बात उन दिनों की हैं जब मैं स्कूल में बच्चों को पढाती थी।भूलकर भी कभी किसी का बुरा करने की सपने में भी नही सोचा था ।विशेष कर लडकियों के प्रति, वो भी निम्न वर्ग व गरीब तबके खी बच्चियों के प्रति विशेष लगाव था।वो आज भी हैं।कक्षा मे नाजिया नाम की लडकी थी ।भोली भाली लेकिन पढाई में बहुत ही कमजोर थी।लाख कोशिस करने पर भी उसमें कोई सुधार नहीं हो रहा था ।जैसे तैसे करके वो कक्षा चार तक पहुंच गयी थी।परीक्षा नजदीक आ रही थी।एकदिन नाजिया के पापा कक्षा में आए और नमस्ते कर, पढाई के बारे में जाना, तो मैने बताया-बुरा बच्चियों बहुत कमजोर हैं , अगर ध्यान नही दिया तो फेल हो जायेगी।इतना सुन कहने लगे- मेडम बिन मा की बच्ची है, पास कर दोगी तो बङी ई मेहरबानी होगी।मैने कहा- थोङा घर पर ध्यान दो, मेहनत करेगी तो पास हो जाएगी।मेरी बात पूरी सुनना तो दूर , बस एक ही बात दोहराए जा रहे।अंत में मुझसे रहा नहीं गया, मैने कहा दिया- ठीक है देख लेगे।परीक्षा हो गयी।कापी जांचने बैठी , तो नाजिया ने जो कुछ लिखा कापियों मे लिखा था, पास करने की गुंजाईश बहुत कम दिख रही थी ।जैसे तैसे करके तीन विषयों मे पास करने दिया, लेकिन फिर भी एक विषय में अटक गयी।कापी में दस नंबर लायक भी नही लिखा गया था।आखिर में उसे श्रेणी सुधार में डालना पङा।श्रेणी सुधार की परीक्षा के पहले ही मेरा स्वास्थ खिताब हो जाने के कारण मुझे लंबी छुट्टी पर जाना पङा। गल्ती इतनी हो गई कि मैं अपने साथ वाली मेडम से नाजिया के विषय में कहना भूल गई।नतीजन नाजिया फेल हो गयी।मुझे इस बात का तब पता चला , जब मैने स्कूल ज्वाईन किया।तब एक दिन अचानक नाजिया के पापा से सामना हुआ तो कहने लगे- मेडम आपसे कितनी गुजारिश की थी, आखिर मे बच्ची का एक साल बर्बाद हो ही गया।इस बात पर मैंने लाख समझाने की कोशिश की कि मेरी भी मजबूरी समझो।थोङा बहुत भी लिखा होता , तो मैं क्यों उसे फेल करती।मेरी तो सुन नही रहे थे, बस शिकायत किए जा रहे थे।मैने उनसे कहा- गलती मेरी बस इतनी है कि मैं जाते समय अपनी साथ वाली मेडम से कहना भूल गई, इसके लिए मे माफी मांगी हू।यह सुन कहने लगे- क्या आपके ऐसा कहने से बच्ची की साल वापिस हो जाएगी? मायूस चेहरा लिए वापिस हो लिए।आज भी मैं अपने आप को कोसती हूं कि किसी भी तरह उस बच्ची को पास कर देती।अफसोस.......! लेकिन भगवान जानता हैं मै इस मामले में कितनी गलत थी या सही? मैं अपने आपको संतुष्टि कर लेती हूं कि शायद भगवान ने मुझे सजा दे दी ।शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण मुझे नौकरी छोडना पङी।अब मै किसी को निराश न कर सकू।लेकिन...यह मेरे साथ भगवान का न्याय है या अन्याय, यह तो सजा देने वाला ही जाने!!!!!