स्कूल में आज बच्चों के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्य भी आज साल भर की पढ़ाई का नतीजा लेने आए थे।अंदर देखा-मैदान में परीक्षा बांटने वाले स्टाॅल जैसे लगे हुए थे।।कुर्सी पर विराजमान शिक्षक अपने सामने रखी मेज पर प्रगति पत्रक की गड्डिया सजाएं बैठे थे।कतारबद्ध रहकर परीक्षा परिणाम लेने की आवाजें दी जा रही थी।परिणाम बंटने के साथ ही बच्चों के साथ-साथ माता पिता के चेहरे पर भी हॅसी,दुखी,चिन्ता सभी मिलेजुले भाव दिखाई दे रहे थे।किसी को डांट,किसी को शाबासी ,तो किसी कोप्रोत्साहन।आपस में मिठाई,टाॅफी खिलाकर खुशियाॅ बांट रहे थे।
तभी एक अभिभावक अपने तीन बच्चों के साथ आती दिखी।दुखी भाव से बोलने लगी-इसको तो पास कर ही देती।बङी मुश्किल से मजदूरी करके पढ़ा रही हूॅ।इतना सुनना थी कि नाराजगी भरे शब्दों में कहा-बिल्कुल पढ़ने पर ध्यान नही देती,पीछे बैठकर बाते करती रहती हैं।मां कहती है-हाॅ,मेडम इसका मन ही नही लगता।सोचती थी कि ,किसी तरह दस दर्जा पास कर लेती, तो कही नौकरी पर लग जाती।मेरी तरह झाङू-पोंछा तो नही करना पङता।दिलासा भरे शब्दों में मेडम कहने लगी-सब काम छोङकर इसकी पढ़ाई पर ध्यान दो।नहीं तो कही इसकी ट्यूशन लगवा दो।इतना सुनकर मां गिङगिङाकर कहने लगी-आपकी बङी मेहरवानी होगी,थोङा ज्यादा ध्यान आप ही दे लिया करो।मेडम ठीक है,ठीक हैं कहकर एक तरफ हो ली।तसल्ली पाकर बच्ची को साथ लेकरचलती बनी।
उसके जाते ही शर्मा मेडम बोलती हैं-किसे आप समझाने मे लगी हुई थी।अगर यही लोग पढ़लिखकर नौकरी करने लगे,तोकाम करने वाली वाईयें कहां से आएगी?ये जहा से आए है,इन्हे वही रहने दो।मिश्रा मेडम अवाक् से मुहॅ ताकने लगी।पास बैठे समर्थन सभी हॅसते हुए कहने लगे-इन मेडम ने सोलह आने सच कहा।इस ठिठौली पर कुछ अच्छा नहीं लगा।अफसोस इस तलह के विचार वाले व्यक्तियों के रहते,सामाजिक उद्धार करना संभव ही नही,नामुमकिन भी हैं।