संगम किनारें घूमनें गया,मन अवसादों से भरा था,
विवाह को लेकर,गहमागहमी के बीच ,अल्टीमेटम मिल गया।
क्या करू?क्या नही करू?स्वयं पर गुस्साया।
रक्तिम लालिमां,चहुॅ ओर,छटां बिखेरती,
संगम नदी की हिलौरें,मधुरगान तानती।
आकाश को कलरव करता, पक्षियों का झुंड लौटता,
भीङभाङ,गाङियों का शोरगुल,कही विलुप्त-सा हो जाता।
ठंडी सर्द हवा के झोंकों ने,मनप्रफुल्लितकर,बैचेनी शांत कर गया।
एक साथ बहती ,त्रिवेणी नदी मिलती नहीं,
प्राकृतिक वरदान हैं,साथ रहते हुए भी,साथ नहीं।
एकाएक नजर नाविक पर पङ गई,
चप्पुओ में सामंजस्यता बनाएं,तट से तटपार लगाता।
कौंध गया मन में विचार,नाविक समान स्थिति मेरीतो नहीं?
मैं नाविक,एकचप्पू परिवार,दूजाजीवन संगनि।
मनोस्थिति भांप,दोस्त बोला-
सच हैं,तेरी दशा,संगम नदी पर तैरती नाव समान।
तू खिवैया पकङे हाथ में दो चप्पू,
एक चप्पूनीम का,दूसरासागौन समान,
और तेरा समाज ,संगम नदी समान।
त्रिवेणी जस,दूर-दूर तक सामंजस्य का नाम नहीं।
सुनकर चलचित्र सामने घूम गया,दोनों चापुओं के बीच डोलती नैया नजर आ गई।
सांत्वना दी आपसे,सुरक्षित रखनी हैं नैया ,
"तो चप्पुओ मे सामंजस्य बिठाकर,'नैया पार 'लगाना हैं"।