स्कूल खुलते ही अपने-अपनेपन तरह से सरगर्मियां शुरू हो जाती हैं।विशेषकर मीडिया वालों की।इस वर्ष बच्चों का वजन और उनके बस्तें का वजन। इस मुद्दे पर आज से करीब दो महीने पहले से ही चर्चा का विषय चल रहा हैं।किताबों का बोझ कम करने पर अधिक जोर दिया जा रहा हैः।इसका आशय स्पष्ट नहीं किया गया कि किताबों के पाठ काम किए जाएं या वैकल्पिक विषयों का नजरअंदाज किया जाएं।एक तरफ सरकार , मीडिया, योगी, विचारक भाषणबाजी करते हैं कि बच्चों के सर्वोपरि विकास के लिए सभी क्षेत्रों मे उसे जानकारी होना चाहिए , तभी वह एक स्वस्थ नागरिक बन सकेगा।केवल मुखाग्नि शिक्षा देना से तो काम चल नही सकता, उसके लिए तो किताबों की जरूरत पडेगी ही।यह बात सही हैं कि उम्र के हिसाब से पाठ्यक्रम की विस्तृत है, इस बिन्दु पर विचार किया जाना चाहिए।साथ ही सरकार को किताबों की क्वालिटी पर ध्यान देना होगा।तात्पर्य यह है कि किताबों को हल्की से हल्की बनाने की कोशिश की जाए ।इससे बस्ते का वजन कम होगा , साथ ही पाठ्यक्रम की परिपूर्णता भी होगी।सरकार वैसे भी बहुत से मसलों पर अन्य देशों की तरफ दारी करके , प्रोत्साहन करती है।तो फिर विदेशों की किताबों की क्वालिटी पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया।अगर वास्तव में बच्चों का सर्वोपरि, सर्वप्रमुख, सर्वोच्च विकास करना है तो इस बात पर जरूर ध्यान देना होगा।