रिन से मोबाइल फोन पर एस एम एस द्विरा या पोस्टमेप की काॅलबेल से.........अनवरत दो चार दिन तक चलता रहता हैं।वही घिसे पिटे संदेशों के साथ नववर्ष के स्वागत की इतिश

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नारी क्षमता:सकारात्मक सोच

28 अप्रैल 2015
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नारी की काबलियत पर सदैव सशंकित रहने वाला पुरूष समाज,उसकी अपूर्व क्षमताओं से दमकते व्यक्तित्व और उसकी कामयावियों को अपवादो में भले ही गिने। उसकी कामयाविओं को अपने पूर्वाग्रही,अनुमानरूपी चश्में से अनदेखा करे,लेकिन आज स्त्री कामयाबियों को भाग्यवादी कहकर नकारा नही जा सकता।आज जो मुकाम हासिल किया हैं,वह उ

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प्रतिदिन मनाईए महिला दिवस

29 अप्रैल 2015
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, महिला सशक्तिकरण दिवस ,महिला आधिकार,महिला आर्अअक्षण यह शब्द जितने कागजों पर सकारात्मकता का प्रतीत होते दिखाई देते हैं,उतने ही व्यवहारिकता से परे हैं।इन शब्दों ने महिला समाज को अभिव्यक्ति का नवीन अवसर जरूर प्रदान किया हैं,लेकिन महिला सशक्ता की छवि दृष्टिगोचर नही हुई ।आखिर ऐस

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सभ्यता

29 अप्रैल 2015
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आए दिन सुनने में आता हैं कि उसका लङका विदेश जा रहा हैं।सरला का दामाद कनाडा गया हैं।विदेश जाना फैशन सा बन गया हैं।फिर चाहे जाने वाला एक दिन या कुछ महीनें या साल भर के लिए जाए,लेकिन विदेश जाने की बात सुनते ही उस व्यक्ति के प्रति नई सम्मानित छवि काबलियत के समर्थक हो जाते हैं।विदेश जाने की बात आने पर एक

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दृष्टिदोष की तरह अपनी सोच बदलिए

30 अप्रैल 2015
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जीवन जीनें की तमन्ना में दिन पर दिन व्यतीत होते रहते हैं।जीवन के उतार-चढ़ाव में हमारे जीवन में सुख दुख,अच्छे बुरे,ऊॅचनीच घटनाएं घटयी बढ़ती रहती हैं।हर दिन ,एक नई आशा के साथ के साथ दिन शुरू होता हैं कुछ घटनाएं अमिट छाप बनकर जीवन शैली को ही बदल देती हैं।चाहते हुए भी हम उन्हें दरकिनार नही कर पाते हैं।स

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व्यक्तित्व -एक कोयले की खदान

3 मई 2015
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जन्म से ही कौई व्यक्ति सदगुणों की खदान लेकर पैदा नही होता हैं।उसकी संगति उसे अच्छा या बुरा बनाती हैं। व्यक्ति एक कोयले की खदान की तरह हैं।जो बाहर से एकसार सी दिखती हैं लेकिन जब इसे खोदा जाता हैं तो उसमें से कोयले के साथ-साथ हीरा भी निकलता हैं।जिस तरह कोयला और हीरा एक साथ रहते हिं

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समयकता

4 मई 2015
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चिलचिलाती धूप में, गमछा कंधे पर डाले,बुढ़ापे का सहारा,जिसे कभी नाती पोते बच्चों को मानता था,वह एक डण्डी के रूप में उसके हाथ में था।अपने ही विचारों में मग्न ऊॅची नीची पगडण्डी पर बार-बार गमछे से पसीना पोंछता चला जा रहा था। मालुम नही अपने आप में वह किस मानसिक द्वंद से लङ रहा था।दुनिया की लङाईयों का साम

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नारी उपमाऔरकर्मठता

5 मई 2015
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घर की सुखमयी,वैभवता की ईंटें संवारती,घर की धुरी है, धरा सी उदारशील,सृष्टि की पर्याय,सूरज की दमकती किरण हैं। ताउम्र ढलकती ओं स में,क्षणिक सुखों को तलाशती, जीवन के रिश्तों को सीप में छिपे मोती की तरह सहेजती,जीवन के अंतिम क्षणों में, मुट्ठी भर सुखसुविधाओं की उम्मीद में,तिल-तिलकर नष्ट करती, नारी तु

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भाग्य चक्र की भ्रान्ति

6 मई 2015
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वर्तमान ममें इंसान अपनें-अपनें जीवन की जद्दोजहद में ऐसा फंसा हुआ हैं कि वह सोच ही नहीं पाता कि आखिर ऐसा क्या जीवन हैं,जो रोजमर्रा के जीवन में क्षणिक सुख की अनुभूति कही भी दिखाई नही देती।दिन रात काम करके भी संतुष्टि नहीं।एक ही जगह पर एक सा काम करने वाले व्यक्तियों के जीवन में सुख सुविधाओं में इतना अं

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कार्य ही पूजा या कार्य ही पेट पूजा

7 मई 2015
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इस कहावत का मानव जीवन में बङा ही महत्व हैं ।इसका अर्थ आज के आधुनिक समाज में स्थिति के अनुसार गढ़ा हैं।बचपन मेंपढ़ी खरबूजे बेचने वाली बुङिया की कहानी याद आ गई,जो घर में पङे मृत बेटे के कफन और भूख से बिलखते नाती-पोतो की भूख मिटाने के लिए चोराहे पर बैठकर खरबूजे बेच रही है।गुजरने वाले नाक मुॅह सिकोङें,क

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अनूठा इजहार-मां नानी का

8 मई 2015
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अनमोल रिश्तों को जोङने वाला शब्द 'मां', खत हो या फोन,बच्चों की नजदीकी का एहसास कराता, डेगची का अन्न खिलाकर सबको,बच्चों की डकार से ही,भूखा पेट भर लेती। ऐसी होती हैं मां। एक दिन मां की पथरीली ऑखों से,नीर टपकते देखा, उदासीन हो बतलाती,'मताही' का स्मरण हो आया। सुनकर गहरी चुप्पी छा गई, मां के विलग

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''एक फरियाद मां की''

9 मई 2015
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ममता का सागर,प्यार का वरदान हैं मां, जिसका सब्र और समर्पण है अन्नत। सौभाग्य उसका,बेटा-बेटी की जन्मदात्री कहलाना, मां बनते ही,सुखद भविष्य का बुनती सपना। अपने आसपास खुशहाल बगिया में, खिल्लातें फूलों जैसे बच्चों की,किलकारियों की गूंज में तल्लीन, इसी उधेङबुन में कब बाल पक गए। लरजतें हाथ,झुकी कमर,

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'ऐसी भी होती हैं ममता'

10 मई 2015
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सूरज की प्रस्फुटित किरणों के साथ ही, कानों में पङती खङ-खङ,बेवाक आवाजें, ये कर्कश आवाजें किसी और की नहीं, घर की मुखिया, नानी मां की आवाजें। उठो भई, भोर हुई, नही तो,किसी की खैर नही। सहमें-सहमें से बहुएं,बच्चें,अपने कामों में लग जाते ,बचाकर नजरें। पीछे से फिर सुनाई दी, कुंभकरण की नींद में,पैर पस

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'ऐसी थी मेरी मां'

10 मई 2015
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ब्रह्माण्ड की अदभुत् काया,जिसमें संसार समाया, सौभाग्य हमारा,हम पल इनकी छत्रछाया। जन्म लेते ही,मऽऽऽ...माॅ..ऽऽ शब्द निकलता, सब रिश्तों से बढ़कर बनता अटूट रिश्ता। दुनियां हैं सतरंगी,पर मां तेरे रूप बहुरंगी। हर काम में पारंगत कर, हर मोङ पर साथ दिया, शिक्षिका बन,जमाने की बुराई से महफूज किया। व्यंग

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'कारनामें फोन के'

11 मई 2015
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फोन की घंटी का, ट्रिन....ट्रिन....ऽ..घनघनाना, डिब्बे के आस पास,सबका जमघट -सा जमजाना। मजाल जिसकी,बङों के सामने छोंटे उठा लेते, अपना नाम सुनने को सब उत्सुक,न सुनने पर सब के मुॅह लटकते। मौका पाकर,फोन पर सब लग जाते,पकङे जाने पर,बहाना मारते। मेरे घर में,घंटी बजती,आवाज लगाते दौङे आते वावा, आवत हैं..

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सोच

13 मई 2015
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स्कूल में आज बच्चों के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्य भी आज साल भर की पढ़ाई का नतीजा लेने आए थे।अंदर देखा-मैदान में परीक्षा बांटने वाले स्टाॅल जैसे लगे हुए थे।।कुर्सी पर विराजमान शिक्षक अपने सामने रखी मेज पर प्रगति पत्रक की गड्डिया सजाएं बैठे थे।कतारबद्ध रहकर परीक्षा परिणाम लेने की आवाजें दी जा रही थी

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डोलती नाव

14 मई 2015
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संगम किनारें घूमनें गया,मन अवसादों से भरा था, विवाह को लेकर,गहमागहमी के बीच ,अल्टीमेटम मिल गया। क्या करू?क्या नही करू?स्वयं पर गुस्साया। रक्तिम लालिमां,चहुॅ ओर,छटां बिखेरती, संगम नदी की हिलौरें,मधुरगान तानती। आकाश को कलरव करता, पक्षियों का झुंड लौटता, भीङभाङ,गाङियों का शोरगुल,कही विलुप्त-सा हो

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बंटवारा

15 मई 2015
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बैग तैयार है?जल्दी चलो अम्मा, ऑफिस जाते हुए, मंझले घर छोङ आऊंगा। बहुरानी की आवाज आई,नाश्ता करके ही जाना ,अम्माजी। मन ही मन अम्मा बङबङाई,बङी आई पूछ परख वाली। क्यों नही?सर्वोल्लासहैं आज का दिन, यह बोझ दूसरे घर जो ढोहा जा रहा हैं। ऐसा आन्नदित वातावरण था,मानो मनहूस साया विदा हो रहा था। टैक्सी उठा

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दिलासा

16 मई 2015
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एकाअंत में बैठ ,खुद को समझा रही थी, अपने से ज्यादा,आक्रोश भगवान पर निकाल रही थी। तभी त्रिपाठी आंटी आते हुए बोल पङी-क्या हुआ? शायद मन भांप ,समझाने लगी। पुराने दिनों को याद कर,आज खराव नही करते, अच्छे दिनों को ताकत बना,भविष्य को संवारते। भाग्य के आगे चलती नहीं,शायद यही मंजूर था। सुन ,मन को हुई क

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विश्व दूर संचार दिवस-कारनामें फोन के

17 मई 2015
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मुहॅ अंधेरे ही भजन की जगह,फोन की घंटी घनघना उठी, फोन सुनते ही स्फूर्ति आ गई,नही तो उठाने वाले की शामत आ गई। पहले दर्शन इसके होते,बाद में भगवान के दर्शन। उठते ही चार्जिन्ग पर लगाते,तत्पश्चात् मात पिता को पानी पिलाते। दैनान्दिनी से निवृत हो पहले मैसेज पढ़ते,बाद में ईश्वरीय वंदन करते। घर मेरे,जब घ

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'ऐसा क्यों'?

18 मई 2015
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झुंझलाते हुए,समन से बाबू बोले- तुम्हारे काम में एक घंटा बर्बाद हो गया। वही पास बैठी भाभी को समझानें लगे- जगह-जगह ढूढ़नें पर बाबू मिला, कल फिर आना,काम टला। इतना सुन,सुमन के मुहॅ से बरबस निकल पङा- काम का समय न बताओगें, घंटों बर्बाद होने पर भी,कल फिर हैं जाना। बेटी-बहु का अंतर आज समझ आया। बात

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बच्चे-तो-बच्चे

19 मई 2015
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पोपुलेशन कंट्रोल का प्रचार देख, पांच साल की बच्ची,मां बापू से पूछती - ये क्या होता हैं?मां समझाते हुए कहती- जिस परिवार में होते दो बच्चे, इतना सुन,बीच में ही बच्ची बोल पङी- तो आपने भी कर लिया'पोपुलेशन कंट्रोल'। ॥॥॥॥॥ऽऽऽ॥॥॥॥ऽऽऽ॥॥॥॥ऽऽऽ॥॥॥॥ आज के बच्चे ,कल के बच्चे से ज्यादा समझदार होते, सीरिय

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बधाई

19 मई 2015
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बार-बार ये दिन आए,जियों हजारों साल, 'हेप्पी बर्थ डे टू यू'। ''सपनों की ये डोरी एक,रस्मों के ये दिन टूटे न, येडोरी कट जाए,तोरस्में भी टूट जाएं, ऐसा दिन 'आए न कभी', हेप्पी बर्थडे स्वीट हार्ट"! जियों हजारों साल!!!!!!

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गुंबार

20 मई 2015
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कल-कल करती जिन्दगी में,जैसे खुशियों को विराम लग गया, आधुनिकता के नाम पर,छलावा,दिखावा दृष्टिपात् होने लगा। बङी खुशियों के चक्कर में,छोटी-2खुशियों को विरामचिह्न देता, जो मन-ही-मन नासूर बन नजर आता। परिवर्तन होनें के बाबजूद भी,खुले दिल से जीनें में हैं सकुचाते, अवसरों की तलाश में,तकल्लुफ उठानें का

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"बालमन के उदगार"

21 मई 2015
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हम सब धरती पर हैं रहते,पर एक-दूसरे को कभी-2गलत ठहरा हैं लेते। बच्चा हो या बूढ़ा,सबसे होती हैं अंजानें में गलती। बच्चें तो होते मन के सच्चें, माफ कर दो उनकी गलतियों को, पर गलती दोहराने पर,मिलनी चाहिए सजा हरदम। बच्चों की यही ख्वाईश होती,छू ले आंसमा को 'एक सांस में', पर बच्चें -तो-बच्चें होते। ह

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मुलाहजा (असमंजस्य)

22 मई 2015
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आधुनिक युग में बदलती सोच,रीतिरिवाजों के पतन,लोकाचारों में बदलाव,संस्कृति और सभ्यता में उथल-पुथल ने जहा नई समस्याओं को लाकर खङा कर दिया,वही दूसरी ओर जमाना बदलने के साथ-साथ रिश्तोउअं,रीतिरिवाजों में भी परिवर्तन आए हैं।छोटे-बङे,बहु-सास,श्वसुर-दामाद,बहु-बेटों के संबंधों में छोटे-बङे के मुलाहजों को दरकिन

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"जरूरत हैं,शिक्षाप्रणाली में गुणवत्ता की"

23 मई 2015
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वैसे तो वर्षभर परीक्षापरिणाम निकलते रहे हैं,लेकिन मई-जून माह में परीक्षापरिणामों का अंबार सा लगा रहता हैं।सबसे अधिक चिन्तनीय परिणाम,हाई स्कूल व इण्टर के विषय में होता हैं।इसमें भी राज्य वकेन्द्र स्तरीय परीक्षा परिणामों की असमानता में।अवलोकन करने पर कई कारण उजागर होते हैं ,जिसमें प्रमुख कारण-शिक्षाप

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"वृद्धावस्था पुनर्विवाह"

24 मई 2015
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जमाना बदला,जमाने के साथ रीतिरिवाजों मे अनेकानेक परिवर्तन हुए।सती प्रथा,बाल विवाह में कमी हुई ,तो वही विधवा पुनर्विवाह को मान्यता मिली।लेकिन वर्तमान में वृद्धावस्था पुनर्विवाह समाज में एक नी सोच के साथ पर्दापरण हुआ।गिनी चुनी संस्थाए इसको बढ़ावा देने में अग्रिम भूमिका निर्वाह खर रही हैं।आमिर खान के रि

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श्रद्धांजली-पंडित नेहरू जी

27 मई 2015
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बच्चों के प्रिय'चाचा नेहरू'एक प्रशंसनीय राजनेता,जिनका जन्म इलाहाबाद के धनाढ्य व कश्मीरी वंश के सारस्वत ब्राह्मण शंश के वकील श्री मोतीलाल नेहरू जी व मां श्रीमती स्वरूप रानी के घर 14नवंबर,सन् 1889में हुआ था। प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में प्रतिष्ठित जनोत्थान,जनकल्याण व सुखसमृद्धि उनके विचारों की धुरी थ

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"दो शब्द"

28 मई 2015
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आज भारत देश में ही नही,अन्य देंशों मे भी गंगा दशहरा धूमधाभ से मनाया जा रहा है।काशी के विभिन्न त्यौहारों में से गंगा दशहरा सबसे बङा त्यौहार हैं।इस दिन उपवास करने वाले और न भी करने वाले अपनी-अपनी तरह से श्रद्धानवत होकर गंगा मैया को नमन करते हैं।गंगा नदी पर प्रज्ज्वलित दीपकों के साथ-साथ विभिन्न प्रकारो

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आस्था

29 मई 2015
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राशन के नाम पर कुछ ना पा,महंगाई का रोना रोते हुए घर से सब्जीमंडी की राह पकङ ली।आसमान छूते सब्जी के दामों को सुन ,इधर से उधर इस फिराक मे घूमने लगी कि कही तो गरीबों का आलू मिल ही जाएगा ।लेकिन यह क्या थोङा ठीकठाक दिखा, तो दाम ,गांठ में बंधे रूपयों पर भारी पङ गया।काम-चलाऊ सब्जी ले वह मन ही मन बुदबुदात

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क्या बस्तें का बोझ कम करना ही समस्या का हल हैं?

10 जुलाई 2015
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स्कूल खुलते ही अपने-अपनेपन तरह से सरगर्मियां शुरू हो जाती हैं।विशेषकर मीडिया वालों की।इस वर्ष बच्चों का वजन और उनके बस्तें का वजन। इस मुद्दे पर आज से करीब दो महीने पहले से ही चर्चा का विषय चल रहा हैं।किताबों का बोझ कम करने पर अधिक जोर दिया जा रहा हैः।इसका आशय स्पष्ट नहीं किया गया कि किताबों के पाठ क

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सुदृढ रिश्तों के लिए जरूरी है-सतत व सामयिक मूल्यांकन

19 जुलाई 2015
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हमारा जीवन सहयोग और सहभागिता पर आधारित होता हैं।जीवन में समरसता व सरसता के लिए हमें रिश्तों को सुदृढ़बनाना अत्यन्त आवश्यक होता हैं।वैसे तो हम जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त मूल्यांकन करते रहते हैं।क्योकि मूल्यांकन विहीन , निरुद्धेशजीवन होता हैं।मूल्यांकन करते रहने से ही हम, अपने जीवन के उद्धेश्य की प्र

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पश्चाताप के आंसू

28 जुलाई 2015
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बात उन दिनों की हैं जब मैं स्कूल में बच्चों को पढाती थी।भूलकर भी कभी किसी का बुरा करने की सपने में भी नही सोचा था ।विशेष कर लडकियों के प्रति, वो भी निम्न वर्ग व गरीब तबके खी बच्चियों के प्रति विशेष लगाव था।वो आज भी हैं।कक्षा मे नाजिया नाम की लडकी थी ।भोली भाली लेकिन पढाई में बहुत ही कमजोर थी।लाख कोश

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"मैं और मेरे गुरू"

31 जुलाई 2015
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क्षण प्रतिक्षण, जिन्दगी सीखने का नाम हैं, सबके जरूजरूरी नहीं, गुरू ही सिखाए, जिससे शिक्षा मिले,वही गुरू कहलाए। जीवन पर्यन्त गुरूओं से रहता सरोकार, हमेशा करना चाहिए जिनका आदर सत्कार। प्रथम पाठशाला की मां गुरू बनी, दूजी पाठशाला के शिक्षक गुरू बने। सामाजिकता का पाठ मां ने पढाया, शैक्षणिक स्तर

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हिन्दी की हिन्दी कैसे रोके?

14 सितम्बर 2015
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हिन्दी का पखवाड़ा या पितृपक्ष 14सितंबर तक चलता है।प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम 'हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है'के नारों के साथ हिन्दी दिवस मनाया जाएगा। लम्वे -लम्वे भाषणों के साथ अंत में शपथ ली जाएगी कि-'हम हिन्दी में ही काम काज करेकरेगें, राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए तथा समस्त जन को एकता के

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जिन्दगी की पाठशाला

26 सितम्बर 2015
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आपकी जिंदगी की पाठशाला में ऐसा कोई भी श्यामपट् नही है, जिस पर आपके जीवनयापन के उद्देश्य लिखें हो या ऐसा कोई मिशन या टारगेट नहीं लिखा होता, जिसके क्रमगत जीवन गुजारकर सुखी, संतोष, खुशी प्राप्त कर सके।व्यक्ति को स्वयं समझना चाहिए कि वह इस दुनिया में क्यों आया है? उसे किस तरह से जीवन व्यतीत करना है।हमे

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सफलता के लिए आत्मसम्मान व आत्मविश्वास का महत्व

27 सितम्बर 2015
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सफल होने के लिए हमें सफलता के बारे में ही सोचना चाहिए।मन में विश्वास बैठा लेना चाहिए कि हम सफलता के लिए ही पैदा हुए हैं और सफलता प्राप्त करके ही रहेंगे।मनमस्तिष्क में जैसा हम सोच लेते हैं वैसे ही हम बन जाते हैं।सफलता प्राप्त करने के लिए हमें सकारात्मक सोचना चाहिए।स्वयं को महत्व देते हुए मूल्यवान समझ

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कैसे निखारे व्यक्तिगव ?

29 सितम्बर 2015
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हमारा दयालु नजरिया और लोगों के प्रति सदभाव सुरक्षा कवच की तरह कङवे, कुटिल नकारात्मक, हानिकारक विचारों के विरुद्ध कार्य करता है।हमें सुखमयी जीवन और खुशगवार बनने के लिए हमारी मानसिक सोच कटुता हीन और चालाकी रहित होना चाहिए, तभी हमारे जीवन में दुख की घटा छटेंगी।जीवन में सर्वश्रेष्ठ कार्य तभी किया जा सकत

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मन को चिन्ता मुक्त रखिए

1 अक्टूबर 2015
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शारीरिक व मानसिक विकार का कारण चिंता और तनाव होता है।जो धीरे - धीरे मीठे जहर की तरह तन मन को विनाश के कगार पर ले जाती है।चिन्ता व तनाव के रहते हमारा तन के साथ मन भी कई लाइलाज भयंकर बीमारियों का शिकार हो जाता है।जीवन खंड खंड होकर दुविधा ग्रस्त हो जाता है।हम एक उद्धेश्य हीन जीवन की ओर अग्रसर होने लगते

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