हिन्दी का पखवाड़ा या पितृपक्ष 14सितंबर तक चलता है।प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम 'हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है'के नारों के साथ हिन्दी दिवस मनाया जाएगा। लम्वे -लम्वे भाषणों के साथ अंत में शपथ ली जाएगी कि-'हम हिन्दी में ही काम काज करेकरेगें, राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए तथा समस्त जन को एकता के सूत्र में बांध ने के लिए हिंदी को सम्मान देना चाहिए और भी कई वादों के बीच समारोह की सम्पन्नता हो जाएगी। अगले दिन से वही पुराना राग अलाप। पखवाड़ा समाप्ति के बाद अंग्रेजी के दबे तले हम हिन्दी की हिन्दी करते रहते हैं।इसकी जर्जता , उपेक्षा, वेचारगी, नफरत करने पर भी किसी को तिल भर भी ग्लानि नहीं, अफसोस या पश्चात्ताप नही।खेद की बात है कि आजादी के इतने साल बाद भी इसे वह दर्जा नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए था।आज भी हमारे ऊपर अंग्रेजी का दबदबा कायम है।14सितंबर १९४९ को हमें अपनी अभिव्यक्ति को हिंदी भाषा में करने की इजाजत मिली थी १ जनवरी1965 से हिंदी राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता मिली।संविधान बनने पर हिंदी का एक भावात्मक रिश्ता था।राजनीतिक रंगों और जातीय रंग भेदभाव ने हवापानी देकर इसकी विडंबना कर दी कि हिन्दी की बात करने वाले हिंदी की बात करना भूल गए।राजभाषा या राष्ट्र भाषा इस द्वन्द्व स्थिति ने यह विचारणीय कर दिया।हिंदी ऐतिहासिक प्रक्रिया है। इसका अखिल भारतीय रूप है।हिंदी भाषा मंच होने के कारण इसका क्षेत्र विस्तृत है इसके अंतर्गत कई बोलियां है।हिंदी भारत की मिट्टी में उपजी, उसकी अपनी प्राण वायु और प्राण शक्ति है।यह किसी की मोहताज नहीं है।इतनी उदार है कि शब्द संपदा का अनूठा भंडार है।यह सत्ता लोलुपता की नही बल्कि यह सम्मान जनक दर्जा प्राप्तिकांक्षी है।हिन्दू में शक्ति है, सामर्थ्य हैं, आकर्षण है, असर है, कमी तो हम हिन्दी वासियों में है-आत्मविव्वास और अपनी भाषा में विश्वास की।मनुष्य का सर्वप्रथम अपने मुखाग् सेस निकले शब्द ही उसकी मातृभाषा बन जाते है।पहचान बनना , उस भाषा के प्रति लगाव कितना है? इसके प्रचार प्रसार में अंग्रेजी आङे आ रही है क्योंकि अंग्रेजी एक सकारात्मक भाषा है।ऐसा मानना है कि अंग्रेजी की अपेक्षा हम हिन्दी में स्व विचारों का आदान प्रदान आसानी से नहीं कर सकते। यह सच है कि इसके बिना काम नहींह चल सकता। लेकिन हिंदी को बढावा देने के लिए हमारा आधार हिंदी होना चाहिए।वित्तीय व्यवस्था में लेखा जोखा हिंदी में ही होना चाहिए।राजभाषा के रूप में अधिकारी गण अपने दायित्व का सही तरीके से निर्वहन करें।हिन्दी के प्रति समर्पण भाव रखें।हिन्दी राजकीय भाषा को व्यवहारिक ता में लाने का सपना देखना चाहिए तथा उस स्वप्न को पूरा करने की व्याकुलता होनी चाहिए। पूर्ण तल्लीनता से हमें उस पर अमल करना चाहिए।कदम से कदम मिलाकर चलने में ही सफलता मिलती है।जन चेतना में सांस्कृतिक आंदोलन का रूप देना चाहिए।ह्र्दय ग्राही भाषा के रूप में इसकी प्रतिष्ठा बनाएं रखने के लिए दृढ संकल्पित होना पडेगा।अंग्रेजी दासता से मुक्त हो कर हमें हिन्दी में हस्ताक्षर करने के लिए आगे बढ ना होगा।इसकी विडम्बना का कारण हम भी हैं हम अपने बच्चों को हिंदी के प्रति सम्मान की भावना नहीं दर्शा पाते।हमें अपने बच्चों को हिंदी सीखने, बोलने, लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए अग्रसर होना चाहिए।विश्व के विभिन्न देशों में हिंदी का सूर्योदय होकर अपनी रोशनी आकाश को दे रहा हैहिंदी समूचे विश्व में पंख पसार कर पल्लवित हो रही है।हमें आधुनिकता व वैज्ञानिकता के नाम पर हिंदी को अपमानित होने से बचाना है।हिन्दी के समुद्रों में लहरें उठकर जानी पहचानी चट्टानों से टकराती है और उन्हें सरसता प्रदान करती है।यदि हम हिन्दी भाषा के पक्षधर हैं, हिमायती है तो केवल तटीय किनारे पर्यटक की भूमिका नहीं निभाएंगे बल्कि बिना किसी भौगोलिक या ऐतिहासिक बाधा के आत्मचिंतन करेंगे।हिंदी की नया आयाम किसी को कोसने या दोषारोपण करने से नहीं होगा।पूर्ण रूप से हमें हिन्दी के अधीन होना होगा।यह चेतना का, आत्ममंथन और पूरी तरह से समर्पित भावना का युग है।चहुँ ओर निरीक्षण करने से ही हिंदी को सम्मानित दर्जा दे पाएंगे।विश्व स्तर पर हिन्दी अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन चुकी है।इसका साक्षात उदाहरण शेक्सपियर के संग्रहालय में देवनागरी लिपि में लिखा-'यह शेक्सपियर का निवास है'। हिंदी भाषा में अपनी मिठास, लरजता, आत्मीयता का भाव होने के कारण इसे जल्दी ही अपना लिया जाता है।राष्ट्र निर्माण के लिए राष्ट्र भाषा का होना अत्यंत आवश्यक है देश की उन्नति राष्ट्र भाषा से ही होती है।इस संबंध में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने कहा है कि-'राष्ट्र भाषा के बिना देश गूंगा है।'संविधान में भी का गया है कि जिस दिन यह विकसित और सक्षम हो जाएगी, इस राष्ट्र की राजभाषा बन जाएगी।हिंदी का भविष्य उज्ज्वल, वर्तमान संतोष जनक और अतीतमहान है।हिंदी को विश्वस्तरीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए हमें इसके साथ प्रांतीय, देशीय, मातृभाषाओं को सम्मिलित करना होगा। क्योंकि देश विकास सभी तरह से कर रहा है सिवाय हिंदी छोड के।अगर एक बार मान भी लिया जाए कि हिंदी ने उन्नति की है तोइसे अपनी पहचान, दर्जा या इसके प्रति लगाव क्यों नहीं हो पाया?