जब हम मानवीय व्यवहार का चिन्तन करते हैं,तो हमारे जीवन में कई प्रकार के व्यवहार होते हैं।उनका हम सभी अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में प्रतिक्षण आदान प्रदान करते हैं।व्यवहारो से जुङी व्यवस्थाए होती हैं या यूं कहिए कि व्यवस्थाएही व्यवहार को जन्म देती हैं।हम अनेक अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरते हैंउन्ही के अनुरूप व्यवहार करते-करते हमारी आदतों में शामिल हो जाती हैं। लेकिन इन व्यवस्थाओ को या व्यवहारो को अपने अनुकूल या प्रतिकूल बनाना हमारी सोच,व्यवहार,विचारो पर निर्भर करता हैं।हमें कही जाना हो या हमारे घर किसी को आना हो ,तो हमारा मनमस्तिष्क व्यवस्थाओं पर टिक जाता हैं कि पता नही मिलने वाली व्यवसाथाओ में शामिल हो सकेगे कि नही? या जिसे हम व्यवसाथा दे रहे उसमें वह सामंजस्य कर पिएगा या नहीं। स्वाभाविक हैं जब मानवीय सोच अलग- अलग हैं ,तो व्यवस्थाए भी भिन्न होगी।प्रथम-व्यक्ति की सोच होती हैं कि उसे कही भी कैसी भी हो,वह उसमें बिना शिकायत य् नाक भौ सिकौङे सहयोग करेगा,लेकिन उसके बदले वह यह भी चाहेगा कि अगला भी मेरे द्वारा की गई व्वस्था में शामिल होकर वैसा ही सहयोग करें। द्वितीय-किसी के यहा कैसी भी व्यवस्था मिली हो लेकिन हम उसे बिना एहसास कराए व्यवस्थित सुविधा देगे,जिससे उसे कम से कम परेशानी हो।तृतीय-बदले की भावना अर्थात्हमें अच्छी सुविधा नही मिली ,तो हम उसके साथ वैसा ही करेंगे अर्थात् जैसे को तैसा। चतुर्थ-उपेक्षा करने की प्रवृति अर्थात् उपेक्षित सोच।व्यक्ति की जरूरत, आवश्यकता का ख्याल न रखकर अपने हिसाव से करना।ये न खुद ख्याल रखवाने के इच्छुक होते हैं और न ही किसी की परवाह करते हैं। इस तरह विभिन्न प्रवृतियाॅ,विभिन्न व्यवहार अर्थात् सुधारात्मक सोच,प्रतिरोधी सोच,सामंजस्य सोच औरउपेक्षित सोच ।