इस कहावत का मानव जीवन में बङा ही महत्व हैं ।इसका अर्थ आज के आधुनिक समाज में स्थिति के अनुसार गढ़ा हैं।बचपन मेंपढ़ी खरबूजे बेचने वाली बुङिया की कहानी याद आ गई,जो घर में पङे मृत बेटे के कफन और भूख से बिलखते नाती-पोतो की भूख मिटाने के लिए चोराहे पर बैठकर खरबूजे बेच रही है।गुजरने वाले नाक मुॅह सिकोङें,कोसतेहुए थूॅ-थूॅ करते अपनी राह चलते जा रहें।यकायक यह कहानी स्मरण इसलिए हो आई क्योंकि आज किसी के गमी में बैठकर आ रही थी।वहा पर अंतिम संस्कार के लिए बाहर सर्विस कर रहे बेटे का इंतजार किया जा रहा था।अंदर-बाहर बेटे के न आने की फुसफुसाहट हो रही थी।अंततःशमसान घाट ले जाया गया।लोगों के वापिस आने का सभी समय काट रहे थे।कौई कह रहा था कि तन्ख्वाह ही तो कटती ।कौई कह रहा था कि नौकरी ही तो जाती, कम से कम पिता का अंतिम मुख देखने को तो मिल जाता।सभी हाॅ में हाॅ मिला रहे थे।पीछे बैठी कौई धार्मिक परायण बुढ़िया सबकी बातें सुनते हुए कहती हैं कि क्या तुम लोंगों ने भागवत् गीता नही पढ़ी?भगवान कृष्ण ने कहा हैं कि 'जो होना था,वह हो गया,वो तो वापस नहीं आ सकता,आगे की सोच।वैसे भी कर्म ही पूजा कहा गया हैं।माला जपना,प्रार्थना करना सेसर्वोपरि कार्य माना गया हैं।पिता तो मिट्टी में समा गये।अंतिम दर्शन मेंशामिल होता तो,नौकरी चली जाती तो उसके बच्चें कौन पालता?बेटे ने नीति अनुसार सही किया।यह तो दुनियादारी हैं ।उस धर्मपरायण बुढ़िया की बातों को सभी सुन रहे थे।किसी ने तिल भर भी उसका विरोध नही किया।जो गिले शिकवे थे,वो भी नौ दो ग्यारह हो गए।जैसे उन्हें भविष्य में होने वाली इस तरह की घटनाओं के लिए एक प्रेरणादायक प्रसंग मिल गया हो।वैसे भी यह दुनियां भेङचाल हैं।यह मामला बङे घराने का था,सो सभी को लुभा गया।जैसे भविष्य में आने वाले रोङों का खात्मा कर देगा।।अगर यही घटना निम्नवर्गीय परिवार की होती तो उस परिवार का जीना हराम कर दिया होता।वैसे ही पाठशाला में पढ़ी खरबूजा बेचने वाली बुढ़िया की कहानी की तरह।जिसे सभी नेलालची,नैतिक पतिता,और न जाने क्या-क्या शब्दों की उपाधियां दी गई ,तब उसकी आवश्यकता पर किसी का ध्यान क्यों नही गया?उसके इस कार्य को निन्दनीय क्यों कहा गया?क्यों नही बुढ़िया के काम को ,जो उसकी मजबूरी थी,कार्य ही पूजा से नवाजा गया।सच्ची मायनें में तो बुढ़िया का कर्म पुज्यनीय हैं जबकि उस बङे घराने का काम निन्दनीय हैं।