फोन की घंटी का, ट्रिन....ट्रिन....ऽ..घनघनाना,
डिब्बे के आस पास,सबका जमघट -सा जमजाना।
मजाल जिसकी,बङों के सामने छोंटे उठा लेते,
अपना नाम सुनने को सब उत्सुक,न सुनने पर सब के मुॅह लटकते।
मौका पाकर,फोन पर सब लग जाते,पकङे जाने पर,बहाना मारते।
मेरे घर में,घंटी बजती,आवाज लगाते दौङे आते वावा,
आवत हैं......आवत हैं....,
पीछे से दादी चिल्लाती-काहे को उकलाऐ जात हों,फोन कहा भागत जात हैं।
फिर क्या,इसी बात पर हो जाती तू-तू,मैं-मैं।
नाती-पोते,बहु-बेटे,रिश्तेंदारों से होती बात,
यही डिब्बा बन जाता ,'कलेजे का टुकङा'।
पर,कब खिलखिलातें दांत,मिसमिसाहट में बदल जाते,
आगबबूला हो,चोंगा वही धराशयी हो जाता।
इसकी भी अजीब दास्तां,'पल में तोला,पल में माशा'।
आज,ड्राईन्ग हाॅल की शोभा बढ़ानें वाला,कचङे का सामान बन गया,
अगर जरूरत हैं इसकी,तो बदले में 'काॅर्डलेस'रख गया।
जमाना बदला,इसका भी रूप बदला,
चलता-फिरता मोबाइल फोन,हो गया जन-जन वाला।
सूट बूट से नाता नहीं,हर हाथ की शोभा हैं,
रूमाल के बदले जरूरी,इसके बिना जिन्दगी अधूरी।
भूकंप आऐ,धरती फट जाऐ,सब लुट जाए,
पर मोबाइल हाथ से न छूट पाए।
भूखे पेट रह सकते हैं,पलभर चार्जिन्ग बिना नही रह सकते।
चमत्कारी दुनियां में इसमें भी अदभुत् चमत्कार हुआ,
पहले केवल सुनते थे,अब आमने सामने दर्शन करते हैं।
जहां दूरी का अवरोध हटा,वही शिकायतों का चिट्ठा घटा।
दस्तूर दुनियां का अहम् हैं,मोबाइल नहीं ,वो इंसान नहीं।
घर परिवार से हैं,अनूठा नाता,बैठे बिठाए नए-नए रिश्ते बनाता।
जीवन में वजूद इतना,पार्टी हो या गमी,इसे जरूरी हैं रखना।
नवबधू आगमन पूर्व,रिश्तों में इतनी मिठास भरता,
विवाह बाद सब बुराईयों पर पर्दा पङ जाता।
अनेकानेक हैं इसके काम,हवा-हवा ही में करता कामतमाम।
सारे जहां की खबरों से अवगत कराता,तो मनमुटाव में कारण बनाता।
अफवाहों में इतना माहिर,घर बैठे लोगों के दिल जलाता।
अशुभ समाचार देने पर,गालियों की झङी लगती,
नासमिटें,मुॅहें,खवर अवही देनी थी।
जैसी इंसान की फिदरत,वैसा ही यह बन जाता हैं,
इसमें इसका दोष नहीं,यह ऐसा ही हैं।
मिठास न घोलने पर ,अपनी विडंबना करवाता,
गुस्सा-गुस्सी,झङपा-झङपी में फेंका जाता।
होश आता,तो जाकर ऐसे उठाते,
जैसे बिछङे लाल को,सीने से लगाते।
शुक्र मनाते ऊपर वाले का,चलो बच गया,
अफसोस यह नही इसकी वजह से रिश्ता टूट गया।
एक छत्त के नीचें रहने वालों का हालचाल नही पता हैं,
पर मोबाइल की सलामती पता करना जरूरी हैं।
आपातकाल में भगवान बना,खींचातानी में अपशगुनी बना।
दिन रात कान में लगाए, ऐसे घूमते,मानों जीनें के सबक सीखतें।
बच्चों के बदले,यह ऑख का तारा बन गया,
बच्चा खो गया तो गम नही,मोबाइल खो गया तो,दम निकल गया।
जीनें का इकलौता सहारा हैं,यह नही ,तो जीवन बंजारा हैं।
सच हैं,जीवन ठेलमठेला हैं,यह आदमी की दुनियां में अलबेला हैं।
फिर भी इसमें बहुत है खूबी,इससे पल पल का हाल जान,सुखी जीवन का आधार बना,
उखङे मूङ में मनोरंजन का साधन बना।
छूट गया ईश्वरीय वंदन,उठते बैठते होते इसके दर्शन।
लगता है,मोबाइल में भगवान बसतें हैं,
तभी इसे अपने से जुदा नही कर पाते।
इसे धन्वाद कहते नही थकते,जिसने जीवन दिया, उसे भी नही कहते।
बस!बहुत हुई,इसकी अपनी लंबी दास्तान् हैं,
जिसमे छिपी हैं अनगिनत करतूतें हैं।