वर्तमान ममें इंसान अपनें-अपनें जीवन की जद्दोजहद में ऐसा फंसा हुआ हैं कि वह सोच ही नहीं पाता कि आखिर ऐसा क्या जीवन हैं,जो रोजमर्रा के जीवन में क्षणिक सुख की अनुभूति कही भी दिखाई नही देती।दिन रात काम करके भी संतुष्टि नहीं।एक ही जगह पर एक सा काम करने वाले व्यक्तियों के जीवन में सुख सुविधाओं में इतना अंतर क्यों?इसका कारण न मिलने पर मानव सोचने पर मजबूर हो जाता हैं कि शायद भाग्य चक्र की नियति तो नहीं।।ज्यादा संतुष्टि के लिए मानव मंदिरों,पूजापाठ, पंडितों के चक्कर लगा-लगाकर अपनी चप्पलों को घिसता रहता हैं।सामर्थ्य नही हैं,बच्चों की दो वक्त की रोटी के लिए पैसे नहीं,लेकिन पूजा-अर्चना की सामग्री के लिए रूपयोः की व्यवस्था कैसे भी करके,चाहे उधार लिया हो या घर का कौई सामान बेचकर इंतजाम किया हो,करता हैं।फिर भी समस्या का समाधान न होने पर,जन्मपत्री,हस्तरेखा से भविष्य जानने के लिए पंडितों के चक्कर लगाते हैं।निरकरण करने में दिन रात एक कर देते हैं।मानते हैं कि अलग-अलग राशि वालों की भाग्यदशा विभिन्न होती हैं।एक विचार करने वाली बात हैं कि अगर ऐसा होता तोभगवान राम और रावण व कृष्ण और कंश एक ही नाम राशि के होने पर भी उनकी भाग्यदशा वजीवन में विभिन्नता क्यों थी? हालाकि एक तथ्य यह भी हैं कि अलग-अलग समय ,दिन ,तारीख में जन्म लिए मानवों मे विभिन्नता हो जाती हैं।फिर इतना हेर-फेर क्यों?आखिर यह भ्रान्ति ही हैं,जो मानवीय सोच को परिवर्तित करने के लिए उत्तरदायी हैं।इसके प्रभाव भी मानवीय सोच पर निर्भर करते हैं।जब हमारे समक्ष एक ही नाम राशि वाले कई व्यक्ति एक सी आदत,रहन-सहन स्थिति में नजर आते हैं तो मस्तिष्क मे ऐसे व्यक्तियों के प्रति सोच मस्तिष्क के एक कोने में विस्थापित हो जाती हैं और इसी तरह परिपाटी चल पङती हैं।प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्म से समाज में अपनी स्थिति बनाता हैं।इसमें ऊपर वाले का हाथ होने के साथ,हमारे आस-पास की सामाजिक,आर्थिक,नैतिक,मनोवैज्ञानिक व्यवस्थाएं भी जिम्मेदार होती हैं।इंसान के भाग्य निर्माण के लिए हमें तटस्थ होना,भ्रमित उलझनों से बाहर निकलकर नकारात्मक विचारों का उत्थान कर,सकारात्मक सोच पर ऊर्जा व्यय कर एक सुन्दर,सुखद भविष्य निर्मित करना चाहिए।